कविता : लुप्त होती एक भाषा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 21 जनवरी 2024

कविता : लुप्त होती एक भाषा

जरा तो दो तुम ध्यान,

रखो एक भाषा का मान,

क्यों छोड़ा तुमने इस्तेमाल करना,

सब करते है इस भाषा का अपमान,

बाक़ी भाषाओं की तरह महत्व दो इसको,

क्यों भूलते हो अपनी इस भाषा को?

यह भाषा है जो याद दिलाती संस्कृति की,

जब पहुंचते हो शहरों को,

छोड़ देते हो कुमाऊनी बोलना,

हिचकिचाते हो अपनी ही भाषा बोलने में,

लेकिन बुरा नहीं लगता किसी को,

अपनी ही भाषा को भुलाने में,

अभी भी है हमको एक आशा,

चाहो तो वापस आ सकती है,

अपनी लुप्त हुई कुमाऊनी भाषा





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सुनीता जोशी

कपकोट, उत्तराखंड

चरखा फीचर

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