- पटना की पद्मश्री सुधा वर्गीज को प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज फाउंडेशन पुरस्कार देने की घोषणा हुई है. यह पुरस्कार उन्हें 8 दिसंबर को मुंबई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के हाथों मिलेगा.
पद्मश्री सुधा वर्गीज समाज सेवा करने मुसहरी में साइकिल चलाकर जाती थी.तब से साइकिल वाली दीदी कहलाने लगी.सबसे निचले पायदान पर गुजर-बसर कर रही जाति मुसहरों के लिए लगातार काम कर रही हैं.इसके लिए उन्हें पद्म पुरस्कार भी मिल चुका है.अब केरल की रहने वाली सुधा वर्गीज को जमनालाल बजाज पुरस्कार देने की घोषणा हुई है....पटना. जमनालाल बजाज पुरस्कार एक भारतीय पुरस्कार है जो गांधीवादी विचारों के उन्नयन, सामुदायिक सेवा, और सामाजिक विकास के लिए दिया जाता है. इसकी स्थापना 1978 में की गयी थी और प्रतिवर्ष चार श्रेणियों में यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है.सामाजिक सेवा करने के लिए पटना की पद्मश्री सुधा वर्गीज को प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज फाउंडेशन पुरस्कार देने की घोषणा हुई है. यह पुरस्कार उन्हें 8 दिसंबर को मुंबई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के हाथों मिलेगा. बताया जाता है कि गांधीवादी विचारों के उन्नयन, सामुदायिक सेवा, और सामाजिक विकास के लिए दिया जाता है. इसकी स्थापना 1978 में की गयी थी. ग्रामीण विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग, 1978 में स्थापित. महिलाओं और बच्चों के विकास और कल्याण के लिए उत्कृष्ट योगदान, जानकी देवी बजाज की स्मृति में 1980 में स्थापित. पद्मश्री सुधा वर्गीज को प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज फाउंडेशन पुरस्कार दिये जाने की घोषणा हुई है. आठ दिसम्बर को मुंबई में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश .के हाथों यह पुरस्कार प्रदान किया जायेगा.प्रत्येक पुरस्कार प्राप्तकर्ता को एक प्रशस्ति पत्र, एक ट्रॉफी, तथा पाँच लाख रूपए का चेक प्रदान किया जाता है.मुसहर समाज के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए अपने जीवन को समपर्ति
जमनालाल बजाज फाउंडेशन पुरस्कार प्रदान किये जाने के साथ ही पद्मश्री सुधा वर्गीज का एक बयान सुर्खियां बटोर रहा है, जिसमें सुधा वर्गीज ने शराबबंदी को मुसहर समाज की आजीविका पर कुठाराधात बताया है, उन्होंने कहा कि सरकार को शराबबंदी लागू करने के पहले मुसहर समाज के लिए वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध करवाना चाहिए था, क्योंकि सदियों से यह समाज शराब का निर्माण कर ही अपनी आजीविका चलाता रहा है, लेकिन सरकार के एक फैसले से इनकी आजीविका पर संकट खड़ हो गया है. सुधा वर्गीज ने कहा कि यह एक सच्चाई है कि इस समाज को मुश्किल से दो या तीन माह खेतों में काम मिलता है, बाकी के दिन यह शराब का निर्माण कर अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन शराबबंदी के फैसले से उनकी आजीविका समाप्त हो चुकी है, शराबबंदी को लेकर जितने भी मामले दर्ज किये गये हैं, उनमें आधा से अधिक मामले में इसी समाज से आते हैं, आज यह समाज अपनी खून की कमाई को कोर्ट में बर्बाद कर रहा है, इस हालत में यह जरूरी है कि सरकार इस समाज के लिए वैकल्पिक आजीविका की तलाश करे. मुसहर समाज और दूसरे वंचित जातियों के बीच उनके काम को लेकर ही उन्हे पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अब एक बार उन्हे जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गयी है, इसके साथ ही सुधा वर्गीज को 20 लाख रुपये देने की भी घोषणा हुई है, सुधा वर्गीज ने कहा कि इस राशि को वह मुसहर समाज के उत्थान के लिए खर्च करेंगे. सुधा वर्गीज पहले से ही मुसहर समाज के लिए स्कूलों और होस्टल संचालन करती रही हैं. इसमें से दो होस्टल मुसहर समाज की बेटियों के लिए है. जिसका संचालन बोधगया और दानापुर में किया जा रहा है.
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