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सोमवार, 8 जनवरी 2024

विशेष : रवि योग में मनेगी मकर संक्रांति, कट जायेंगे सारे पाप!

इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन दान का विशेष महत्व है. जब सूर्य मकर राशि में गोचर करते हैं, तब यह पर्व मनाया जाता है. या यूं कहे इस दिन से ही सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है, जिसे उत्तरायण कहा जाता है। उत्तरायण को शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं, जिसकी वजह वो उनके ताप में वृद्दि होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव शनिदेव के पिता हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जहां के एक महीने तक रहते हैं। साथ ही खरमास का महीना भी खत्म होता है। शुभ और मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा की जाती है. इस दिन विशेष रूप से तिल और गुड़ का सेवन किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन काफी शुभ योग बन रहे हैं. जिसमें सबसे बड़ा योग है रवि योग. इस दिन सुबह 07.15 से लेकर सुबह 08.07 बजे तक रवि योग बन रहा है. इस योग में स्नान दान का विशेष महत्व है. साथ ही जो भी व्यक्ति इस योग में भगवान सूर्य की पूजा करेगा, उसके मान सम्मान में वृद्धि होगी. इस दिन सूर्यदेव से संबंधित सामग्री जैसे गुड़, तिल, तांबा, वस्त्र आदि का दान करना शुभ माना जाता है. दरअसल इस बार सूर्य देव 15 जनवरी को प्रातः 02ः54 बजे धनु राशि से मकर में जाएंगे। इस वजह से त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। संक्रान्ति का महा पुण्यकाल 15 जनवरी को 07ः17 से 09ः04 बजे तक है। खास यह है कि इस दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं। इस धार्मिक आस्था को लेकर कथा भी प्रचलित है। इसी मान्यता को आधार बनाकर लोग मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी या गंगा महासागर में स्नान करके दान पुण्य करते हैं 

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मकर संक्रांति पर्व महापर्व है। यह दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। इस दिन प्रयाग में पावन त्रिवेणी तट सहित हरिद्वार, नासिक, त्रयंबकेश्वर, गंगा सागर में लाखों-करोड़ों आस्थावान डूबकी लगाते हैं। इसके साथ ही शुरु हो जाता है धैर्य, अहिंसा व भक्ति का प्रतीक कल्पवास। पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा एवं मकर संक्रांति से कुंभ संक्रांति तक लाखों श्रद्धालु प्रभु दर्शन का भाव लिए ‘मोक्ष’ की आस में कल्पवास करते है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है और सर्दियों से गर्मी की ओर मौसम परिवर्तन होता है। मकर संक्रांति के दिन से बसंत ऋतु शुरू होने लगती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपनी देह का त्याग किया था इसलिए इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। सनातन धर्म में मकर संक्रांति के पर्व का खास महत्व है. इस दिन लोग स्नान-दान, पूजा-पाठ करते हैं, जिससे विशेष लाभ प्राप्त होता है. इस विशेष दिन पर मकर संक्रांति का क्षण दोपहर 02ः55 पर रहेगा. रवि योग सुबह 07ः15 से सुबह 08ः07 तक रहेगा. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन वस्तुओं का दान करने से जीवन के सभी कष्ट, दुख-दर्द और परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है. जीवन में खुशियां आती हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किया गया दान कभी भी समाप्त नहीं होता है. खास यह है कि इस बार लीप वर्ष का संयोग बन रहा है. यह वर्ष 365 दिनों के बजाय 366 दिनों का होगा. फरवरी 28 दिनों का होता है, लेकिन लीप वर्ष में फरवरी 29 दिनों का रहेगा. इस महीने सप्ताह के सात वारों में से छह वार चार-चार बार पड़ रहे हैं. केवल गुरुवार पांच बार पड़ेगा. प्रत्येक वर्ष के पहले महीने में मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है. लेकिन इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि की यात्रा को विराम देते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं। दरअसल सभी हिंदू व्रत और त्योहारों की तिथियों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के अनुसार करते हैं, लेकिन मकर संक्रांति का पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग के आधार पर करते हैं। पूरे एक वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। जिसमें चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गई हैं। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से निकल मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रान्ति के रूप में जाना जाता है। सूर्य के मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाने को उत्तरायण और कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाने को दक्षिणायण कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य के उत्तरायण होने के कारण मकर संक्रांति सूर्य पूजा का सबसे बड़ा पर्व माना गया है. सूर्य देवता छह महीने उत्तरायण और छह महीने दक्षिणायन रहते हैं. पुराणों के अनुसार देवताओं के दिवसों की गणना भी मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है. सूर्य जब दक्षिणायन रहते हैं तो इस अवधि को देवताओं की रात्रि और सूर्य जब उत्तरायण रहते हैं तो उसे देवताओं का दिन माना जाता है।


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हिंदू पंचांग के अनुसार, 1 वर्ष में दो अयन होते हैं अर्थात 1 साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और इसी परिवर्तन को उत्तरायण एवं दक्षिणायन कहा जाता है. उत्तरायन देवताओं का अयन कहलाता है, जिसे पुण्य पर्व भी माना जाता है. इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है, यहां तक कि उत्तरायण में मृत्यु होने पर मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है. अयन का अर्थ होता है चलना, सूर्य पूरे वर्ष गतिमान रहते हैं और सूर्य की अवस्थाओं से ही ऋतुओं का निर्धारण होता है. अयन दो प्रकार के होते हैं. सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात गमन को उत्तरायण कहा जाता है और दक्षिण दिशा में अयन को दक्षिणायन कहा जाता है. इस तरह एक वर्ष में दो अयन होते हैं और दोनों छह माह तक रहते हैं, जिन्हें उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है. सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर अस्त होते हैं तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होते हैं. शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करते हैं, तब तक के समय को उत्तरायन कहा जाता है. यह अवधि 6 माह की होती है, उसके बाद जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि में विचरण करते हैं, तब उस समय को दक्षिणायन कहते हैं. यह अवधि भी छह माह की होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं. जब सूर्य उत्तरायण में आते हैं, तब 3 ऋतु पड़ती है, शिशिर, वसंत और ग्रीष्म और जब सूर्य दक्षिणायन में होते हैं तो वर्षा, शरद और हेमंत ऋतु होती है. उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है. वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है. मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण से परिवारों में सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. यूं तो सूर्य प्रत्येक माह में राशि परिवर्तन करते हैं, किंतु सूर्य का मकर राशि में जाना, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. दरअसल, सूर्यदेव अपने पुत्र की राशि में प्रवेश कर रहे हैं. पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवर्द्धक होने से साथ ही पापों का विनाशक भी करता है. सूर्य पिता हैं, जो कर्म के घर में जा रहे है. इस परिवर्तन के साथ ही पुण्य और मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.


दिन लंबे, रात छोटी होने लगते हैं

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इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है। इसके अलावा पतंग उड़ाते समय व्यक्ति का शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है, जिससे उसे सर्दी से जुड़ी कई शारीरिक समस्याओं से निजात मिलने के साथ विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता। बता दें, विटामिन डी शरीर के लिए बेहद आवश्यक है जो शरीर के लिए जीवनदायिनी शक्ति की तरह काम करता है। मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान करना चाहिए। पवित्र नदियों में स्नान करें। इसके बाद खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है। बता दें, सूर्य का किसी राशि विशेष पर भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है। सूर्य हर माह में राशि का परिवर्तन करता है, इसलिए कुल मिलाकर साल में बारह संक्रांतियां होती हैं, लेकिन दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं। एक मकर संक्रांति और दूसरी कर्क संक्रांति। सूर्य जब मकर राशि में जाता है तब मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किए गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है। सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है।


औषधि का काम करती है धूप

कहते हैं इसी त्योहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं। अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं। इस पर्व पर स्नान, ध्यान और दान विशेष फलदायी होता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, उत्तरायण में सूर्य की गर्मी शीत के प्रकोप व शीत के कारण होने वाले रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती है। ऐसे में घर की छतों पर जब लोग पतंग उड़ाते हैं तो सूरज की किरणें एक औषधि की तरह काम करती हैं। सर्दी के मौसम में व्यक्ति के शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही त्वचा में भी रुखापन आने लगता है। ऐसे में छत पर खड़े होकर पतंग उड़ाने से इन समस्याओं से राहत मिलती है।


