विचार : हमारी जनसंख्या के रोम-रोम में आस्तिकता का भाव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 20 जनवरी 2024

विचार : हमारी जनसंख्या के रोम-रोम में आस्तिकता का भाव

हमारा देश मूलतः एक धर्मप्राण देश है। जनसंख्या का अधिकाँश प्रतिशत  गाँव-कस्बों-ढाणियों में रहता है। 'आधुनिकता' से जुड़ी सोच से इनका कोई लेना-देना नहीं है। देवी-देवता ही इनके रक्षक और परिपालक हैं, ऐसा ये समझते हैं। वे चाहें प्रभु राम हों या श्रीकृष्ण या फिर साईं बाबा या दुर्गा माता या तिरुपति के वेंकटेश्वर स्वामी। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे कहा जाता है ‘कण कण में भगवान’, वैसे ही हमारी जनसंख्या के रोम-रोम में आस्तिकता का भाव गहरे तक व्याप्त है। राजनीतिक संदर्भ में देखें तो ‘आस्तिकता’ के इस भाव को जिस पार्टी या दल ने जितना अपना बनाया या प्रश्रय दिया, जनता उतना ही उसके करीब आ गयी।राम-मंदिर इसका प्रमाण है। पहले बीजेपी के पास केवल दो  सांसद हुआ करते थे लेकिन अब आधे से ज्यादा राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार है। इस सब में मंदिर के मुद्दे ने  महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। माना जाता है कि राम-मंदिर मुद्दे के ज़रिये बीजेपी देश के अस्सी प्रतिशत  मतदाताओं तक पहुंच सकी है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह मुद्दा चौबीस के  लोकसभा चुनावों में भी अपना प्रभाव न डाले!


कुछ विरोधी दल बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं कि यह पार्टी हमेशा से धर्म की राजनीति करती आई है, मजहब के नाम पर फायदा उठाना बीजेपी का पुराना तरीका है आदि। विरोधी दल यह भी कहते हैं कि बेरोजगारी, महंगाई से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी मंदिर का सहारा ले रही है। उधर, बीजेपी का कहना है कि राम-मंदिर निर्माण राजनीति का विषय नहीं है। यह एक स्वप्न के साकार होने जैसा है। पांच सौ वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रभु रामलला अपने भव्य मंदिर में विराज रहे हैं। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है। अगर इससे भी कोई राजनीतिक लाभ लेने  की बात समझता है तो इस राजनीतिक लाभ को लेने के लिए दूसरी पार्टियों को भी पूरी स्वतंत्रता थी। लेकिन इस काम को करने में हमेशा इनके सामने ‘तुष्टीकरण’ की भावना आड़े आती थी। प्रभु श्री रामचन्द्र का जीवन,उनका व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाएं पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक का काम करती हैं। अयोध्या में राम-मंदिर के निर्माण और प्राण-प्रतिष्ठा का विषय हमारे बीच विवाद का नहीं, हमारे गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक गौरव का विषय बनना चाहिए।




Shiben-krishna-raina


डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

सम्प्रति दुबई से

कोई टिप्पणी नहीं: