शुरू करने और चलाने के लिए कम लागत
अजोला उगाने के लिए, दो फीट गहरे, 5 फुट लम्बे और 3 फुट चौड़े गड्ढे की जरूरत होती है।गड्ढे में प्लास्टिक की चादर बिछाकर पानी, मिट्टी और गाय के गोबर से भर दिया जाता है। फिर पानी में मुट्ठी भर अजोला डाल दिया जाता है। सिर्फ छह से आठ दिनों में, पूरा गड्ढा एजोला से ढक जाता है, जिसे निकालकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह कम रखरखाव प्रक्रिया टिकाऊ रहती है, क्योंकि इसके रखरखाव में किसी महंगे उपकरण या रसायनों के लिए निवेश की जरूरत नहीं होती है। गड्ढे में पानी जरूरत के अनुसार फिर से भरा जा सकता है, जबकि अजोला मौसम-परिवर्तन के बावजूद भी बढ़ता रहता है।अजोला को पशु आहार में शामिल करने से भैंस के दूध उत्पादन में वृद्धि हुई। दूध में वसा की मात्रा में भी सुधार हुआ। आनदंपूरी ब्लॉक के जेर पंचायत आमला गाव की महिलाएँ बताती हैं कि अजोला ने उनके पशुओं के समग्र स्वास्थ्य के सुधार में मदद की है गांवों की महिलाओं ने भी जानकारी दी कि अजोला ने उनके पशुओं के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद की है। कमजोर और बूढ़े पशु भी अजोला चारा खा कर ताकत हासिल करते हैं और कृषि उद्देश्यों के लिए व्यवहार्य हो जाते हैं।चिकली तेजा गांव की रहने वाली कल्पना पारगी ने अपनी भैंस को अजोला में गेहूं का आटा मिलाकर खिलाना शुरू किया।
कल्पना कहती हैं – “इससे मेरी भैंस के दूध की पैदावार लगभग 1.5 लीटर बढ़ गई है।”वह अब समुदाय की अन्य महिलाओं को अपने पशुओं के आहार में अजोला को शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रही हैं। गांव में इसके सफलतापूर्वक अपनाने पर गर्व करते हुए, वागधारा के पशुधन विशेषज्ञ मनीष दीक्षित ने कहा कि जब ग्रामीण दूध उत्पादन और अपने पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार देखते हैं, तो उन्हें इसकी उपयोगिता का एहसास होता है। और कहते हैं – “फिर वे इसका उपयोग जारी रखना चाहते हैं और पड़ोस के गांवों में भी इसका प्रचार करते हुए ‘अज़ोला एम्बेसडर बन गये हैं।”
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