- सूई को तलवार बनाने के कौशल को ‘जाट कला’ कहते हैं
एक छोटी सी घटना है बचपन की। हम हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। गर्मी की छुट्टी थी। दिन-दोपहरी में सड़कों में मौज-मस्ती स्वाभाविक गतिविधि थी। एक दिन मदारी वाला गांव में आ गया। उसके पास कोई बंदर नहीं था। इसलिए उसे एक व्यक्ति चाहिए था, जो जमुरा बन सके। उसके जादू का गवाह बन सके। संयोग से जमुरा की भूमिका में हम ही आ गये। मदारी शुरू हुआ। उसने अपना करतब दिखाना शुरू किया। हर करतब के शुरू करने से पहले लोगों से ताली बजवाता और हमारे कान में आकर कहता- मां कसम, बाप कसम, रोटी का सवाल है। हम जो कहेंगे उस बात में सहमति जता देना। उसका यह जादुई प्रदर्शन लगभग 40 मिनट चला होगा। हर करतब के साथ वही प्रक्रिया। ताली बजवाना, मेरे कान में कसम को दुहराना और फिर नए जादू का प्रदर्शन। अंतिम शो के रूप में मरने का जादू किया। उसने कान में कहा कि थोड़ी देर सांस रोक लेना। हुआ भी वही। देखिए ये मर जाएंगे और इनको जिंदा कर देंगे। जेठ की दोहपरी में जमीन पर सुलाया और ऊपर से चादर डाल दिया। हमारे कान के पास आकर वही कसम दुहराई। थोड़ी देर सांस रोककर लेटे रहे। ज्योंही उसने जिंदा करने का स्वांग किया। हमने सांस ली और गरदा झाड़ कर खड़ा हो गये। उसने एक चादर बिछाई और लोगों से जिंदा करने के बदले या कहें कि मदारी के बदले चावल, गेहूं या पैसा मांगा। जिसे जो देना था, दिया। उसने चादर समेटी और आगे बढ़ लिया। हम घर पहुंचे तो मां ने तमाचे स्वागत किया मदारी का जमुरा बनने के लिए। हम भी कहां मदारी में उलझ गये, लेकिन जब संसद और विधान सभा की कार्यवाही तमाशा बन जाएगी तो मदारी का याद आना स्वाभाविक है। उपराष्ट्रपति का किसान और जाट स्वाभिमान जागना उस मदारी का विस्तार भर है। सड़कों के मदारी संसदीय संस्थाओं तक पहुंच गये हैं।
उपराष्ट्रपति की भाव-भंगिमों की नकल, उसका एक टीवी चैनल से प्रसारण और उपराष्ट्रपति का सदन में संबोधन। टीएमसी सांसद द्वारा मिमिक्री अवकाश में टाइम पास था, मनोरंजन करना था। लेकिन सूई को तलवार बनाने की कला किसी जाट के पास ही हो सकती है। उन्होंने टीएमसी की सूई को तलवार बनाकर भाजपा को थमा दिया। इस तलवार की आड़ में संसद पर आंतकी हमला और इसमें भाजपा सांसद की सहभागिता को ढक दिया गया। उपराष्ट्रपति के इस अभियान में सत्ता शीर्ष पर बैठा हर आदमी शामिल हो गया। भारतीय संसदीय इतिहास में इससे बड़ा तमाशा क्या हो सकता है कि लगभग पौने दो सौ विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया, सिर्फ इसलिए कि संसद पर आतंकी हमले पर सरकार से जवाब मांग रहे थे। यदि किसी तमाशे में आप खुद जमुरा बने हों तो ऐसे निर्णय के मौके पर तमाशा का याद आना स्वाभाविक है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसे संसदीय गरिमा को बनाये रखने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है, वही मदारी और तमाशबीन बन गया है।
—वीरेंद्र यादव न्यूज—
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