- भूख सूचकांक में लगातार गिरावट, फिर गरीबी से बाहर आने का दावा सही कैसे?
पटना, 16 जनवरी, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में मात्र 11.28 प्रतिशत रह गई है और इस प्रकार विगत 9 सालों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले गए हैं. ये आंकड़े पहली ही नजर में झूठ के पुलिंदे प्रतीत होते हैं. रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 3.77 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले चुके हैं. जबकि बिहार सरकार द्वारा हाल ही में किए गए जाति गणना की रिपोर्ट बतलाती है कि राज्य की तकरीबन 34 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. गरीबी का यह आंकड़ा 6000 रु. तक मासिक आय वाले परिवारों का है. यदि 10000 रु. तक मासिक आय का पैमाना बनाया जाए तो राज्य की लगभग दो तिहाई आबादी भयानक गरीबी की चपेट में है. ऐसे में नीति आयोग का दावा हास्यास्पद लगता है. नीति आयोग की रिपोर्ट ने स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के अन्य मानकों पर इस तरह का दावा किया है. लेकिन हर कोई जानता है कि मोदी सरकार में भारत भूख सूचकांक के मामले में लगातार नीचे खिसकता जा रहा है. 2022 में 125 देशों में 107वें पोजीशन पर खड़ा भारत 2023 में और नीचे गिरकर 111वें पायदान पर पहुंच गया. मोदी सरकार इन आंकड़ों को झुठलाते रही है. लेकिन हकीकत यही है कि भारत में गरीबी और भूखमरी का दायरा बढ़ता ही जा रहा है. सच को स्वीकारने की बजाए सरकार नीति आयोग के जरिए अपने पक्ष में एक नया झूठ गढ़ रही है और अपनी जिम्मेवारी से भाग रही है. बिहार की भयावह गरीबी की सच्चाई को खुद बिहार सरकार ने सामने लाया है. इसके लिए भाजपा कहीं से कम जिम्मेवार नहीं है. वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग से लगातार भागती रही है. लंबे समय तक वह यहां की सत्ता में रही है. इसलिए वह अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकती. बिहार के संदर्भ में हमारी मांग है कि केंद्र सरकार अविलंब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की घोषणा करे.
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