- माता सीता का चरित्र संपूर्ण विश्व को ज्ञान देने वाला-जगद गुरु महावीर दास ब्रह्मचारी महाराज
जगद गुरु महावीर दास ब्रह्मचारी महाराज शुक्रवार को भरत चरित्र की कथा सुनाते हुए बताया कि भरत ने बड़े भाई भगवान श्रीराम की चरणपादुका को चौदह वर्षों तक उनकी पूजा अर्चना उनका दास बनकर अयोध्या की प्रजा की सेवा की। यदि हमारे समाज के लोग श्रीराम चरित मानस का अनुकरण करते हुए जीवन निर्वाह करने की कला सीख ले तो समाज की सभी प्रकार की समस्याओं का निस्तारण अपने आप हो जाएगा। कथा हमारे समाज को अनुशासन और प्रेम तथा सद्भाव का संदेश देती है। भरत चरित्र, मिथिला प्रसंग एवं राम भक्त हनुमान के चरित्र पर विस्तृत चर्चा की। राम कथा में भरत चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा कि जब दो भाइयों के बीच में संपत्ति का बंटवारा होता है तो महाभारत का जन्म होता है। जब दो भाइयों में विपत्ति का बंटवारा होता है राम राज्य अर्थात रामायण बनता है। अवध का राज सिंहासन राम-भरत में एक गेंद की तरह हो गया। राम-भरत की तरफ और भरत राम की तरफ फेंकते हैं। राम और भरत जैसा भातृ प्रेम दूसरा कहीं नहीं मिलता है। जब भरत को राजगद्दी देने की बात आई तो भरत ने कहा मोहि राज हठि इयहूं जबकि, रसा रसातल जायहित बहि। भरत जी कहते हैं कि सारी संपत्ति श्री राम की है और भैया को मनाने के लिए जाऊंगा। रास्ते में भरत पैदल चलने लगे जब सबने कहा कि सवारी पर बैठ जाइए तो उन्होंने कहा सिर भरि जाऊं उचित अस मोरा, सबते सेवक धरम कठोरा। भरत जी कहते हैं कि अर्थ न धर्म काम रुचि, गति न चहहूं निर्वान, जनम-जनम रति राम पद, यह वरदान न आन। उन्होंने कथा के अंत में कहा कि भरत जैसे भाई का चरित्र, लक्ष्मण जैसी सेवा और हनुमान जैसी भक्ति अतुलनीय है।
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