अब सवाल इससे आगे का है। यदि भाजपा ने फिर से नीतीश सरकार को समर्थन देने का निर्णय करती है और उसी सरकार में मलाई चाभने का निर्णय लेती है, तो सम्राट चौधरी क्या करेंगे। उनकी पगड़ी का क्या होगा। केंद्रीय नेतृत्व को आशंका है कि भाजपा उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी, चिराग पासवान, पशुपति पारस जैसे नेताओं के साथ चुनाव लड़ती है तो लोकसभा चुनाव में दहाई अंक तक भी नहीं पहुंच पाएगी। वर्तमान महागठबंधन बना रहा तो वोट के समीकरण के हिसाब से भाजपा अपने कुनबे के साथ दहाई में भी नहीं पहुंच पाएगी। इसलिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व नीतीश कुमार के सामने हबकुरिये गिरने को बेताब है। उसे नीतीश की हर शर्त मंजूर है। भाजपा का मानना है कि नीतीश के साथ चुनाव लड़कर बिहार में बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है। यह मौका भाजपा नहीं गंवाना चाहती है। यह भी संयोग है कि भाजपा केंद्र की सुविधा के हिसाब से राजनीति तय करती है और नीतीश कुमार बिहार की सुविधा के हिसाब से राजनीति करते हैं। इसलिए लोकसभा चुनाव में दोनों साथ आ जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा को लोकसभा चुनाव में नीतीश की बैसाखी की जरूरत है। उसे अपने कार्यकर्ताओं की औकात पता है।
फिलहाल सबसे दुविधा में प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी हैं। अगर वे नीतीश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में समर्थन की घोषणा करते हैं तो उनकी पगड़ी का क्या होगा। क्या पगड़ी गंगा में दहा देंगे या उसे जलाकर अलाव जलाएंगे। सम्राट चौधरी को समझ में नहीं आया था कि बनिया के लिए पगड़ी बांधने की चीज नहीं होती है, बल्कि पगड़ी बेचने की चीज होती है। केंद्रीय फरमान के सामने मुख्यमंत्रियों की कोई औकात नहीं होती है तो प्रदेश अध्यक्ष की क्या हैसियत हो सकती है। एक बात स्पष्ट कर दें कि नीतीश कुमार और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच शर्तों और समझौतों पर मंथन चल रहा है। यह मंथन बीच रास्ते में भी दम तोड़ सकता है। संभव है नीतीश कुमार भाजपा के साथ जाने को तैयार नहीं भी हों। अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, लेकिन यह भी तय है कि 5 फरवरी तक सब कुछ सामान्य रहा तो आगे स्थिति यथावत बनी रहेगी। इस बीच कुछ जोड़-घटाव होता है तो मुनाफे में सिर्फ भाजपा रहेगी।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार ---
— बीरेंद्र यादव न्यूज —
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