सीहोर। वर्तमान समय में लोग संपत्ति बनाने में लगे हुए हैं। अपनी सुख शांति का आधार धन को मानता है और वहीं रामकथा बताती है कि सुख शांति का आधार प्रेम त्याग एवं भाईचारा है। चारों भाइयों का प्रेम, एकता और त्याग अतुलनीय है। भगवान राम को वनवास होने पर राज पाठ भरत को सौंप दिया गया लेकिन भरत ने बड़े भाई के रहते सिंहासन पर बैठना स्वीकार नहीं किया। वह सिंहासन पर भगवान राम के चरण पादुका को रखकर नित्य प्रतिदिन पूजा करते थे। उक्त विचार शहर के कोतवाली चौराहे पर श्री नव दुर्गा उत्सव समिति के तत्वाधान में तीन दिवसीस श्रीराम कथा के विश्राम दिवस पर पंडित रमेश मुदगल ने कहे। विश्राम दिवस पर श्री नव दुर्गा उत्सव समिति के द्वारा क्षेत्रवासियों का सम्मान किया गया। इस मौके पर विठलेश सेवा समिति के व्यवस्थापक पंडित समीर शुक्ला, मनोज दीक्षित मामा, सीएसपी निरंजन राजपूत, कोतवाली टीई विकास खिची, मंडी थाना प्रभारी गिरीश दुबे, कमला बाई सोनी, मनोज आर्य सहित एक दर्जन से अधिक लोगों का सम्मान किया गया। इस मौके पर पंडित श्री शुक्ला ने कहा कि समिति द्वारा जो भगवान श्रीराम के विराजमान होने पर भगवान श्रीराम की चर्चा की जा रही है। उसके लिए समिति को भव्य कार्यक्रम की बधाई देता हूं। विश्राम दिवस के अवसर पर पंडित श्री मुदगल ने कहा कि जैसे भगवान राम ने सभी सुख सुविधा को त्याग कर 14 वर्ष वन में बिताया उसी तरह भारत ने भी राज्य के ठाठ बाठ को छोड़कर, सभी सुख सुविधा को त्याग कर वनवासी की तरह जीवन बिताते रहा। इनका त्याग और समर्पण पूरे मानव समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। परंतु आज समय के लोग निजी स्वार्थ के लिए भाई चारा को छोड़कर अपने लिए धन कमाने में ज्यादा लगे रहते हैं। राम जी के जन्म एवं नामकरण से लेकर से लेकर उनके बाल्यावस्था की ओर उनके गुरु द्वारा दी गई शिक्षा के बारे में बताया। सुभाष जी शर्मा ने कहा कि भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और त्याग सिखाती है, राम कथा। हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, ऐसे आयोजनों से क्या लाभ होता है इन सवालों के जवाब हमें राम कथा से पता चलता है। भ से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग, यानी जिस कथा में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, त्याग सिखाया जाए उसे राम कथा कहते हैं। गीता हमें कार्य करने का उपदेश देता है इस प्रकार रामकथा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हमें जीवन के अंत समय में किस तरह और क्या कार्य करना चाहिए, इस कथा से सीखने को मिलता है।
जिस घर में नारी नहीं पूजी जाती है वहा देवता भी निवास नहीं करते हैं
आगे कहा कि जिस घर में नारी नहीं पूजी जाती है वहा देवता भी निवास नहीं करते हैं। जिसके पास कुछ है वह गर्व करे तो यह सराहनीय तो नहीं, लेकिन क्षम्य तो है। जिस घर में सब लोग खुश रहते और संस्कारी होते हैं समझो वहां श्री है। किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए। उनके मुख से जो भी शब्द निकल जाए उसको प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रामकथा आंसुओं, त्याग, समर्पण और प्रेम की कथा है।
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