गया जिला के डोभी ब्लॉक अंतर्गत इस गांव में करीब 633 परिवार रहते हैं. जिसकी कुल आबादी लगभग 3900 है. इतनी बड़ी आबादी वाला यह गांव 11 टोला में बंटा हुआ है. अनुसूचित जाति बहुल इस गांव में करीब 1600 अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग परिवार रहता है. गांव में करीब 58 प्रतिशत साक्षरता की दर है. गांव की अधिकतर आबादी खेती किसानी से जुड़ी हुई है. जिनके पास खेती लायक ज़मीन नहीं है वह रोज़गार के अन्य साधन से जुड़े हुए हैं. ज़्यादातर लोग रोज़गार के लिए दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, सूरत और गुरुग्राम पलायन करते हैं. गांव में बिजली की समस्या से केवल स्कूली छात्र और छात्राएं ही परेशान नहीं हैं बल्कि किसानों को भी समस्याएं हो रही हैं. इस संबंध में गांव के एक 55 वर्षीय किसान शंकर कहते हैं कि वह अपनी पत्नी के साथ अपनी ज़मीन पर खेती का काम करते हैं. इसमें सिंचाई की ज़रूरत होती है. वह कहते हैं कि शाम की अपेक्षा सुबह के समय गांव में बिजली अधिक देर तक रहती है. जिसके कारण किसानों को फसल की सिंचाई करने में बहुत लाभ होता है. कभी कभी दिन के समय लाइट चली जाती है तो समस्या आती है. वह कहते हैं कि जब कभी सिंचाई के समय बिजली नहीं रहती है तो हमें इसका घाटा उठाना पड़ता है क्योंकि सिंचाई के लिए पंप भाड़ा पर लाते हैं. लेकिन जब कभी पूरे दिन बिजली नहीं आती है तो हमें इसके बावजूद पंप का भाड़ा देना पड़ता है.
बिजली की व्यवस्था में सुधार का लाभ स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी हो रहा है. गांव के प्राथमिक विद्यालय में जहां करीब 90 बच्चे पढ़ते हैं. इस विद्यालय में तीन कमरें हैं जिसमें एक से पांचवीं कक्षा के छात्र और छात्राएं पढ़ती हैं. स्कूल के बच्चे कहते हैं कि स्कूल में लाइट रहने से उनकी पढ़ाई अच्छी होती है. गर्मी के दिनों में जब लाइट चली जाती है तो बच्चों को बहुत दिक्कत होती है. पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा काजल पासवान कहती है कि 'जब गर्मी के दिनों में लाइट चली जाती है तो सर जी हमलोगों को क्लास से बाहर निकाल कर बरामदे में बैठा देते हैं. जिससे हमें अधिक गर्मी न लगे.' वह बताती है कि एक ही कमरे में तीन से पांचवीं कक्षा के बच्चे बैठते हैं. ऐसे में गर्मी के दिनों में बहुत समस्या आती है. एक छात्रा की मां बसंती देवी कहती हैं कि बच्चे जितना स्कूल में पढ़ लेते हैं वही बहुत है क्योंकि अक्सर शाम में गांव में बिजली चली जाती है. ऐसे में बच्चे क्या पढ़ेंगे? वह कहती हैं कि पहले की तुलना में अब बिजली कम जाती है. लेकिन लाइट आने के बाद बच्चों को दुबारा पढ़ने के लिए बैठाना बहुत बड़ी चुनौती है. बड़े क्लास में पढ़ने वाले बच्चे फिर भी पढ़ने बैठ जाते हैं लेकिन छोटे बच्चों को लाइट जाने का अच्छा बहाना मिल जाता है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ दशकों में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की व्यवस्था में पहले की अपेक्षा काफी सुधार आया है. केंद्र की सौभाग्य योजना इस दिशा में अहम कड़ी साबित हुआ है. अक्टूबर 2017 में शुरू किये गए इस योजना से अब तक करोड़ों घर रौशन हो चुके हैं. इसके अतिरिक्त बिहार सरकार ने भी अपने स्तर पर बिहार हर घर बिजली योजना की शुरुआत कर गांव को बिजली कटौती की समस्या से निजात दिलाने का काम शुरू किया है. इससे बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों को सबसे अधिक लाभ होगा. एक ओर जहां गांव के स्तर पर बिजली से चलने वाले लघु उद्योग स्थापित हो सकते हैं तो वहीं किसानों को भी सिंचाई में लाभ मिल सकता है. लेकिन जब तक बिजली कटौती की समस्या पर पूर्ण रूप से काबू नहीं पाया जाता है तब तक इस प्रकार की किसी भी योजना को शत प्रतिशत कामयाब नहीं कहा जा सकता है. ऐसे में स्थानीय प्रशासन और बिजली विभाग को सक्रिय भूमिका निभाने की ज़रूरत है ताकि आम लोगों के साथ साथ बच्चों की शिक्षा भी निर्बाध रूप से चल सके.
पुष्पा कुमारी
गया, बिहार
(चरखा फीचर)
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