जी हां, तमाम मुद्दों की अपनेक्षा इस वक्त राम मंदिर निमंत्रण बड़ा मुद्दा बन गया है। विपक्ष इसे “धार्मिक राजनीतिक बता रही है, तो भाजपा उसे राम विरोधी बताने में जुटी है। मतलब साफ है राम के नाम पर छिड़ा सियासी संग्राम विपक्ष के लिए एक तरफ खाई तो एक तो तरफ कुंआ वाली कहावत बन गया है। दरअसल इंडिया गठबंधन में शामिल अधिकतर पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए खुद को राम मंदिर आंदोलन से दूर रखती आईं हैं. आरजेडी और सपा की सरकारों ने राम मंदिर आंदोलन के खिलाफ अपने कठोर एक्शन के चलते इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में घुसते ही केवल रोका ही नहीं गया बल्कि आडवाणी की गिरफ्तारी भी हुई. बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव मुस्लिम वोटर्स के बीच ऐसा हीरो बने कि आज भी अल्पसंख्यकों का वोट आरजेडी को ही जाता है. यूपी में 1990 में ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाकर आंदोलन को जबरन दबाने का श्रेय यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ले चुके हैं. लेकिन कांग्रेस अब अपने परंपरागत वोटर्स रहे मुसलमानों को फिऱ से अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या वोटबैंक खिसकने के डर से विपक्ष राम मंदिर का बॉयकाट कर रहा है?फिरहाल, मोदी योगी युग के दस 10 सालों में देश की राजनीति में इतना बदलाव आया है कि हर पार्टी यह दिखाने की कोशिश करने लगी है कि वो हिंदुओं की दुश्मन नहीं है. लेकिन वो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हिंदू हितों की अवहेलना करने से बाज नहीं आ रही है. यही अवहेलना हिन्दू एकजुटता का मिसाल बन रहा है, जो भाजपा के लिए रामबाण से कम नहीं है। मामला उस वक्त सोने पर सुहागा हो गया, जब अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन की तारीख 22 जनवरी के भव्य लोकार्पण समारोह में विपक्ष के प्रमुख राजनेताओं को निमंत्रण भेजा जाने लगा। कई राजनेताओं को के हाथों में जब निमंत्रण पहुंचा तो वे सीधे मीडिया से मुखातिब होते हुए बॉयकाट का सुर अलापने लगे। कईयों ने सवाल तक पूछा, क्या देश के प्रधानमंत्री का मंदिरों में जाना संविधान के खिलाफ नहीं है?
ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है, क्या बीजेपी को राम मंदिर का चुनावी फायदा मिलता देख विपक्षी दल परेशान हो रहे हैं? अगर नही ंतो पीएम मोदी के हाथों होने जा रहे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर इतनी हायतौबा मचाने की क्या जरुरत है? सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अगर नहीं जाते हैं तो बीजेपी को कांग्रेस नेताओं को एंटी हिंदू साबित करने की क्या जरुरत है? माना कि अखिलेश यादव या उनकी पार्टी के नेता जाते है तो उनका मुस्लिम वोटबैंक बीएसपी की तरफ शिफ्ट होने का खतरा हो जाएगा. यही हाल कांग्रेस का है, उसके नेता समारोह में शामिल होते हैं तो मुस्लिम वोट सपा-बसपा में जा सकता है। यही हाल नीतीश कुमार और तेजस्वी के लिए भी है. नीतीश कुमार एक तरफ हिंदुओं को खुश करने के लिए बिहार सरकार के खर्च पर सीता माता का मंदिर बनवा रहे हैं, तो दुसरी तरफ राम मंदिर समारोह में जाने से कन्नी भी कांट रहे है। बता दें, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बीजेपी, आरएसएस और विहिप के बड़े-बड़े पदाधिकारियों के अलावा मंदिर के लिए जिन्होंने मोटा चंदा दिया है उनको निमंत्रण भेजा है. इस निमंत्रण को लेकर सियासी जंग छिड़ी हुई है. कई विपक्षी दलों को न्योते का इंतजार है. वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें न्यौता मिला लेकिन उन्होंने जाने से इनकार कर दिया है. इंडिया गठबंधन की पार्टियों का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने या न होने का मुद्दा गरम होता जा रहा है. कांग्रेस समेत कई पार्टियों के लिए मुश्किल हो गई है कि वह क्या करें? वामपंथी पार्टियों ने पहले ही अयोध्या न जाने का एलान कर दिया है. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर राजनीति तो होनी ही थी. बीजेपी ने फिलहाल विपक्ष को आमंत्रण देकर गुगली फेंक दिया है. इंडिया गठबंधन के बहुत से साथियो के लिए ऊहापोह की स्थिति पैदा हो गई है. फिलहाल बीजेपी यही चाहती भी थी. इंडिया गठबंधन की 19 दिसंबर वाली बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि राम मंदिर का श्रेय लेने से किस तरह बीजेपी को रोका जाए. पर राममंदिर को लेकर बीजेपी की आक्रामक रणनीति में विपक्ष बुरी तरह फंस गया है. कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर अन्य दल अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या स्टेप लेना है. सीपीएम नेता बृंदा करात का कहना है कि उनकी पार्टी धर्म को राजनीति से जोड़ने में भरोसा नहीं करती. इसलिए उनकी पार्टी ने इस कार्यक्रम में नहीं जाने का फ़ैसला किया है.