’खिचड़ी’ है खास महत्व

मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल का दान करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन उड़द की दाल की खिचड़ी खाई जाती है। कई लोग खिचड़ी के स्टॉल बांटकर पुण्य कमाते हैं। देश के कुछ इलाके ऐसे भी है, जहां मकर संक्रांति त्योहार को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से सूर्य देव और शनि देव दोनों की कृपा प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से ही शुरू हो गई थी। देश में जब खिलजी ने आक्रमण किया तो नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन तैयार करने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे-प्यासे युद्ध के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियां एक साथ पकाने की सलाह दी थी। यह खाना जल्दी तैयार हो जाता था और योगियों का पेट भी भर जाता था और साथ में काफी पौष्टिक भी होता था। तत्काल तैयार किए जाने वाले इस व्यंजन का नाम खिचड़ी बाबा गोरखनाथ ने रखा था। खिलजी से मुक्त होने के बाद योगियों ने जब मकर संक्रांति पर्व मनाया था तो उस दिन सभी को खिचड़ी का ही वितरण किया गया था। तभी से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हो गई। गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी मेले का आयोजन हर साल होता है और प्रसाद के रूप में खिचड़ी ही बांटी जाती है। कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं. ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है. वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है. इस तरह मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है. 


क्या दान करना चाहिए

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान जरूर करें. माना जाता है इस दिन खिचड़ी का दान करने से घर में सुख और शांति का वास होता है. तिल और गुड़ का दान भी विशेष माना जाता है. इन्हें दान करने से मान-सम्मान प्राप्त होता है और धन लाभ भी होता है. यदि आपकी कुंडली में सूर्य और शनि खराब स्थिति में हैं तो इस दिन गुड़ और तिल का दान करने से इनकी स्थिति कुंडली में ठीक हो सकती है. यदि आपके ऊपर शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव है, तो आप मकर संक्रांति के दिन काले तिल को तांबे के पात्र में भरकर किसी गरीब व्यक्ति या फिर किसी ब्राह्मण को अवश्य दान करें. ऐसा करने से उन्हें शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त होगा. इस शुभ दिन नमक का दान विशेष माना जाता है, इसलिए नमक का दान अवश्य करें. नमक दान करने से अनिष्टों का नाश होता है. बुरा वक्त टल जाता है, इसलिए नमक का दान मकर संक्रांति के दिन करना शुभ माना जाता है.


शिव पुराण के अनुसार, मकर संक्रांति पर आप नए वस्त्रों का दान करेंगे तो शुभ होगा. ऐसा करने से सेहतमंद बने रहेंगे. किसी प्रकार की कोई बीमारी हो तो वस्त्रों का दान करने से समस्या कम होने लगती है. घी का दान करना भी श्रेष्ठ फल प्राप्त कराता है. माना जाता है कि घी का दान करने से शरीर स्वस्थ रहता है. इसके साथ ही देवी महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है. अनाज का दान करना भी अच्छा माना गया है. इस दिन आप सात प्रकार के अनाजों का दान किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को करें तो मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होंगी. आपके घर में कभी भी अन्न की कमीं नहीं होगी. मकर संक्रांति के दिन किसी असहाय व्यक्ति को काले कंबल दान करना भी शुभ होता है. ऐसा करने से आपको सभी ग्रहों की कृपा प्राप्त होगी, विशेषकर भगवान शनिदेव की. ऐसे में मकर संक्रांति के दिन काले कंबल का दान अवश्य करें. जो लोग धन की इच्छा रखते हैं, लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी धन की प्राप्ति नहीं होती तो आप मकर संक्रांति के दिन चावल, दूध और दही का दान अवश्य करें. ऐसा करने से आपको मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी. आपकी धन संबंधी सभी परेशानियां समाप्त हो जाएंगी. मकर संक्रांति के दिन सरसों के तांबे के बर्तनों का दान करना भी काफी अच्छा माना जाता है. ऐसा करने से आपको मान-सम्मान की प्राप्ति होगी. सरकार से भी लाभ प्राप्त होगा


 


Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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