विशेष : ताकि आपका बच्चा ऐसा न सोचे! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 30 जनवरी 2024

विशेष : ताकि आपका बच्चा ऐसा न सोचे!

Pressure-on-children
सोशल मीडिया पर यह नोट खूब वायरल हो रहा है। इस नोट पर जितनी बार नज़र पर रही है, उतनी बार मन उद्विग्न हो रहा है। रुलाई आ रही है। यह आत्महत्या इस बात का प्रमाण है कि हमारी युवा पीढ़ी मानसिक रूप से पढ़ाई और करियर को लेकर कितनी दबाव में है। पढ़ाई को थोपना और अपनी मर्जी से मनुताबिक विषय को चुनना दो अलग अलग बातें हैं। थोपी हुई पढ़ाई बोझ के समान होती है, जिसका भार ज्यादातर बच्चे नहीं उठा पाते। वे या तो कम सफल रहते हैं अथवा असफलता के अंधेरे में उपरोक्त कदम उठा बैठते हैं। थोपी हुई पढ़ाई कुछ समय के लिए मां बाप को अपने दोस्तों रिश्तेदारों के बीच अपना सीना चौड़ा करने का मौका दे सकती हैं लेकिन आजीवन सुख कदाचित नहीं। बच्चे के मन में पनप रही कुंठा, बहुत अच्छा नहीं कर पाने की कसक उसे तिल तिल कर आंतरिक मौत की ओर धकेलती है।


वहीं दूसरी तरफ जब बच्चे अपने स्वभाव, मनोभाव के आधार पर अपनी पढ़ाई और करियर चुनते है, तब वह उन्हें खेल की तरह लगता है। पढ़ाई आनंद के साथ पूरी करते हैं और करियर को कर्तव्य की तरह संवारते हैं और एक शानदार, दमदार और सार्थक भविष्य का निर्माण करते हैं। पश्चिम के एक राजनीतिक चिंतक थे प्लेटो। उन्होंने अपने न्याय के सिद्धांत में बताया है कि इंसान को अपने गुण के आधार पर अपना प्रोफेशन चुनना चाहिए। यही आपका अपने प्रति और अपने राष्ट्र के प्रति आपका न्याय है। भारतीय परिपेक्ष्य में दुखद पहलू यह है कि हम जो हैं, जो कर सकते हैं, उसको छोड़कर हम बाकी सब काम करते हैं। यह किसी भी राष्ट्र के नागरिक होने के नाते न्याय विरुद्ध है। हमारे अभिभावकों को अपनी कुंठाओ को अपने बच्चो पर थोपने से बचना चाहिए। ऐसा कर के आप एक राष्ट्रीय प्रतिभा को गलत ट्रैक पर धकेल रहे हैं, जो न तो उस प्रतिभा के लिए सही है और न ही आपके लिए।


व्यथित मन से आपका


आशुतोष कुमार सिंह

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