- हमें भगवद गीता का ध्यानपूर्वक श्रवण एवं इसे पढऩा चाहिए : पंडित सचिन त्रिवेदी
सीहोर। शहर के सैकड़ाखेड़ी स्थित संकल्प वृद्धाश्रम में श्रद्धा भक्ति सेवा समिति के तत्वाधान में हर साल की तरह इस साल भी गीता जयंती का दो दिवसीय महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर सुबह से लेकर देर शाम तक भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया, वहीं शाम को पांच बजे ब्राह्मण समाज की ओर से राजेश शर्मा और परमार समाज की ओर से विष्णु परमार, जिला संस्कार मंच की ओर मनोज दीक्षित मामा सहित अन्य ने यहां पर मौजूद बुजुर्गों सहित अन्य को गीता की प्रतियां वितरित की गई। इस मौके पर श्रद्धा भक्ति सेवा समिति की ओर से संकल्प वृद्धाश्रम के संचालक राहुल सिंह ने गीता की महत्ता बताते हुए कहा कि भगवद गीता भगवान के मुख से निकली है। हमें भगवद गीता का ध्यानपूर्वक श्रवण एवं इसे पढऩा चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं। गंगा भगवान के चरणों से निकली है। ठीक उसी तरह भगवद गीता भी भगवान के मुखारविंद से निकली है। इसलिए हमें गीता रुपी गंगा में स्नान करके भवसागर से पार होने के लिए प्रयत्शील रहना चाहिए। वहीं ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री शर्मा ने कहा कि गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी के पावन अवसर पर भारत में वैदिक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए तथा सनातन धर्म में भागवत गीता के बारे में जानकारी प्रदान करने तथा घर-घर तक गीता का ज्ञान पहुंचने के लिए श्रीमद् भागवत गीता की पुस्तकों का वितरण किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ उज्जैन स्थित शनि मंदिर के पुजारी सचिन त्रिवेदी ने कहा कि गीता, वेदों और उपनिषदों का सार, इस लोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म, ज्ञान और भक्ति- तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य के परम श्रेय के साधन का उपदेश करने वाला अद्भुत ग्रंथ है। इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गंभीर सात्विक उपदेश भरें हैं, जो मनुष्य को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बिठा देने की शक्ति रखते हैं। मनुष्य का कर्तव्य क्या है? इसका बोध कराना गीता का लक्ष्य है। गीता सर्वशास्त्रमयी है। श्रीकृष्ण ने किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, अपितु मनुष्य मात्र के लिए उपदेश दिए हैं। जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख सभी को समान समझने के बाद फिर युद्ध करना चाहिए। इस तरह युद्ध करने से पाप नहीं लगता है। गीता के इस श्लोक में मनुष्य को जीवन की सभी परिस्थितियों में समान रूप से व्यवहार करने के लिए कहा गया है। फिर वो चाहे अच्छी हालात हो या बुरे, इंसान को अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए। इस तरह का व्यवहार जो भी रखेगा, ऐसा इंसान कभी परेशान नहीं होगा।
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