- सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आलोक में बिहार के विकास की कार्ययोजना पर परिचर्चा
- परिचर्चा में शामिल हुए राजद, जदयू के नेता तथा विद्वतजन
- बिहार को गरीबी के दुष्चक्र से मुक्ति दिलाने का लेना है सामूहिक संकल्प, बिहार को मिले विशेष राज्य का दर्जा
पटना 1 दिसंबर, बिहार सरकार द्वारा जाति गणना व सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के आलोक में बिहार की ऐतिहासिक गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने की कार्ययोजना क्या हो, इस विषय पर जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आज एक परिचर्चा का आयोजन हुआ. परिचर्चा में माले के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य सहित देश के जाने-माने किसान नेता डा. सुनीलम, रिटायर्ड प्रोफेसर श्री विजय प्रताप, राजद की श्रीमती मुकन्द सिंह, जदयू के डॉ. पवन सिंह, प्रो. विद्यार्थी विकास, दलित अधिकार मंच के श्री कपिलेश्वर राम, ई. संतोष यादव, श्री पंकज श्वेताभ और प्रो. एसपी सिंह ने अपने विचार रखे. अध्यक्षता संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक ने की, जबकि संचालन सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता कुमार परवेज ने की. का. दीपंकर ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक सर्वे की जबदरस्त चर्चा और अब पूरे देश में जाति गणना की मांग उठ रही है. उन्होंने वंचितों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण के विस्तार का स्वागत करते हुए कहा कि गरीबी के दुष्चक्र से मुक्ति के लिए एक गंभीर कार्ययोजना बनानी होगी. स्थायी आमदनी के बारे में सोचना होगा. सरकार जिन लोगों को काम में लगाए हुए है उन्हें कम से कम 6000 रु. तो दे. उन्होंने कृषि सुधारों, लघु उद्योगों की स्थापना, मनरेगा में काम के दिनों को बढ़ाने, अन्य सरकारी नौकरियों में बहाली और भूमि सुधार सरीखे ढांचागत सवाल को उठाया. कहा कि सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट ताकतें मिलकर फासीवाद को भी हरायेंगी और बिहार को गरीबी से बाहर भी निकालेंगी. डा. सुनीलम ने कहा कि बिहार ने बेबाक तरीके से अपनी सच्चाई दिखाई है, मोदी सरकार को इसका साहस नहीं है. रिपोर्ट के आधार पर अब विकास योजनाओं को लेकर कमिटी बनाने की जरूरत है. श्री विजय प्रताप ने योजनाओं के क्रियान्वयन पर बल दिया और कहा कि जाति व्यवस्था के अमानवीय ढांचे के खिलाफ लड़ना हम सबका काम है. यह टूटेगा तभी हम विकास कर पायेंगे. बिहार की जो दुर्दशा है, उसके लिए केवल बिहार सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार बराबर की जिम्मेवार है.
राजद की मुकुन्द सिंह ने आधारभूत ढांचों के निर्माण पर जोर दिया. कहा कि बिहार ने रास्ता दिखला दिया है. अब आगे क्या करना है, हम सबको मिलकर सोचना होगा. आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं. वे दिखा रहे हैं कि हम कहां है और क्या करना है. उन्होंने मजबूती से कृषि सुधारों की वकालत की. कृषि में नई तकनीक की बातें कहीं. प्रो. विद्यार्थी विकास ने मोदी सरकार में नौकरियों के अवसरों में लगातार गिरावट, वंचित तबकों की लगातार जारी हकमारी का मामला उठाया और कहा कि बिहार से जो संदेश निकला है, वह पूरे देश की राजनीति का प्रभावित करेगा. प्रो. एसपी सिंह ने शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में समुचित विकास पर जोर दिया. कहा कि 20 प्रतिशत लोग 80 प्रतिशत लोगों को दबाए हुए है. आधारभूत ढांचों में विकास की जरूरत है. जदयू के वक्ता डॉ. पवन सिंह ने सहजानंद सरस्वती को याद करते हुए किसानों की स्थिति में सुधार की जरूरत पर बल दिया और कहा कि गरीबों के जीवन स्तर में सुधार करना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. ई. संतोष यादव, पंकज श्वेताभ और कपिलेश्वर राम ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए विकास की कार्ययोजना के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की और उसे समृद्ध किया. गोष्ठी में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग का जोरदार समर्थन किया गया. वक्ताओं ने कहा कि इसकी जरूरत हम सब महसूस कर रहे हैं. और इसके आलोक में गरीबों-वंचितों के लिए योजनाएं भी बनानी चाहिए.
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