विशेष : शोषण व बंधनों से मुक्ति दिलाने आएं यीशु - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 23 दिसंबर 2023

विशेष : शोषण व बंधनों से मुक्ति दिलाने आएं यीशु

बेतलेहम में जन्में यीशु ने कहा है कि मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूं। जीवन की रोटी मैं हूं। जो इसे खायेगा भूखा न रहेगा। जगत की ज्योति मैं हूं। जो मेरा अनुशरण करेगा अंधकार में नहीं भटकेगा। मैं सच्ची दाखलता और तुम मेरी डालियां हो, जो मुझे बना रहेगा व फल लायेगा। देखा जाय तो प्रभु यीशु क शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि अमीरी-गरीबी, जातिवाद जैसी तमाम विसंगतियां मौजू हैं। इन परिस्थितियों में एक-दुसरे से प्रेम-भाव से रहना और वंचितों के दुख-दर्द को समझना, उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास करना हम सबकी जिम्मेदारी हैं। प्रभु यीशु का आगमन लोगों को शोषण, अन्याय व तमाम तरह के बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए हुआ। बच्चों में यदि बचपन से ही दुसरों का दर्द समझने, जरुरतमंदों के लिए कुछ करने की भावना जागृत की जाये, तो हम एक बेहतर दनिया के निर्माण में मददगार हो सकते हैं। खीस्त-जयंती की शांति का मंत्र है - मानव हित और प्रकृति की मर्यादा, मानव-मर्यादा, समझौता, मानवता और संवेदनशीलता। उपभोगवाद में यदि मानवहित और प्रकृति को मर्यादा मिले, समाज में व्याप्त बुराईया, अत्याचार, आतंकवाद की गोद में यदि मानव मर्यादा और समझौता का प्रवेश हो तथा साम्प्रदायिकता में मानवता और संवेदनशीलता को उचित जगह मिलें तो निश्चय ही पृथ्वी पर ईश्वर के कृपा पात्रों की वृद्धि होगी। ईश्वर की महिमा होगा और शांति कायम होगी 

Cheitmas-for-jisus
हम सभी तीर्थयात्री है। यह धरती हमारा अंतिम गंतव्य नहीं। पद, पैसा, ताकत ये दुनिया की बातें है, ये हमारे ईश्वर नहीं हो सकते। सृष्टिकर्ता और मुक्तिदाता ही हमारे ईश्वर है। बालक यीशु का आगमन ही हमारे पापों से मुक्ति दिलाने और अनंत जीवन देने के लिए हुआ। यानी क्रिसमस देहधारण का पर्व है। ईश्वर के मानव बन जाने का पर्व है। यह कितना अद्भूत है कि स्वयं ईश्वर हम में से एक बनकर और हमारे साथ हमेसा रहने के लिए आएं। प्रत्येक यूखारिस्त संस्कार एक क्रिसमस है। जब स्वयं यीशु खीस्त रोटी और दाखरस से अपने आपको शरीर व रक्त में परिवर्तित कर लेते है। बेदी चरनी बन जाता है। जब हम परमप्रसाद के रुप में यीशु को ग्रहण करते हैं तब हम भी चरनी अथवा मंदिर बन जाते हैं। हमारा घर पवित्र गौशाला बन जाता है जहां पवित्र परिवार अर्थात यीशु, मां मरिमयम और और जोसफ का निवास है। प्रभु यीशु ने कहा है कि वह सदैव हमलोगों के साथ हैं। हमें घबराने की जरुरत नहीं। प्रभु यीशु के आगमन के समय में भी समाज में बहुत सारी बुराईयां थी, लेकिन इन सब चीजों से प्रभु यीशु ही आकर हमें चंगाई दिलाता है।


