लोकसभा चुनाव के तारीखें का शंखनाद होने में अभी तीन माह से भी अधिक का वक्त है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां मैदान मारने के लिए अभी से मुद्दे गढ़ने लगे है। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस बार जातीय जनगणना, महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर जनमानस का ध्यान अपनी ओर खींचने की उधेड़बुन में जुटी है तो भाजपा का एक बार फिर 2014 की तर्ज पर राम मंदिर निर्माण मास्टरस्ट्रोक साबित होने वाला है। मतलब साफ है बीजेपी जहां अयोध्या में राम मंदिर के भव्य निर्माण के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगी, वहीं विपक्ष ’इंडिया’ गठबंधन अभी मोदी का विकल्प खोजने लगा हुआ है. बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन भाजपा ने भव्य एव दिव्य श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी को इतिहास में अब तक का न सिर्फ सबसे बड़ा इवेंट बनाने में जुटी है, बल्कि 50 फीसदी वोट हासिल करने का रोडमैप तैयार कर लिया है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही क्या राम मंदिर फिर करेगा बीजेपी का बेड़ा पार या हिंदुत्व पर भारी पड़ेगा जाति का मुद्दा? हालांकि भाजपा के 2 सीटों से 303 सीटों तक पहुंचने में राम मंदिर एक अहम मुद्दा रहा है। 1984 में भाजपा को महज 2 सीटें मिली थीं, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले 303 सीटें हासिल की। लेकिन बीते दो चुनाव भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि रहे। 2014 का चुनाव राम मंदिर मुद्दे पर लड़ा। आखिरकार जनता ने जीत का सेहरा बांधाफिरहाल, श्रीराम जन्मभूमि की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी को दुनिया का सबसे बड़ा इवेंट बनाने की हर संभव कोशिश में है। या यूं कहे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 22 जनवरी को पीएम मोदी अयोध्या में भगवान रामलला की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे। इसके साथ ही देश के 5 लाख से अधिक मंदिरों में विशेष अनुष्ठान होंगे। इसी दिन शाम को को देशभर में दिवाली की तरह घर-घर दीप जलाए जाएंगे। खास यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा ने 2024 का एजेंडा भी तय कर दिया है। चुनाव श्रीराम मंदिर, बाबा विश्वनाथ धाम, महाकाल के साथ-साथ ज्ञानवापी व श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। दरअसल, ज्ञानवापी व श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद कोर्ट में लंबित है। जबकि राम मंदिर मामले को सुलझाने से लेकर प्राण प्रतिष्ठा का श्रेय खुद को बताने में जुटी है। दिन प्रतिदिन यह मुद्दा बड़ा और चर्चित होता जा रहा है। अब यह बहस छिड़ गई है कि जिस प्रकार 2014 में भाजपा राम जन्मभूमि के मुद्दे पर सत्ता में आई थी। क्या 2024 में सत्ता पाने के लिए वह इस बार भी चुनावी मुद्दा बनाएगी? इधर, बीजेपी के कार्यकर्ता नारे लगाने लगे हैं कि ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी और मथुरा बाकी है’। सूत्रों की मानें तो पीएम मोदी के कृष्ण जन्मभूमि व ज्ञानवापी बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे में हैं। बीजेपी इसी बहाने हिंदुत्व की धार बनाए रखना चाहती है।
दिल्ली में बीजेपी पदाधिकारियों की बैठक में पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर लड़ाई तेज करने के निर्देश दिए गए हैं. बीजेपी ने पदाधिकारियों से राम मंदिर को लेकर पार्टी ने जो प्रयास किए हैं, उनकी जानकारी जन-जन तक पहुंचाने का निर्देश दिया है. दो दिन तक चली बीजेपी राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने यानी ओवरऑल 50 फीसदी वोट पाने और बहुत बड़े मार्जिन के साथ चुनाव जीतने का लक्ष्य रखा गया है. इतना ही नहीं गृहमंत्री ने बैठक में मौजूद बीजेपी नेताओं से कहा कि इस बार इतनी बड़ी जीत हासिल करनी है कि विपक्ष हमारे सामने खड़ा होने में भी 10 बार सोचे. साथ ही राम मंदिर उद्घाटन समारोह से जुड़े कार्यक्रमों को बड़ा बनाने का लक्ष्य तय किया गया. 1 जनवरी से बीजेपी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर अक्षत बांटने, मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित करवाने, मंदिरों में दीप जलाने जैसे कार्यक्रम से जुड़ेंगे. बीजेपी ने करीब 10 करोड़ परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है. साथ ही उन्हें यह भी कहा गया कि वह जनता के बीच इस बात को जरूर बताएं कि विपक्षी दलों ने दशकों से कानूनी विवाद में फंसे इस मुद्दे को हल करने में कई बाधाएं पैदा कीं। 2019 में उसे 22.9 करोड़ वोट मिले थे। 2019 के चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को 37 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। जबकि उसके नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को करीब 45 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में अपना वोट प्रतिशत 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किया है और कुछ चुनावों में उसे सफलता भी मिली। राज्यों में हाल की जीत के पीछे यह मंत्र भी था जिसे अब पार्टी लोकसभा चुनाव में आगे लेकर बढ़ रही है। बीजेपी 2019 में 303 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी अब पार्टी ने 350 सीटों का नया टारगेट सेट किया है। बैठक के पहले दिन प्रधानमंत्री ने महिलाओं, युवाओं, किसानों और गरीबों तक पहुंचने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिन्हें वह अक्सर चार सबसे बड़ी ’जातियां’ बताते रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेताओं से कहा कि वे अधिक से अधिक संख्या में इन लोगों को ’विकसित भारत संकल्प यात्रा’ से जोड़ें, जिसका उद्देश्य उनकी सरकार की प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं को शत प्रतिशत पूरा करना है।
