वाराणसी : टेरर और टॉक एक साथ संभव नहीं : मुख्तार अब्बास नकवी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 दिसंबर 2023

वाराणसी : टेरर और टॉक एक साथ संभव नहीं : मुख्तार अब्बास नकवी

  • योगी सरकार फिल्म निर्माण को प्रोत्साहित और प्रमोट करने हेतु सकारात्मक सोंच के साथ सक्रिय है
  • वैश्विक फिल्म समुदाय के बीच संबंध को बढ़ाता है महोत्सव

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वाराणसी (सुरेश गांधी) पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पत्रकारों से बाचतीत के दौरान महोत्सव में पाकिस्तान की किसी भी लघु फिल्म को जगह नहीं दिए जाने के सवाल पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कभी भी टेरर और टॉक एक साथ संभव नहीं हो सकता. हम भी चाहते हैं कि सभी देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध बेहतर हों, लेकिन पाकिस्तान को भारत से सांस्कृतिक संबंध रखने के लिए आतंक का अखाड़ा खत्म करना होगा. आतंक के अखाड़े से कभी भी सांस्कृतिक स्वर नहीं सुनाई देंगे. नकवी ने कहा कि धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर उत्तर प्रदेश फिल्म निर्माण का हब बनने की योग्यता से परिपूर्ण है। योगी सरकार फिल्म निर्माण को प्रोत्साहित और प्रमोट करने हेतु सकारात्मक सोंच के साथ सक्रिय है। नकवी ने कहा कि कलात्मक फिल्में और लघु फिल्में दुनिया के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण, पर्यटन, मानव अधिकारों, असहिष्णुता, आतंकवाद, लोकतान्त्रिक मूल्यों, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला अधिकारों, लैंगिक असमानता, तथा अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर जनमानस को सुन्दर-सरल ढंग से सशक्त सबक-संदेश देने में सफल रहीं है। प्रसारण प्लेटफॉर्म्स का विस्तार, क्रियेटिव फिल्मकारों के लिए उपहार है। नकवी ने कहा कि ऐसे ही कई ज्वलंत मुद्दों पर बनी नाइट एंड फॉग, बैटल आफ मिडवे, अर्ध सत्य, मंडी, भूमिका, नायक (सत्य जीत रे), चारुलता, विनिंग योर विंग्स, डिनर फॉर वन, 12 हावर्स, ख्वाहिश, ब्लू हैलमेट, आखरी मुनादी, आरक्षण, गंगाजल, चक्रव्यूह आदि जैसी कई फिल्में और शॉर्ट फिल्में लोगों को मनोरंजन के साथ मैसेज की जानदार जुगलबन्दी जनमानस पर जबरदस्त असरदार साबित हुई हैं।


नकवी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यूपी के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम बन गया है, जो वैश्विक फिल्म समुदाय के बीच गहरे संबंध को बढ़ावा देता है। सिनेमा के माध्यम से हम अपनी संस्कृति, मूल्यों और कहानियों को दुनिया के साथ साझा करते हैं।नकवी ने कहा कि आज दमदार लघु फिल्मों का महत्व इस लिए भी बढ़ गया है क्योंकि सामाजिक सरोकार से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर अधिकांश बड़े फिल्म प्रोडक्शन एवं मीडिया हाउस, सार्थक संदेश के बजाय, कमर्शियल उद्देश्य को प्राथमिकता दे रहें हैं। जबकि देखा गया है कि कामर्शियल और सोशल कमिटमेंट के सयुंक्त संकल्प के साथ निर्मित फ़िल्में निर्माताओं के कला, कौशल, करिश्मों और कमाई में कामयाब हुई हैं। मेनस्ट्रीम सिनेमा और मीडिया से नजरअंदाज कई अत्यंत महत्वपूर्ण, संवेदनशील और गंभीर विषयों पर छोटी फिल्में, बड़ा संदेश दे सकती हैं। नकवी ने कहा कि आज विश्व के 190 से ज्यादा देशों में उपस्थिति रखने वाले विभिन्न ओटीटी, डिजिटल-इन्टरनेट प्लेटफॉर्म्स के विस्तार और पहुंच ने अच्छी लघु फिल्मों का व्यापक बाज़ार और दर्शकों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की है। आने वाले दिनों में विश्व भर में इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स उपभोक्ताओं की संख्या 500 करोड़ से अधिक होने का आकलन है। उन्होंने ने कहा कि भारत में ओटीटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स यूजर्स की संख्या लगभग 48 करोड़ से ज्यादा है, जिसके आने वाले तीन वर्षों में 80 करोड़ से ऊपर जाने की उम्मीद है, भारत में लगभग 46 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, 900 से ज्यादा सेटेलाइट चैनल और 100 करोड़ से अधिक स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वाली जनसंख्या है, ओटीटी कम्पनियों का व्यापार वर्ष 2022 में हजारों करोड़ रूपए से अधिक रहा। जिसके आने वाले दिनों में दिन दूना रात चौगुना उछाल की प्रबल सम्भावनाएं हैं। इन सभी प्रसारण सुविधा, संसाधनों का व्यापक विस्तार क्रियेटिव कौशल-कला के करिश्माई प्रस्तुति के साथ कमाई का भी परफेक्ट मौका, मार्केट मुहैय्या कराने का अद्भुत अवसर है।


नकवी ने कहा कि भारतीय फिल्म जगत का दादा साहेब फाल्के की पहली मूक फिल्म “राजा हरिश्चंद्र“ से शुरू हुआ सफर संघर्ष, सुधार, संकटों, समस्याओं और सफलता का साक्षी रहा है। वर्ष 1944 से 1960 के दशक तक की अवधि को फिल्म इतिहासकारों द्वारा भारतीय सिनेमा का “स्वर्ण युग“ माना जाता है, जब मनोरंजन प्रधान कलात्मक फिल्मों के निर्माण का बोलबाला था। 70 और 80 का दशक कामर्शियल “मसाला“ लेकिन दमदार पटकथा आधारित फिल्मों के निर्माण का शानदार दौर रहा; 90 के दशक में कॉर्पोरेट जगत ने धीरे-धीरे निर्माता के रूप में फिल्म उद्योग पर वर्चस्व कायम किया और फिल्म निर्माण “कलात्मक पैशन से ज्यादा कमर्शियल फैशन“ बन गया। नकवी ने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद समर्पित फिल्म निर्माता-निर्देशकों के कलात्मक जुनून ने भारतीय फिल्म उद्योग की साख बढाते हुए विश्व भर से भारतीय फिल्मों के कला, कौशल और कमाई की धाक-धमक क़ायम की और भारत को विश्व फिल्म निर्माण में 5वें पायदान पर खड़ा किया, भारत में प्रति वर्ष 20 से अधिक भाषाओं में 1900 से ज्यादा फ़िल्में और रिकार्ड 5000 हजार से अधिक लघु फ़िल्में बनाई, दिखाई जाती हैं। फिल्मों के साथ लघु फिल्में भी मनोरंजन और मीडिया मार्केट में अपने व्यापक विस्तार का कीर्तिमान स्थापित करती हुई, विश्व के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर प्रभावी प्रदर्शन कर रहीं हैं।

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