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वैसे भी ईश्वर प्रत्येक मनुष्य में वास करता है। हमलोग इसे याद रखें तो एक-दुसरे से ईर्ष्या नहीं करेंगे, लेकिन समाज में इन्हीं चीजों की कमी है। बेतलेहेम के गडरियों का यह ईसारा है कि शांति की कुंजी बेतलेहेम के पास है, जो धनी थे पर निर्धन बने, ताकि उसकी निर्धनता से जो दरिद्र है वे धनी बन जायें। वह बालक ईश्वर है लेकिन मानवउ बने ताकि उनकी मानवता से हर मानव पूर्ण मानव बने। उनके एक दीन-हीन मानव बनने से स्वर्ग और पृथ्वी में मिलन हुआ। गड़ेरिये जैसे दीन-हीन और विनम्र लोग मर्यादित होकर ईश्वर के कृपा पात्र बने। उनके मानव बनने से ईश्वर की इच्छा पूरी होने लगी। ईश्वर की महिमा होने लगी और धरती पर शांति छाने लगी। उनके दीन मानव बनने में मानवता के लिए उनका त्याग,उनका प्रेम और उनकी सहभागिता प्रकट हुई है और पूरी मानव जाति मर्यादित हुई। पृथ्वी के गोद में एक गुफा में जन्म लेने और प पशुओं के चरनी में रखे जाने से पूरी प्रकृति मर्यादित हुई हैं। राजा हेरोद के आतंक से उन्हें मिस्र में शरणार्थी बनना पड़ा जैसे की आज विश्व में आतंकवाद समेत अन्य बुराईयों के चलते आज पूरी मानवता पर सवालिया निशान लग गया है। साम्प्रदायिकता की ललकार और धर्म की राजनीति से वे क्रूस पर लटकाये गए, जहां से उन्होंने सभी दुश्मनों को क्षमा कर दिया। चारों ओर शांति की धारा बहा दी और सबकों ईश्वर का कृपा पात्र बना दिया। चरनी से लेकर क्रूस तक के उनके सम्पूर्ण मानव जीवन ने समस्त मानवता की सारी परिस्थितियों को आत्मसात कर लिया। इसलिए हमारी सभी परिस्थितियों के संभावित रुपांतरण के लिए उनके पास शांति की कुंजी है।     


हर मसीही यीशु का राजदूत

देखा जाय तो प्रोफेशनल सहित हर मसीही यीशु का राजदूत है। उन्हें अपने कार्यो से मसीहियत की साक्षी देनी है। साथ ही सुसमाचार का प्रचार भी करना है। यीशु के जन्म की भविष्यवाणियां नबियों द्वारा की गयी थी। उनका जन्म परमेश्वर की पूर्व निर्धारित योजना के तहत हुआ था। यीशु मसीह किसी व्यक्ति, जाति या राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के उद्धार के लिए आएं थे। क्रिसमस विनम्रता, दानशीलता व शांति का संदेश देता है। कई लोग विनम्रता को कमजोरी का पर्याय समझ लेते हैं, पर यीशु ने बताया कि सच्ची महानता विनम्रता में है। एक विनम्र व्यक्ति ही ईश्वर को अपना सृष्टिकर्ता और सबकुछ समझता है। विनम्र बनने के लिए किसी डिग्री की जरुरत नहीं होती, सिर्फ यीशु का जीवन दर्शन समझने की जरुरत है। हर धर्म प्रेम, दया, शांति, सद्भावना की बात करता है, पर कुछ कट्टरपंथी अपने धर्म का स्वरुप बदल देते है। ऐसे लोग सहिष्णुता को समाप्त करते है। धर्म का सही स्वरुप समझना जरुरी है। सभी एक ही ईश्वर की संतान है। न कोई छोटा और न कोई बड़ा है। जहां दरिद्र की सेवा है, वहां ईश्वर है।


शांति का उपहार

 प्रत्येक वर्ष खीस्त-जयंती शांति का उपहार लेकर आती है। हर मानव-हृदय को शांति की प्यास है। हर परिवार को शांति की चाह है। हर समुदाय व राष्ट्र को शांति की तलाश है। जिस व्यक्ति में उपभोक्तावाद या भोग विलास की प्रवृति प्रबल है उसे शांति नहीं मिल सकती। जो परिवार या समुदाय साम्प्रदायिकता की चपेट में हैं उसे शांति नहीं मिल सकती। जिस राष्ट्र में आतंकवाद का बोलबाला है उससे शांति कोसों दूर होगी। मसीह हमारे राजा है। उनका राज प्रेम, दया, क्षमा और न्याय पर आधारित है। ईसा ने हमेशा सच्चाई की बात की, सच्चाई के लिए जीए और सच्चाई के लिए ही मर गए। प्रत्येक परिवार की भांति सम्पूर्ण मानव परिवार की एक वास्तविक भूख है। शांति समस्त मानव जाति की एक अलौकिक प्यास है। ईश्वर की प्राप्ति में ही वास्तविक शांति निहित है, यह इसलिए क्योंकि हर मनुष्य चाहे वह नर हो या नारी ईश्वर के प्रतिरुप सृष्ट किया गया प्राणी है। इसी प्रवृत्ति का व्यावहारिक रुप शांति की चाह में या शांति की प्यास में प्रकट होता है।


