देखा जाएं तो पहले कमंडल, फिर मंडल. पीएम मोदी के दांव ने 48 घंटे में बिहार की राजनीति में बड़ा खेल कर दिया है। कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने के फैसले से केंद्र सरकार ने बिहार में पिछले 30 साल से पिछड़े और अति पिछड़ों की यानी ’मंडल’ की राजनीति करने वाले आरजेडी प्रमुख लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने जबरदस्त चुनौती पेश कर दी है. मतलब साफ है लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। मगर जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिनों के अंदर बैक टू बैक कमंडल और मंडल की राजनीति की है, उससे बिहार की राजनीति में जबरदस्त हलचल है। या यू कहें कर्पूरी की 100वीं जयंती के मौके पर बिहार में महागठबंधन सरकार की जाति जनगणना दांव की धार को बीजेपी ने कर्पूरी को दिए गए सम्मान से कुंद करने की कोशिश की है। बता दें, प्राण प्रतिष्ठा के दिन केंद्र सरकार ने बिजली बिल से लोगों को निजात दिलाने के लिए प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना का ऐलान किया। इसके तहत 1 करोड़ से ज्यादा घरों की छत पर सोलर पैनल लगाने का लक्ष्य है। सरकार का मकसद गरीब और मध्य वर्ग को बिजली बिल से राहत दिलाना है। इसके ठीक एक दिन बाद ही केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व सीएम और दिग्गज नेता रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया। यानी तीन दिनों में पीएम मोदी ने तीन चीजों से मिशन 2024 के लिए रास्ता और साफ किया है। ऐसी भी अटकलें हैं कि कर्पूरी के जरिए बीजेपी ने बिहार में अपने पुराने सहयोगी रहे नीतीश कुमार की तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ा दिया हैतीन दिन और तीन फैसले। पीएम नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद एक के बाद एक ताबड़तोड़ फैसले कर रहे हैं। बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले का विपक्षी दल भी स्वागत कर रहे हैं। राजनीति संभावनाओं का खेल है और कर्पूरी के जरिए बीजेपी ने बिहार में भी सियासत को एक नई हवा देने का काम तो कर ही दिया है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में श्रद्धालुओं का हुजूम और उनकी मोदी-योगी की रट यह बताने के लिए काफी है कि बीजेपी को आने वाले चुनावों में इसका लाभ मिल सकता है. इसे इस बात पर मुहर की तरह भी देखा जा रहा है कि पीएम मोदी देश की जनभावना, जनता की इच्छा और आकांक्षा समझते हैं. वह सनातन आस्था के दांव से हिंदू वोट बैंक साधने में किस कदर कामयाब रहते हैं, यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन अब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया जाना कमंडल के बाद अब मंडल को बैलेंस करने की रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है. बता दें, बिहार के ओबीसी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब तक लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टियों के ही साथ रहा है. बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े आने, आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने के नीतीश के दांव से ऐसी चर्चा शुरू हो गई थी कि इसका फायदा महागठबंधन को 2024 के चुनाव में मिल सकता है. बता दें कि विपक्ष पिछले कुछ समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहा है. इसके अलावा वह बीजेपी पर पिछड़ो को सम्मान नहीं देने का आरोप लगाता रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले साल संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अपनी रैलियों में जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं. मगर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान से नीतीश और लालू के मंडल वोट बैंक को साधने की कोशिश की हवा निकलती नजर आ रही है। मतलब साफ है कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर मोदी ने विपक्ष से जातीय राजनीति का मुद्दा छीन लिया है। खास यह है कि कर्पूरी ठाकुर भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सरकार तारीफ की है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है.“ उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही उनको भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं. सालों पुरानी मांग आज पूरी हुई है इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद.
