तीनों विधेयकों के कानून बनने के बाद न सिर्फ भारत की न्याय व्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि अपराधियों की रूह कांपने लगेगी। प्रताड़ना करने वालों को दंड मिलेगा। पुलिस गुंडागर्दी से मुक्ति और ब्रतानियां कानूनों की निशानियां खत्म होंगी। मतलब साफ है आपराधिक कानूनों से संबंधित विधेयक देश में पुलिस राज से मुक्ति और गुलामी की निशानियों को मिटाकर भारतीय परंपरा को स्थापित करने के लिए लाए गए हैं. इन विधेयकों से देश के लोगों को राहत पहुंचने वाली है. या यूं कहे तीनों कानूनों का मानवीकरण होगा। कहा जा सकता है मोदी सरकार मैकॉले की शिक्षा पद्धति को खत्म करने के बाद अब अंग्रेजों के समय के कानून को बदला गया है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या ब्रतानियां कानूनों की जगह नया कानून कारगर हो पायेगा, क्योंकि इसके लिए ब्रतानियां हुकूमत वाली पुलिसिया मानसिकता को भी बदलनी पड़ेगी। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो तू डाल-डाल मै पात-पात कहावत को चरितार्थ करती पुलिसियां गुंडागर्दी यूं कही चलती रहेगीएक सदी से भी अधिक पुराने हो चुके ब्रतानिया कानून की जगह तीन नए बिल प्रस्तुत किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है। राजद्रोह की जगह देशद्रोह कानून देश की संप्रभुता, सुरक्षा को प्रभावित करेगा। या यूं कहे नए विधेयकों का उद्देश्य देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पुनर्जीवित करना है, जिसमें “दंड“ के बजाय “न्याय“ पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. प्रस्तावित कानून पुलिस की जवाबदेही को मजबूत करने के लिए एक सख्त प्रणाली साबित होगी। 150 साल पुराना अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कानून खत्म होगा। नाबालिग से रेप और मॉबलिंचिंग जैसे क्राइम में फांसी की सजा दी जाएगी। सशस्त्र विद्रोह करने और देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर जेल होगी। बम धमाके करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। पहले रेप की धारा 375, 376 थी, अब जहां से अपराधों की बात शुरू होती है उसमें धारा 63, 69 में रेप को रखा गया है। गैंगरेप को भी आगे रखा गया है। बच्चों के खिलाफ अपराध को भी आगे लाया गया है। मर्डर 302 था, अब 101 हुआ है। गैंगरेप के आरोपी को 20 साल तक की सजा या जिंदा रहने तक जेल। 18, 16 और 12 साल की उम्र की बच्चियों से रेप में अलग-अलग सजा मिलेगी। 18 से कम से रेप में आजीवन कारावास और मौत की सजा। गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा या जिंदा रहने तक की सजा। 18 साल से कम की बच्ची के साथ रेप में फिर फांसी की सजा का प्रावधान रखा है। सहमति से रेप में 15 साल की उम्र को बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया है। अगर 18 साल की लड़की के साथ रेप करने पर नाबालिग रेप में आएगा।
अब दंड नहीं न्याय होगा
संसद में पेश किए गए तीन नए कानून की आत्मा भारतीय नागरिकों को संविधान में दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना, इनका उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा. भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा. देखा जाएं तो एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान और संगठित अपराधों और आतंकवाद पर नकेल कसने का काम भी किया है. कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है. एफआइआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है. सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा, पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी. 7 साल या इससे ज्यादा सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट को कंपल्सरी किया जा रहा है. इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी. मोदी सरकार नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए आज़ादी के 75 सालों के बाद पहली बार ज़ीरो एफआईआर को शुरू करने जा रही है, अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा. पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान जोड़ा जा रहा है, हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा. यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है.40 फीसदी केस समाप्त हो जाएंगे
पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा. पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 साल या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी. छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है. अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे. इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे. आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी. इस तरह 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा. कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे, बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा. इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा. सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए सरकार को 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमीशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा. घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्रावधान लेकर आए हैं, अंतरराज्यीय गिरोह और संगठित अपराधो के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सज़ा का नया प्रावधान भी इस कानून में जोड़ा जा रहा है. शादी, रोजगार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है, गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है.
मॉब लिचिंग पर नकेल कसेगा
18 साल से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है, मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं. मोबाइल फोन या महिलाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब इसके लिए भी प्रावधान रखा गया है. हमेशा के लिए अपंगता आने या ब्रेन डेड होने की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है. अनेक अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रावधान किया गया है. सजा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सज़ा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सज़ा में ही बदला जा सकेगा और किसी भी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा. मोदी सरकार राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त करने जा रही है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधिकार है. पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है. अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला किया है, सेशन्स कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सज़ा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो दुनिया में कहीं भी छिपा हो, उसे सज़ा के खिलाफ अपील करने के लिए भारतीय कानून और अदालत की शरण में आना होगा.
अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा
कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा. इस कानून में महिलाओं और बच्चो का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सज़ा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग न कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं.फिरहाल, भीड़ की हिंसा के खिलाफ नए कानून की आवश्यकता थी, जो पूरा हो गया। इसकी आवश्यकता इसलिए अधिक है, क्योंकि भीड़ की हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। बीते कुछ समय से तो आए दिन ऐसे समाचार सामने आ रहे हैं, जिनमें लोगों का उग्र समूह किसी संदिग्ध अथवा निर्दोष-निहत्थे व्यक्ति से अपने हिसाब से निपट रहा होता है। इस तरह की घटनाओं में लोगों की जान तक जा रही है। चूंकि भीड़ की हिंसा के मामले खुद न्याय करने की मनोवृत्ति के परिचायक हैं, इसलिए केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं। आम जनता को इसके लिए सचेत करने की भी जरूरत है कि कोई भी किसी को दंड देने का काम अपने हाथ में नहीं ले सकता और जो कोई भी ऐसा करेगा, वह कठोर दंड का भागीदार बनेगा। बेहतर यह होगा कि हाल में भीड़ की हिंसा के जो भी मामले सामने आए हैं, उनमें दोषी लोगों को दंडित करने का काम शीघ्रता से किया जाए। स्पष्ट है कि इसके लिए पुलिस के साथ-साथ न्याय प्रक्रिया को भी तत्परता का परिचय देना होगा। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में कानून तो कड़े कर दिए गए, लेकिन दोषी लोगों को आनन-फानन दंडित करने का सिलसिला कायम नहीं किया जा सका। केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भीड़ की हिंसा के मामले में ऐसा न होने पाए।
नए कानून में होंगी इतनी धाराएं
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी, उसमें अब 533 धाराएं रहेंगी. जबकि अब तक इसमें 478 धाराएं थी. 160 धाराओं को बदल दिया गया है. 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं जबकि 9 धाराओं को निरस्त किया गया है. इसी तरह भारतीय न्याय संहिता, जो आइपीसी को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी. 175 धाराओं में बदलाव किया गया है. 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है. इसी तरह भारतीय साक्ष्य विधेयक, में पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी. 23 धाराओं में बदलाव किया गया है. 1 नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं.
आरोपी की गैरमौजूदगी में भी ट्रायल होगा
देश में कई केस लटके हुए हैं, बॉम्बे ब्लास्ट जैसे केसों के आरोपी पाकिस्तान जैसे देशों में छिपे हैं। अब उनके यहां आने की जरूरत नहीं है। अगर वे 90 दिनों के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं होते हैं तो उसकी गैरमौजूदगी में ट्रायल होगा, फांसी भी होगी, जिससे आरोपियों को उस देश से वापस लाने की प्रोसेस आसान होगी। अब लंबे समय तक किसी को जेल में नहीं रख सकते, अगर उसने सजा का एक तिहाई समय जेल में गुजार लिया है तो उसे रिहा किया जा सकता है।
आधी सजा काटने पर मिल सकती है रिहाई
गंभीर मामलों में आधी सजा काटने के बाद रिहाई मिल सकती है। जजमेंट सालों तक नहीं लटकाया जा सकता। मुकदमा समाप्त होने के बाद जज को 43 दिन में फैसला देना होगा। निर्णय देने के 7 दिन के भीतर सजा सुनानी होगी। पहले सालों तक दया याचिकाएं दाखिल की जाती थीं। दया की याचिका दोषी की कर सकता है पहले कोई एनजीओ या कोई संस्थान ऐसी याचिकाएं दाखिल करता था। सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद 30 दिन के भीतर ही दया याचिका दाखिल की जा सकेगी।
तीनों कानूनों का मानवीकरण होगा
नए कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानव के अधिकार और सबके साथ समान व्यवहार के तीन सिद्धांतों के आधार पर बनाए जा रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार अपराध न्याय प्रणाली से जुड़े तीनों कानूनों का मानवीकरण होगा। नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करने वाले कानूनों को प्राथमिकता दी गई है। उसके बाद मानव अधिकारों से जुड़े कानूनों और देश की सुरक्षा से संबंधित कानूनों को प्राथमिकता दी गई है। अब आरोपी को याचिका दायर करने के लिए सात दिन मिलेंगे। न्यायाधीश को उन सात दिनों में सुनवाई करनी होगी। मामले का ट्रायल शुरू करने के लिए अधिकतम 120 दिन का समय मिलेगा। पहले प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा नहीं थी। अब अगर कोई अपराध के 30 दिनों के भीतर अपना अपराध स्वीकार कर लेता है तो सजा कम होगी। ट्रायल के दौरान दस्तावेज पेश करने का कोई प्रावधान नहीं था। हमने इसे अनिवार्य कर दिया है। 30 दिनों के भीतर सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएंगे। इसमें कोई देरी नहीं की जाएगी।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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