मानव हृदय ईश्वर के लिए बना है

संत अगुस्तीन जैसे महान दार्शनिक कथन है, ‘मानव हृदय ईश्वर के लिए बना है और यह तबतक अशांत रहेगा जबतक कि यह ईश्वर में विश्राम नहीं करता। खीस्त जयंती हमें याद दिलाती है कि शांति का सूत्र शांति के राजकुमार बेतलेहेम के बालक यीशु के चरनी के अर्थ में और शांति की कुंजी उसके नन्हें हाथों में है। गोशाले में जन्म लेना और चरनी में रखा जाना एक अत्यंत दयनीय स्थिति का बोधक प्रतीत होता है, पर बालक यीशु का यह दयनीय स्थिति मात्र परिस्थितिवश नहीं है, यह एक ईश्वर का विधान है। शांति का राजकुमार अपने जन्मस्थान के लिए एक महल नहीं बल्कि एक गोशाले को चुनता है। वह एक राजकीय शय्या नहीं बल्कि एक चरनी का आलिंगन करता है। इस तरह वह संपनता नहीं निर्धनता को अपनाता है। ऐसा कर वह एक ओर गरीबों के साथ अपनी सहभागिता दिखाता है तो दुसरी ओर वह धन-दौलत, एश-ओ-आराम व मान-सम्मान की जगह ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता को प्राथमिकता को देता है। चरनी में पशुओं के लिए चारा यानी आहार रखा जाता है। जन्म लेते ही यीशु को चरनी में रखा जाना मानव के लिए उसका आहार बन जाना संकेत है। अर्थात मानवहित में शांति की स्थापना में पूर्णतया समर्पित जीवन। उसकी चरनी उसके क्रूस-मरण का पूर्वसूचक है जहां उसके समर्पण, उसकी दीनता, आज्ञाकारिता और क्षमाशीलता की पराकाष्ठा है। रोमी कानून व्यवस्था को बनाएं रखने के लिए क्रूरतम क्रूस-दंड की व्यवस्था थी। यीशु ने उस अन्यायपूर्ण क्रूस-दंड को गले लगाया और कू्रस पर अपनी बाहें फैलाकर क्षमा दान करते हुए पूरी मानव जाति का आलिंगन किया। उसने रोमी शांति के क्रूर साधन को वास्तविक शांति का अनोखा माध्यम बनाया। मसीही विश्वास के अनुसार उसने क्रूस के द्वारा दुनिया की मुक्ति कमाई। उसी मुक्ति के अनुभव में मानव की शांति है। इस तरह क्रूस के पूर्वसूचक चरनी में लेटे यीशु के नन्हें हाथों में शांति की कुंजी मौजूद है। 


क्रिसमस का दान से है गहरा नाता

क्रिसमस एक अनोखा पर्व है जो ईश्वर के प्रेम, आनंद एवं उद्धार का संदेश देता है। क्रिसमस का त्योहार अब केवल ईसाई धर्म के लोगों तक ही सिमित नही रह गया है, बल्कि देश के सभी समुदाय के लोग इसे पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं। क्रिसमस मानव जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के द्वारा की गई पहल को दर्शाने वाला त्योहार भी है। सांता क्लॉज, जो लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, सफेद बाल और दाढ़ी वाला एक वृद्ध मोटा पौराणिक पात्र है। जो अपने वाहन रेन्डियर पर सवार होता है। इस त्योहार पर समारोहों के दौरान विशेष कर बच्चों में बहुत लोकप्रिय होता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए उपहारों में मनचाही वस्तुएं, चॉकलेट आदि लाता है। ऐसा माना जाता है कि इन उपहारों को वह रात के समय उनके जुराबों में रख देता है। पर क्या आप जानते हैं कि आखिर सांता क्लॉज ढेर सारे उपहार लेकर एक ही रात में दुनिया भर के सभी घरों में कैसे पहुंच सकता है। इसका जवाब है, हम सब के बीच ही एक सांता छुपा होता है लेकिन हम उसे पहचान नही पाते हैं। सांता बिना किसा भी स्वार्थ के सब के जीवन में खुशियां ले कर आता है। हमे भी उस से एक सबक लेना चाहिए कि किस तरह हम किसी भी तरह अगर एक इंसान को खुशी दे सकें तो शायद हम भी इस क्रिसमस को सही मायने में मनाने में कामयाब हो सकेंगे।


 

Suresh-gandhi

सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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