यहां जिक्र करनाजरुरी है कि देश की राजनीति में मंडल और कमंडल की चर्चा हमेशा से रही है। पीएम मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके एक बार फिर से देश कमंडल का हाथ थामा। राम मंदिर बीजेपी के घोषणापत्र का हमेशा से एजेंडा रहा था। मोदी सरकार में बीजेपी ने उसे पूरा भी कर दिया। जाहिर है पार्टी इसके जरिए 24 के दांव सेट करेगी। पीएम मोदी ने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद कहा था कि सदियों के इंतजार के बाद ये घड़ी आई है। जाहिर है संकेतों में उन्होंने अपनी पार्टी के संघर्ष का जिक्र भी कर गए। विपक्ष वैसे भी राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर आरोप लगा रही है लेकिन भगवा दल ने लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसा दांव खेला है जो भारी पड़ती दिख रही है। खास कर बिहार में पिछड़ों के प्रणेता रहे पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर बीजेपी ने कई निशाने एक साथ साध लिए हैं। कर्पूरी अत्यंत पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने बिहार में दलितों-पिछड़ों के लिए जमकर काम किया है। दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ जेडीयू भी पिछले काफी वक्त से कर्पूरी को भारत रत्न देने की मांग कर रही है। इस दांव से बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगी रहे जेडीयू को भी साध लिया है। यानी दो दिन में बीजेपी ने ऐसा दांव चला है कि कमंडल और मंडल दोनों सध गए हैं। कर्पूरी ठाकुर को लेकर बिहार में पिछले कुछ समय से लगातार राजनीतिक खींचतान चल रही है। बिहार की राजधानी पटना में उनकी 100वीं जयंती पर बीजेपी से लेकर जेडीयू और आरजेडी कार्यक्रम कर रही है। नीतीश कुमार अरसे से कर्पूरी को भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं। अब बीजेपी ने कर्पूरी को भारत रत्न देकर नीतीश कुमार को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया है। पिछले कुछ वक्त से ऐसी अटकलें हैं कि नीतीश एकबार फिर से पाला बदल सकते हैं। यानी महागठबंधन का साथ छोड़ सकते हैं। इधर, बीजेपी ने एक ऐसा रास्ता भी बना दिया है कि नीतीश के लिए आसानी हो जाए।
कांशीराम को भारत रत्न क्यों?
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग उठाकर यूपी लोकसभा चुनाव के पहले बड़ा दलित कार्ड खेल दिया है. उनका कहना है कि दलितों और उपेक्षितों को आत्मसम्मान के साथ जीने और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बीएसपी के जन्मदाता और संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी का योगदान ऐतिहासिक व अविस्मरणीय है. उन्हें भी करोड़ों लोगों की इच्छा के अनुसार भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया जाना चाहिए.
कर्पूरी ठाकुर करते थे सभी का सम्मान
मोदी सरकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी जैसी कई हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित कर चुकी है. हर बार कीतरह इसबार भी सरकार की ओर से घोषित नाम चौंकाने वाले होते हैं. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के ठीक अगले दिन बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा कुछ लोगों को भले पसंद न आई हो, लेकिन भाजपा से लेकर कम्युनिस्ट पार्टियों के लोगों तक ज़्यादातर ने इसे पसंद ही किया है. कर्पूरी ठाकुर ऐसे नेता थे, जिनका सम्मान सभी करते थे. उनके जीवन मूल्यों की आज भी सभी सराहना करते हैं. उनके राजनीतिक विचार आज सर्वमान्य बन चुके हैं. उनके कार्यकाल में लिए गए फ़ैसलों का प्रभाव आज ज़्यादा प्रबल ढंग से महसूस किया जा रहा है. कर्पूरी ठाकुर पचास, साठ और सत्तर के दशक में बिहार के समाजवादी आंदोलन की पैदाइश थे. वो इसी धारा के बड़े नेता बने और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने के साथ सोशलिस्ट पार्टियों के सर्वोच्च पदों तक गए.
कैसे बने थे जननायक?
