- काले तिल, काले उड़द, सिंदूर, चमेली सहित अन्य किया अर्पण, शांति और समृद्धि के लिए काल भैरव पूजा
काल भैरव अष्टमी के पावन अवसर पर शहर के बड़ा बाजार-चरखा लाइन के मध्य में स्थित शहर कोतवाल बाबा काल भैरव के नाम से प्रसिद्ध मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ महा आरती का आयोजन किया गया। इसके उपरांत छप्पन भोग के साथ सर्व प्रथम कन्याओं को भोज के बाद भंडारे का आयोजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। इस संबंध में जानकारी देते हुए आयोजन समिति के रामू सोनी और समाजसेवी संजय सोनी ने बताया कि छावनी सहित आस-पास के क्षेत्र में आस्था का केन्द्र इस मंदिर में प्रतिवर्ष काल भैरव अष्टमी पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस साल इस दो दिवसीय कार्यक्रम में बाबा का विशेष अभिषेक, श्रृंगार और भंडारे का आयोजन के साथ ही ब्राह्मणजनों का सम्मान किया गया। आयोजन समिति के मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि पहले दिन भैरव नामावली और भैरवाष्टक का पाठ आदि का आयोजन किया गया। काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं। भगवान भैरव के बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख रूप हैं। इनमें से भक्त बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है-असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। मंगलवार को काल भैरव अष्टमी है और इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है या भैरव मंदिर में जाकर भैरव की पूजा होती है। काल भैरव को भगवान शिव का अवतार बताया जाता है, जिन जातकों की कुंडली में राहु ग्रह बक्री चल रहा है या नकारात्मक फल दे रहा है तो इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए काल भैरव की आराधना करना चाहिए. भैरव की आराधना से साल भर के लिए लौकिक और पारलौकिक विघ्न टल जाने से साधक की आयु बढ़ेगी. साथ ही तांत्रिक प्रयोग भी नष्ट हो जाते हैं। भगवान शिव के दो रूप हैं भैरवनाथ और विश्वनाथ। पहला रूप भैरवनाथ का पापी, धर्मद्रोही और अपराधियों को दंड देने वाला है। दूसरा रूप विश्वनाथ जगत की रक्षा के लिए माना गया है। भैरव के दिन रविवार तथा मंगलवार माने जाते हैं।
तीन तरह के गुण बताए गए हैं-सत्व, रज और तम उन्होंने बताया कि शास्त्रों में कुल तीन तरह के गुण बताए गए हैं-सत्व, रज और तम। इन तीन गुणों से मिलकर ही सृष्टि की रचना हुई है। शिव जी इन तीनों गुणों के स्वामी हैं। शास्त्रों में अनेक भैरव बताए हैं। इन तीनों गुणों के अलग-अलग तीन भैरव बटुक, काल और आनंद हैं। बटुक भैरव-बटुक भैरव को भैरव महाराज का सात्विक और बाल स्वरूप माना जाता है। इनकी पूजा से भक्त को सभी तरह के सुख, लंबी आयु, अच्छी सेहत, मान-सम्मान और ऊंचा पद मिल सकता है। काल भैरव-ये स्वरूप भैरव का तामस गुण को समर्पित है। ये स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है, इनकी कृपा से भक्त का अनजाना भय दूर होता है। काल भैरव को काल का नियंत्रक माना गया है। इनकी पूजा से भक्त के सभी दुख दूर होते हैं, शत्रुओं का प्रभाव खत्म होता है। आनंद भैरव-ये भैरव का राजस स्वरूप है। देवी मां की दस महाविद्याएं हैं और हर एक महाविद्या के साथ भैरव की भी पूजा होती है। इनकी पूजा से धन, धर्म की सिद्धियां मिलती हैं।
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