बीते बुधवार को संसद की दर्शक-दीर्घा से कूदकर दो व्यक्तियों ने लोकसभा सदन में धुआं छोड़कर अफरातफरी मचा दी। इक्कीस साल पहले भी, 13 दिसंबर 2001 को बड़े पैमाने पर सुरक्षा में चूक हुई थी। तब हथियारबंद आतंकवादियों ने संसद परिसर में घुसकर अंधाधुंध गोलीबारी की थी, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के अधिकारियों और लोकसभा के निहत्थे वॉच एंड वार्ड कर्मचारियों सहित कई लोगों की मौत हो गई थी। इस बार सुरक्षा में चूक को लेकर पक्ष और विपक्ष में कुछ ज्यादा ही कहा-सुनी और गतिरोध उभर कर आ रहा है। दरअसल, पक्ष और विपक्ष का मोटे तौर पर मतलब ही है एक दूसरे से असहमत होना, मौका मिलते ही एक-दूसरे की गलतियों पर बवाल खड़ा करना या फिर किसी बहुचर्चित मुद्दे को उछालकर सत्ता-पक्ष को आड़े हाथों लेना आदि । कितना अच्छा होता अगर विपक्ष इतना सारा शोरशराबा न कर सुरक्षा में हुयी चूक को अचूक बनाने के लिए सरकार को कुछ स्कारात्मक सुझाव देता जिससे संसद का बहुमूल्य समय नष्ट होने से बच जाता।संसद का समय नष्ट होता है तो उसके व्यय का बोझ जनता पर ही तो पड़ता है।
—शिबन कृष्ण रैणा—
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