कवि बसंत त्रिपाठी ने आयोजन में अपनी अनेक चर्चित कविताओं का पाठ किया जिनमें 'टूटा हुआ पंख', 'चलन से बाहर एक अठन्नी', 'इस बार बारिश,घर और पड़ोस' प्रमुख थीं। त्रिपाठी ने अपनी कुछ प्रतिनिधि प्रेम कविताओं का भी पाठ किया जिनमें 'घड़ी दो घड़ी' व 'मैं तुमसे प्यार करता हूं' को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। कवि विवेक निराला ने कविता पाठ के अंतर्गत 'नागरिकता', 'भाषा', 'तबला', 'असुविधा', 'कथा', 'अभिधा की एक शाम' व 'बाबा और तानपुरा' को पर्यापत सराहना मिली। निराला ने बताया कि आजकल वे छंदों में 'उद्धव शतक' का काव्य सृजन कर रहे हैं जिसकी प्रेरणा उन्हें महाकवि निराला जी से मिली है और इसके पीछे छंद के सामयिक महत्त्व व जरूरत भी शामिल है। हाल ही में राजस्थान में एक दलित बच्चे को मटके से पानी पी लेने पर मिली सजा के प्रसंग पर निराला ने 'छुई न जाए कोई मटकी' शीर्षक से एक अत्यंत मार्मिक कविता का पाठ किया। यह कविता सीधे तौर पर हमारे समाज में व्याप्त जाति,धर्म,छुआछूत जैसी भेदभाव ग्रस्त मानसिकता पर निर्मम व्यंग्य है।
आयोजन के अंतिम भाग में सवाल -जवाब सत्र में दोनों कवियों ने अनेक सवालों के जवाब दिए और साहित्य तथा समाज के सम्बन्ध में उपयोगी चर्चा की। विवेक निराला ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अगर बहुत अधिक कविता लिखी जा रही है और इसका प्रकाशन बढ़ रहा है तो यह चिंता की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि यह आलोचना के लिए चुनौती अवश्य है कि वह अपने समय की वास्तविक रचनाशीलता की पहचान करे और उसे प्रतिष्ठापित करे। हिन्दी विभाग में आचार्य डा रामेश्वर राय ने आयोजन में कहा कि समकालीन कविता राजेश जोशी और अरुण कमल से आगे भी विकास कर रही है, इसके लिए हमें अपने युवा तथा समकालीन कवियों को ध्यान से पढ़ना होगा। चर्चा में भाग लेते हुए डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर ने कहा कि वर्तमान कविता का मुहावरा और सम्प्रेषणीयता भी एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग है जिस पर ध्यान देना होगा क्योंकि अगर कविता को व्यापक पाठक समुदाय तक पहुंचना है तो उसे अधिक लोकोन्मुख होना होगा। इससे पहले विभाग के प्राध्यापक डॉ पल्लव और डॉ नौशाद अली ने कवियों को शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया वहीं डॉ रामेश्वर राय और डॉ नीलम सिंह ने दोनों को पौधे भेंट किये। पायल सैनी और विशाल मंच संयोजन किया वहीं रक्षित और सचिन ने कवियों का परिचय दिया। हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष आकाश मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। आयोजन में बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी और शिक्षक उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें