मध्य प्रदेश में यादव चेहरे को सीएम बनाकर बीजेपी ने बड़ा दांव चला है। मोहन यादव के सीएम बनने के बाद बिहार-यूपी में यादव वोटों के दावेदार टेंशन में आ गए हैं। इसका सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। मोहन यादव ऐसे पहले मुख्यमंत्री है, जिन्हें भाजपा में जगह मिली है। राजनीतिक चाणक्यों की मानें तो 2024 के मद्देनजर भाजपा का मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर यूपी व बिहार सहित अन्य राज्यों के यादवों को अपने पाले में लाने का प्रयोग है। भाजपा के इस शतरंजी ’चक्रव्यूह’ को विपक्ष कितना भेद पायेगा, ये तो वक्त बतायेंगा, लेकिन बड़ा सवाल तो यही है, क्या 2024 में यूपी के करीब 10 से 12 व बिहार के 14 फीसदी वोटर्स यादव समुदाय को भाजपा अपने पाले में ला पायेंगा? या यू कहें भाजपा का यह दांव अखिलेश व लालू-तेजस्वी के यादवी तिलिस्म को तोड़ पायेगा? खासतौर से तब जब यादव सपा व राजद का कोर वोटर माना जाता है. यह अलग बात है कि भाजपा के इस दांव से सपा व राजद की मुश्किलें जरुर बढ़ने वाली हैंफिरहाल, मध्य प्रदेश में भाजपा ने सारे अटकलों व समीकरणों की तिलांजलि देते हुए मोहन यादव को नया मुख्यमंत्री बनाकर विपक्षी दलों के लिए एक बड़ा झटका तो दे ही दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक चाल से विरोधियों को चित कर दिया है। इसके साथ ही बिहार-यूपी में यादव वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं को सोचने पर अब मजबूर कर दिया है। शिवराज सिंह चौहान के बाद एमपी में मोहन यादव बीजेपी को भाए हैं। यादव जाति से आने वाले मोहन की संघ में अच्छी पकड़ है। इनके जरिए बीजेपी बिहार और यूपी को साधने की कोशिश करेगी। माना जा रहा है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए यूपी, बिहार और हरियाणा के यादव वोटर्स को साधने के लिए यह प्लान तैयार किया है. जहां बिहार में यादव वोटर्स की आबादी 14.26 प्रतिशत है तो वहीं हरियाणा की कुल जनसंख्या के 10 प्रतिशत यादव वोटर्स हैं. खासतौर से उस दौर में जब विपक्षी दलों द्वारा बीते लंबे समय से भाजपा को ब्राह्मण-बनिया पार्टी का टैग देते रहे हो। हालांकि, विभिन्न प्रदेशों में आदिवासी, ओबीसी सीएम या फिर द्रौपदी मूर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने जैसे कदमों से भाजपा ने हमेशा से ही विपक्षी दलों को जवाब दिया है।
अब छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरे विष्णुदेव साय और मध्य प्रदेश में यादव चेहरे मोहन यादव को सीएम बनाकर भाजपा ने विपक्षी दलों की बोलती बंद करने का प्रयास किया है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या कांग्रेस, राजद, जेडीयू समेत विभिन्न विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना की मांग का जवाब है? बता दें, विपक्ष इन दिनों भाजपा पर आदिवासी और ओबीसी समाज का विरोधी होने के आरोप लगा रही है। यह अलग बात है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम और मध्य प्रदेश में यादव सीएम बनाकर भाजपा विपक्ष के जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भी बड़ी चोट की है। देखा जाएं तो बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में यादव समाज की अच्छी-खासी आबादी है। आम-तौर पर यादव समाज को लालू प्रसाद यादव की राजद और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी जैसे ही दलों का वोटर माना जाता रहा है। हालांकि, भाजपा ने मध्य प्रदेश में यादव मुख्यमंत्री बनाकर पूरे देश में एक बड़ा संदेश दिया है। पार्टी का ये कदम आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को बड़ी बढ़त दिला सकता है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने मोहन यादव के जरिए 2024 का एजेंडा सेट किया है। इससे बिहार-यूपी के यादव नेताओं में खलबली मचनी तय है। क्योंकिइससे पहले बीजेपी का कोई भी सीएम ’यादव’ नहीं था। माना जा रहा है कि इसका सबसे ज्यादा इम्पैक्ट बिहार-यूपी में पड़ेगा। या यूं कहे पीएम मोदी ने भोपाल से लालू यादव और अखिलेश यादव को संदेश दिया है कि अब यादव वोटर उनके पाले में होंगे।
बता दें, बिहार-यूपी में लोकसभा की 120 सीटें हैं। केंद्र की सरकार के लिहाज से ये काफी मायने रखती है। इन दोनों राज्यों में ज्यादातर यादव वोट लालू यादव और अखिलेश यादव की पार्टियों को मिलते हैं। यादव वोटरों पर इनका एकछत्र राज है। इन्हीं यादव वोटरों की बदौलत दोनों ही राज्यों में दोनों नेताओं की सियासत चलती है। बिहार में हुए हालिया कास्ट सर्वे में सबसे ज्यादा आबादी वाली जाति यादव ही है। लिहाजा, वोटों के लिहाज से इनका महत्व बढ़ जाता है। इसे लेकर यूपी बिहार की राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है. लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए बीजेपी का यह चक्रव्यूह यूपी के समीकरण बिगाड़ सकता है? इसका सबसे अधिक असर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव व बिहार के राजद नेता लालू व तेजस्वी यादव पर भी पड़ सकता है. क्योंकि मोहन यादव भी यादव समाज से आते हैं। उत्तर प्रदेश में से करीब 10 से 12 फीसदी वोटर्स यादव समुदाय के हैं और इसे सपा का कोर वोटर माना जाता है. लोकसभा चुनाव 2019 में सपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें दो सीट आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली. कछ ऐसा ही बिहार में भी है। बिहार में लालू एंड कंपनी यादव वोटों के सहारे ही खड़ा हैं। बिहार में यादवों की आबादी 14.26 फीसदी है। यह बिहार का सबसे बड़ा वोट बैंक है। प्रधानमंत्री मोदी को बिहार में यादव वोटों में सेंधमारी की कोशिश है। उसका लाभ उन्हें 2020 के विधानसभा चुनाव में मिला था। बीजेपी ने बिहार में यादवों वोटों में सेंधमारी के लिए रामकृपाल यादव और नित्यानंद राय को आगे किया था। दोनों बिहार में यादवों के कद्दावर नेता हैं। इसके बाद बिहार में यादव वोटों में बिखराव हुआ था। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी यूपी में 10 सालों से सत्ता के लिए संघर्ष कर रही है। मतलब साफ है एमपी में मोहन यादव को सीएम बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन क्षत्रपों की टेंशन बढ़ा दी है। इसके बाद आगे की राहें आसान नहीं होने वाली है।
दरअसल, कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए ओबीसी पर बड़ा दांव लगा रहा है। बिहार में जातीय जनगणना के बाद कांग्रेस तमाम चुनावी राज्यों में वादा कर रही थी कि हम जातीय जनगणना करवाएंगे। इसके साथ ही ओबीसी के प्रतिनिधित्व का जिक्र करती थी। कांग्रेस के इन वादों को हिंदी भाषी राज्यों के लोगों ने नकार दिया है। इसके बाद बीजेपी को ट्रंप कार्ड मिल गया है। अब बीजेपी ओबीसी के मुद्दे पर फ्रंटफुट पर बैटिंग करेगी। मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी एमपी में ओबीसी वोटरों को तो साधेगी ही। साथ में बिहार-यूपी में इनका इस्तेमाल करेगी। लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी। नवंबर 2025 में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी इसका असर दिखेगा। मोहन यादव उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं. वह शिवराज सिंह चौहान सरकार में शिक्षा मंत्री रहे हैं. उन्होंने लगातार तीसरी बार विधायकी का चुनाव जीता है. मोहन यादव मध्य प्रदेश में बीजेपी का बड़ा ओबीसी चेहरा हैं. मोहन यादव की शैक्षणिक योग्यता पीएचडी है. वह 2020 में उन्हें शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी और 2023 तक वह इस पद पर रहे. 58 वर्षीय मोहन यादव का राजनीतिक करियर एक तरह से 1984 में शुरू हुआ जब उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ज्वाइन किया. वह आरएसएस के भी सदस्य हैं. उन्होंने 2013 में उज्जैन दक्षिण से चुनाव लड़ा था और लगातार तीसरे चुनाव में यहां से विधायक निर्वाचित हुए हैं. इस बार उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी चेतन प्रेमनारायण यादव को 12941 वोटों से हराया था. मोहन यादव को 95699 वोट मिले थे. वह 2004 से पहले 2010 तक उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे हैं जबकि 2011 से 2013 तक एमपी राज्य पर्यटन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली है.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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