जब ज्यादातर किसानों के लिए पशुओं के रखरखाव की लागत एक निरंतर बोझ बनता जा रहा है, ऐसे में अजोला एक कष्टदायक जल खतपतवार की बजाए पशूओं के लिए एक किफायती सुपरफूड बन गया है। पिछले कुछ वर्षो में पेशे के रूप में खेती के प्रति किसानों का आकर्षण कम हो रहा है, इसके लिए अनेक कारण जिम्मेदार हैं| उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है- कृषि उत्पादों की कीमत में अनिश्चितता और कृषि आदानों की तेजी से बढ़ती लागत, भूजल स्तर में गिरावट के कारण सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध नहीं हो रही है, फलस्वरूप कृषि और किसान की मुश्किलें और बढ़ गई है, यही कारण है कि किसी समय कृषि की दृष्टि से विकसित माने जाने वाले अनके समितियाँ ने इस समस्या के मूल कारणों को जानने की कोशिश की है और किसानों के लिए आय सृजन के वैकल्पिक अवसर उपलब्ध कराने के सुझाव दिए है, ऐसे संकटग्रस्त किसानों के लिए पशुपालन एक अच्छा विकल्प है| पशुओं के के वैज्ञानिक प्रबंधन में गुणवत्तापरक चारे की उपलब्धता प्रमुख बाधा है,इससे हमारी प्राकृतिक वनस्पतियों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ रहा है| इस समस्या का निजात पाने के लिए अजोला सुपर फूड बन गया है अब यदि अजोला को चारे के लिए उगाया जाता है, तो इसे अनिवार्य रूप से स्वच्छ वातावरण में उगाया जाना आवश्यक है और सालभर नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए| चारा प्लाट अधिमानत: घर के पास होना चाहिए ताकि परिवार की महिला सदस्य इनकी देखरेख और रख रखाव कर सके| पशुपालकों के सामने सबसे बड़ी बाधाओं में से एक उनके पशुओं के चारे की लागत है। ऐसे में अजोला –एक जल-पौधा है । कुछ लोग इसे कष्टदायक जल खरपतवार मानते हैं, लेकिन यह पशुओं के लिए नया सुपरफूड बन रहा है। यह एक जल-स्रोतों के ऊपर एक बेहतरीन हरी चटाई की तरह विकसित होता है। यह न सिर्फ पृथ्वी पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले पौधों में से एक है, बल्कि एक जलीय पौधा होने के कारण इसे बढ़ने के लिए मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। प्रोटीन, खनिज और विटामिन के एक समृद्ध मिश्रण से भरपूर, यह एक उल्लेखनीय रूप से कम लागत और उच्च पोषक तत्व युक्त पशुचारा है।
राजस्थान के बांसवाडा जिले के आनदंपूरी तहसील पंचायत जेर , गाव आमला में अजोला पर, एक टिकाऊ, कम लागत, कम ऊर्जा और कम रखरखाव-खर्च वाले चारे के रूप में प्रयोग कर रहा है, जिसके शुरुआती तहसील परिणाम आशाजनक हैं । वागधारा आनंदपूरी तहसील के कई गावों में अजोला के इस्तेमाल का विस्तार कर रही है है। आमला गाव के कई ग्रामवासियों का कहना है कि उन्होंने जब से अपने पशुओं के चारे के रूप में अजोला का उपयोग शुरू किया है, दूध की पैदावार दोगुनी हो गई है और जानवर पहले से ज्यादा स्वस्थ हैं। हलाकि पहले, खुद उन्हें इस अद्भुत पौधे और किसानों की मदद की इसकी विशाल क्षमता के बारे में भी नहीं पता था।आमला गाव के किसान शम्भूलाल निनामा कहते हैं – “जब मैंने प्रभाव को देखा, तो मैं हैरान रह गया। मुझे हैरानी हुई कि सब ग्रामीण इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे थे?” अजोला में अनोखे गुण होते हैं, जो वातावरण से नाइट्रोजन प्राप्त करता है। यह न सिर्फ जैविक खाद और पशुओं का चारा पैदा करता है, । इसका उपयोग जैविक ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में शामिल महिलाएं ही अजोला एम्बेसडर बनी हैं, जो जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण साबित हुई हैं। वे और अधिक परिवारों को अपने पशुओं के लिए अजोला का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वे दूसरों को बताती हैं कि इसकी उपयोगिता के आलावा, यह कितना किफायती और इस्तेमाल में आसान है। वागधारा के सच्ची खेती अंतर्गत अपनी आजीविका गतिविधियों के हिस्से के रूप में, अजोला के उपयोग को प्रोत्साहित कर रहा है। वागधारा अपने तिन इकाइयों ने कई पशुपालकों को अजोला इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।
शुरू करने और चलाने के लिए कम लागत
अजोला उगाने के लिए, दो फीट गहरे, 5 फुट लम्बे और 3 फुट चौड़े गड्ढे की जरूरत होती है।गड्ढे में प्लास्टिक की चादर बिछाकर पानी, मिट्टी और गाय के गोबर से भर दिया जाता है। फिर पानी में मुट्ठी भर अजोला डाल दिया जाता है। सिर्फ छह से आठ दिनों में, पूरा गड्ढा एजोला से ढक जाता है, जिसे निकालकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह कम रखरखाव प्रक्रिया टिकाऊ रहती है, क्योंकि इसके रखरखाव में किसी महंगे उपकरण या रसायनों के लिए निवेश की जरूरत नहीं होती है। गड्ढे में पानी जरूरत के अनुसार फिर से भरा जा सकता है, जबकि अजोला मौसम-परिवर्तन के बावजूद भी बढ़ता रहता है।अजोला को पशु आहार में शामिल करने से भैंस के दूध उत्पादन में वृद्धि हुई। दूध में वसा की मात्रा में भी सुधार हुआ। आनदंपूरी ब्लॉक के जेर पंचायत आमला गाव की महिलाएँ बताती हैं कि अजोला ने उनके पशुओं के समग्र स्वास्थ्य के सुधार में मदद की है गांवों की महिलाओं ने भी जानकारी दी कि अजोला ने उनके पशुओं के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद की है। कमजोर और बूढ़े पशु भी अजोला चारा खा कर ताकत हासिल करते हैं और कृषि उद्देश्यों के लिए व्यवहार्य हो जाते हैं।
चिकली तेजा गांव की रहने वाली कल्पना पारगी ने अपनी भैंस को अजोला में गेहूं का आटा मिलाकर खिलाना शुरू किया।
कल्पना कहती हैं – “इससे मेरी भैंस के दूध की पैदावार लगभग 1.5 लीटर बढ़ गई है।”वह अब समुदाय की अन्य महिलाओं को अपने पशुओं के आहार में अजोला को शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रही हैं। गांव में इसके सफलतापूर्वक अपनाने पर गर्व करते हुए, वागधारा के पशुधन विशेषज्ञ मनीष दीक्षित ने कहा कि जब ग्रामीण दूध उत्पादन और अपने पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार देखते हैं, तो उन्हें इसकी उपयोगिता का एहसास होता है। और कहते हैं – “फिर वे इसका उपयोग जारी रखना चाहते हैं और पड़ोस के गांवों में भी इसका प्रचार करते हुए ‘अज़ोला एम्बेसडर बन गये हैं।”
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