हिंदुत्व बनाम जाति जनगणना
जब 2019 में मंदिर के निर्माण का रास्ता न्यायालय से खुला तो फिर भाजपा को जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। 2019 में सरकार ने बिना कोई सांप्रदायिक तनाव के सुप्रीम कोर्ट की मदद से राम मंदिर आंदोलन को अंतिम परिणाम तक पहुंचाया। इसके तुरंत बाद श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का निर्माण राम मंदिर के निर्माण का रास्ता खोला। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने राम मंदिर का ताला खुलवाया था। लेकिन उसके बाद कांग्रेस इस मुद्दे से विमुख हो गई। भाजपा ने इस मुद्दे को कैच किया और हिंदुत्व-राष्ट्रवाद का झंडाबरदार खुद को बनाया। समाज का एक बड़ा वर्ग है, जिसकी संवेदनाएं अभी भी भगवान राम और भाजपा के प्रति है। वे निश्चित तौर पर भाजपा को वोट करेंगे। रही बात युवा वोटर्स की तो इस समय विपक्ष के पास कोई विश्वसनीय या जमीनी नेता मौजूद नहीं है। भाजपा ने राम मंदिर उद्घाटन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कार्ययोजना तैयार की है। इसका फायदा जरूर चुनाव में मिलेगा। हालांकि कितना मिलेगा, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी। बिहार में सीएम नीतीश कुमार जातिगत जनगणना करा चुके हैं। बिहार के बाद महाराष्ट्र में एनसीपी नेता और सरकार में डिप्टी सीएम अजित पवार भी कह चुके हैं कि राज्य में जाति जनगणना होनी चाहिए। इससे जातियों का सटीक आंकड़ा सामने होगा और योजनाएं बनाने में सहूलियत मिलेगी। यूपी में अखिलेश यादव भी लगातार जातिगत जनगणना की पैरवी कर रहे हैं। जबकि भाजपा ने अपना स्टैंड क्लियर करते हुए कह दिया है कि वह जातिगत जनगणना के खिलाफ है। खुद पीएम मोदी भी इसके खिलाफ बयान दे चुके हैं। भाजपा जातियों की बात न करके हिंदुत्व की बात कर रही है। फिलहाल चुनाव में हिंदुत्व बनाम जाति का मुद्दा विपक्ष के लिए बड़ा दांव बन सकता है।
2014 के चुनाव का परिणाम
दल सीट
एनडीए 336
यूपीए 59
अन्य 148
2019 के चुनाव का परिणाम
दल सीट
एनडीए 353
यूपीए 91
अन्य 98
2 नवंबर 1990 : खून से सनी थी अयोध्या की सड़के
आज हम रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर को आकार लेते देख रहे हैं, प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि भी तय हो गया है। लेकिन यह यात्रा उतनी भी सहज नहीं रही है जितनी आज दिखती है। यह संघर्ष 1528 से ही शुरू हो गया था जब इस्लामी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि पूरी जमीन रामलला की है, मंदिर वहीं बनेगा। लेकिन इस मोड़ तक पहुंचने के क्रम में न जाने कितने रामभक्तों ने खुद को बलिदान कर लिया। कितनी बार अयोध्या की गलियों के रामभक्तों के रक्त से लाल कर दिया गया। ऐसी ही एक तारीख 2 नवंबर 1990 की है। 2 नवंबर 1990 को तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने मातहतों से कहा कि लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं बैठेगी। सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने घेरा बनाकर रोक दिया। वे जहां थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए। रामधुनी में रम गए। फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए। आँसू गैस के गोले दागे गए। लाठियाँ बरसाई गईं। लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए। अचानक बिना चेतावनी के उन पर फायरिंग शुरू कर दी गई। गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया। “राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियां मारी।” पुलिस और सुरक्षा बल न खुद घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे। फायरिंग का लिखित आदेश नहीं था। फायरिंग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया। किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोली लगी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया। दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर गोली मारी गई। राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था, उन्हें पीछे से गोली मारी गई। रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिंग की गई। कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। रामबाग के ऊपर से एक साधु आँसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे। फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।
कोठारी बंधुओं पर गोलियों की बौछार
2 नवंबर 1990 को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी भी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। उस दिन मृतकों की संख्या 45 बतायी गयी, लेकिन हकीकत इसके उलट थी, पूरी सरजू खूनों से लाल हो गयी थी। ट्रकों में भरकर श्व फेंके जा रहे थे। हालांकि आधिकारिक तौर पर बाद में मृतकों की संख्या 17 बताई गई। लेकिन घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना। और इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव को मुल्ला मुलायम का खिताब जरुर मिल गया। 30 अक्टूबर 1990 के दिन भी कारसेवकों पर गोलियां बरसाई गई थी। आधिकारिक आंकड़े 30 अक्टूबर को 5 रामभक्तों के बलिदान की पुष्टि करते हैं। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को अयोध्या जय सियाराम और हर-हर महादेव के जयकारे से गूंजायमान था। 22 जनवरी 2024 यह सुनिश्चित करेगा कि अयोध्या में बस राम का नाम हो। 2024 के इस 22 जनवरी का महत्व हिंदू होकर ही जाना जा सकता है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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