आज बराबरी वाले समाजवादी मूल्य, सामाजिक न्याय और हिन्दी प्रेम सभी दलों और राजनेताओं को प्रिय हो गए हों, लेकिन ये कर्पूरी ठाकुर ही थे जिन्होंने शिक्षा में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को खत्म किया था. उन्होंने सरकारी काम हिन्दी में करने की घोषणा की, लड़कियों के लिए पूरी पढ़ाई मुफ़्त की और सबसे पहले हिन्दी पट्टी में आरक्षण देने का फ़ैसला किया. आरक्षण में भी उन्होंने महिलाओं और ग़रीब अगड़ों के साथ पिछड़ों को भी दो श्रेणियों में बांटकर लाभ देने का फ़ैसला किया था. बहुत सारे लोगों को उनके ये फ़ैसले पसंद नहीं आए थे. उनका भारी विरोध हुआ. इन फ़ैसलों के चलते उनकी सरकारें गिरीं. आज जो उनको पुरस्कार देने का श्रेय ले रहे हैं या तालियां बजा रहे हैं, वे भी उस समय विरोध करने वालों में शुमार थे. बहुत ही पिछड़े इलाक़े के ग़रीब नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री बन गए थे, तब भी उनके पिता गांव में हज़ामत बनाया करते थे. कर्पूरी ठाकुर जब पढ़ते थे, तब वह भी पुश्तैनी काम करते थे. बाद में चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के दरवाज़े पर जाकर उस्तरा निकालकर दाढ़ी बनाने की पेशकश करते थे. वह कहते थे, “आउ मालिक दाढ़ी बना दई छी.“
कर्पूरी ठाकुर की हत्या हुई थी’
बिहार के दो बार सीएम रहे ’जननायक’ कर्पूरी ठाकुर को भारत सम्मान केसाथही अब एक सवाल भी उठने लगे कि क्या बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की हत्या हुई थी? ’जननायक’ की मौत को लेकर ये सवाल पहले भी कई बार उठ चुके हैं। कभी बीजेपी तो कभी आरजेडी की ओर से ये सवाल उठाए गए। कर्पूरी ठाकुर की मौत पर सवाल साल 2017 में बिहार बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष रहे नित्यानंद राय ने उठाए थे। उन्होंने कहा था कि जननायक कर्पूरी ठाकुर की मौत स्वभाविक नहीं थी बल्कि उनकी हत्या हुई थी। नित्यानंद राय ने तत्कालीन बिहार सरकार से मामले की जांच कराने की भी मांग की थी। 24 जनवरी 2017 को कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह में उन्होंने ये बातें कही थीं, जिसे लेकर बिहार में सियासी घमासान तेज हो गया था। हालांकि, ये कोई पहला मौका नहीं था जब कर्पूरी ठाकुर की मौत पर सवाल उठाए गए। साल 2021 में आरजेडी नेता और बाल संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य रहे डॉक्टर निशींद्र किंजल्क ने भी कुछ ऐसी बात कही थी। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराने की बात कही थी। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के ही एक लेटर का जिक्र किया था। कर्पूरी ठाकुर ने ये लेटर अपनी मौत से करीब 4 साल पहले 11 सितंबर 1984 में बिहार के तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी को भेजा था। इसमें ’जननायक’ ने अपनी हत्या की आशंका जताई थी।
1988 में हुआ था कर्पूरी का निधन
कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था, उस समय उनकी 64 वर्ष थी। निशींद्र किंजल्क के 2021 में सीएम नीतीश को भेजे गए लेटर में कर्पूरी ठाकुर की मौत को लेकर कई बातों का जिक्र किया गया था। इसमें बताया कि जब कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु हुई तो एक चश्मदीद ने दावा किया था कि पूर्व सीएम के मुंह से झाग निकल रहा था। उनकी मौत बेहद रहस्यमय तरीके से हुई थी ऐसे में इसकी उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए। बता दें कि कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में हुआ था। अब इस गांव को कर्पूरीग्राम भी कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर पहली बार 22 दिसंबर 1970 को और फिर दूसरी बार 24 जून 1977 को बिहार के सीएम बने थे। कर्पूरी ठाकुर 1952 की पहली बार विधानसभा चुनाव जीते और फिर कभी नहीं हारे।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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