जबकि राम मंदिर का निर्माण भाजपा के लिए एक प्रमुख मुद्दा रहा है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा इस मुद्दे को जोरशोर से उठाएगी. केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने बृंदा करात पर पलटवार करते हुए कहा, “... निमंत्रण सभी के लिए भेजे गए हैं, लेकिन केवल वे ही आएंगे जिन्हें भगवान राम ने बुलाया है.“ हालांकि वामपंथी नेता अकेले विपक्षी राजनेता नहीं हैं, जिन्होंने राम मंदिर के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है. पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि “भगवान राम मेरे दिल में हैं“ और इसलिए, उन्हें समारोह में शामिल होने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई, जो संभवतः चुनाव से पहले भाजपा द्वारा शक्ति प्रदर्शन होगा. सिब्बल ने कहा, “मैं आपसे जो कहता हूं वह मेरे दिल से है... क्योंकि मुझे इन चीजों की परवाह नहीं है. अगर राम मेरे दिल में हैं, और राम ने मेरी यात्रा में मेरा मार्गदर्शन किया है, तो इसका मतलब है कि मैंने कुछ सही किया है.“ लेकिन सच तो यही है कि प्रतिद्वंद्वी अगर निमंत्रण स्वीकार करते हैं, तो उसे संभावित रूप से अल्पसंख्यक वोटों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. ये वोट ऐसे राज्य में महत्वपूर्ण हैं, जहां 80 लोकसभा सांसद हैं और जहां मुसलमानों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है. ऐसे में कांग्रेस अब तक अपनी प्रतिक्रिया देते समय सतर्क रही है. महासचिव केसी वेणुगोपाल ने निमंत्रण की पुष्टि की और मीडिया से कहा, “आपको पार्टी के रुख के बारे में बताया जाएगा...आपको 22 जनवरी को पता चल जाएगा.“ “उन्होंने (भाजपा ने) हमें आमंत्रित किया. हमें आमंत्रित करने के लिए हम बहुत आभारी हैं. इधर, डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने अपने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि “भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताने वाले कांग्रेस के नेताओं याद करो, भाजपा की चार चुनी सरकारों को तुमने बर्खास्त किया, बेगुनाह रामभक्तों को गोलियों से भूना गया तब नक़ली, अवसरवादी और चुनावी रामभक्त कहां थे, अब भव्य-श्रीराम-जन्मभूमि-मंदिर का निमंत्रण नहीं पाने से व्याकुल हो गए हो!“ सलमान खुर्शीद के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रिय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, “अगर सलमान खुर्शीद जी और बाकी दलों की यह एक्चुअल दिल की बात होती तो उनके कार्यकाल में उनके मुंह से राम मंदिर को लेकर एक शब्द क्यों नहीं निकला? उनके कार्यकाल में राम मंदिर स्थापना की बात पर कोई कार्य क्यों नहीं हुआ? चीत भी मेरी पट भी मेरी यह नहीं चलेगा. ये कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण ही संभव हो पाया है. अगर कुछ लोग इसमें शामिल होना चहाते हैं, तो उनका स्वागत है. पर अगर कुछ लोग कहे हमारा क्या हुआ तो शायद उनको अपने गिरेबान में झाकना चाहिए.
न्योते से खुशी से ज्यादा विपक्ष की उलझन
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विपक्ष के कई नेताओं को निमंत्रण मिला है। हालांकि, इस न्योते से खुशी से ज्यादा उनकी उलझन बढ़ गई है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाएं कि नहीं। वे नहीं जाते हैं तो हिंदू विरोधी का टैग लगाने में बीजेपी देर नहीं करेगी। जाने पर मुस्लिम वोटर खफा होंगे। मतलब साफ है विपक्ष के नेताओं को न्योता भेजकर बीजेपी ने उन्हें पूरी तरह उलझा दिया है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बीजेपी राम मंदिर का पूरा श्रेय अपने खाते में लेगी। पिक्ष को इस बात का डर है। उसे पता है कि बीजेपी समारोह को इतना बड़ा और भव्य बनाएगी कि दुनिया देखेगी। विपक्ष के सामने दुविधा यह है कि वह आयोजन में जाने से मना करेगा तो फंसेगा, वहां जाएगा तो भी। लोकसभा चुनाव में तय है कि बीजेपी राम मंदिर का श्रेय लेगी। इसका श्रेय लेने से उसे कैसे रोका जाए, इस पर भी विपक्षी दलों में मंथन हो चुका है। बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे पर विपक्ष को पूरी तरह धर्मसंकट में डाल दिया है। विपक्ष के जिन नेताओं को निमंत्रण मिला है, उनमें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, अधीर रंजन चौधरी, सीताराम येचुरी सहित कई नाम शामिल हैं। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई मंत्रियों और 4000 संतों के शामिल होने की उम्मीद है। कांग्रेस के नेता कार्यक्रम में गए और सपा-बसपा ने इससे दूरी बनाई तो मुस्लिम वोटरों का समीकरण बिगड़ सकता है। दरअसल, उस स्थिति में मुसलमान मतदाता सपा और बसपा का रुख कर सकते हैं। कांग्रेस ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी। इसकी भी वजह है। हाल के कुछ वर्षों में कांग्रेस मुसलमानों का भरोसा जीतते हुए दिखी है। तेलंगाना में कांग्रेस की फतह इसकी बानगी है। वहां बीआरएस से पल्ला छुड़ाकर मुसलमानों ने कांग्रेस का हाथ थामा। सबसे ज्यादा संसदीय सीटों वाले यूपी का उदाहरण लें तो यहां सपा की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम मतदाता के साथ उसका खड़ा होना है। बसपा और कांग्रेस को भी उनका वोट मिलता है। बीजेपी को चुनौती देने वाली पार्टी की तरफ मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ता है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस बीजेपी को सबसे बड़ी चुनौती पेश करती है। ऐसे में कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को नाराज नहीं करना चाहेगी।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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