(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
(रामचन्द्रजी द्वारा शिव-धनुष तोड़े जाने के बाद विश्वामित्र राजा जनक से राम-सीता-विवाह के प्रसंग में भगवान रामचन्द्र की क्षमताओं,दिव्यताओं और योग्यताओं का जिस तरह से वर्णन करते हैं, उन्हें कश्मीरी रामायणकार प्रकाशराम ने “रामातारचरित” में अपनी भावपूर्ण(फ़ारसी-मिश्रित) भाषा-शैली में यों बयान किया है:(पुस्तक ज्ञानमुद्रा प्रकाशन, भोपाल से हाल ही में छपकर आगयी है।) "लड़का (रामचन्द्रजी) बहुत ही खुश-शक्ल, प्रबुद्ध एवं हुनरमंद (कलावंत) है। ऐसे हुनरमन्दों के पास लक्ष्मी की कोई सीमा नहीं होती। आप चाहें तो उन्हें अगाफिल रूप से बुलाकर तथा अनजाने में (पोशीदा रूप में) देखकर उन्हें आज़मा सकते हैं। वे बिना दवाई के मुर्दो को जिन्दा करने वाले हकीम हैं। कलाकार वे ऐसे हैं कि हवा में अपनी क़लम से तसवीरें बनाते हैं, कारीगर ऐसे हैं कि बहते पानी (आबे-रवानी) में संगीन (कठोर, स्थायी) तामीर-खाना (भवन) बना सकते हैं। ज्योतिषी ऐसे हैं कि उन्हें सभी के आगाज़ो-अंजाम की खबर रहती है तथा कायनात के गरदिश की सारी बातें उनके दिल पर लिखी रहती हैं। परन्तु वे किसी पर अपना रहस्य प्रकट नहीं करते हैं। इस प्रकार (रामचन्द्रजी की बड़ाई में) अभिशंसा-वचन कहकर उस(ऋषि विश्वामित्र) ने एक मध्यस्थ की भूमिका अच्छी तरह निभा ली। दरअस्ल, उन दो (राम और सीता) का संयोग होना लिखा था और ऋषि ने यह भार अपने ऊपर ले लिया अर्थात वे निमित्त बन गये।
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