- 300 से ज्यादा एनकाउंटर कराने का बना चुके है रिकार्ड
- तेजतर्रार अधिकारी होने के चलते वे सीएम योगी आदित्यनाथ के भरोसेमंद हैं
300 से ज्यादा एनकाउंटर
प्रशांत कुमार का जन्म बिहार के सीवान में हुआ था. आईपीएस में शामिल होने से पहले प्रशांत कुमार ने एमबीए, एमएससी और एमफिल की डिग्री पूरी की थी. आईपीएस के लिए चुने जाने के बाद प्रशांत कुमार को तमिलनाडु कैडर मिला, लेकिन 1994 में वह यूपी कैडर में चले आएं। आईपीएस प्रशांत कुमार लोगों के बीच ’सिंघम’ के नाम से भी मशहूर हैं. प्रशांत कुमार करीब 300 से ज्यादा एनकाउंटर में शामिल रहे हैं. उनकी बहादुरी और उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें तीन बार पुलिस मेडल मिल चुका है. 2020 और 2021 में उन्हें वीरता पुरस्कार दिया गया था. प्रशांत कुमार को वीरता के लिए पुलिस पदक (पीएमजी) अंतरराज्यीय गैंगस्टर शिव शक्ति नायडू के एनकाउंटर के लिए प्रदान किया गया था. जिसने 2015 में दिल्ली में अदालत परिसर में पुलिस कांस्टेबल की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस उपलब्धि के लिए उन्हें सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बधाई दी थी. उन्हें अपराधियों पर नकेल कसने के लिए यूपी में एडीजी पद पर चुना गया था. कहते हैं कि उनका नाम सुनते ही अपराधी कांपने लगते हैं। प्रशांत कुमार को खासतौर पर क्राइम में अंकुश लगाने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि योगी सरकार में उन्हें बेहद महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है जिसपर प्रशांत कुमार खरे भी उतर रहे हैं। इसके साथ ही कावड़ियों पर पुष्पवर्षा करने के लिए वो काफी सुर्खियों में रहे हैं।
कुख्यात बदमाशों का साम्राज्य खत्मा
बता दें कि बेखौफ अपराधी सार्वजनिक रूप से अपराध का झंडा लहरा रहे थे। कुख्यात संजीव जीवा, कग्गा गैंग, मुकीम काला, सुशील मूंछू, अनिल दुजाना और विक्की त्यागी आदि कुख्यात बदमाशों का साम्राज्य फैला हुआ था। इसके बाद सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों को एक-एक कर बाहर निकालने के लिए प्रशांत कुमार को मेरठ में तैनात किया। आज के समय में इन बदमाशों का अंत हो चुका है।
योगी के भरोसेमंद है प्रशांत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काफी माथापच्ची के बाद प्रशांत कुमार को यूपी की कमान सौंपी हैं। माना जा रहा है कि पहले से ज्यादा सख्ती से वह यूपी में लूट, दुष्कर्म व छेड़छाड़ की घटनाएं रोकेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ को भरोसा है कि वे यूपी की कानून व्यवस्था बेहतर कर सकेंगे। उनका कार्यकाल अभी इतना बचा है कि 2024 का चुनाव बिना डीजीपी बदले निकाला जा सकता है। वरिष्ठता के मामले में भी सबसे लंबे कार्यकाल वाले अफसर हैं। लंबा कार्यकाल और अनुभव ही उनके लिए लिए मुफीद रहा। हालांकि, उनके द्वारा पहले भी बदमाशों और अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए हैं, लेकिन फिर भी नए डीजीपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में कानून व्यवस्था को ट्रैक पर लाने की होगी।
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