वहीं 35 वर्षीय एक अन्य ग्रामीण उमेश बताते हैं कि "गांव में उच्च और निम्न समुदायों की संख्या लगभग बराबर है. इसके बावजूद जाति भेदभाव अपनी गहरी जड़े जमाये हुए है. जिसका प्रभाव सामाजिक जनजीवन और गतिविधियों पर नज़र आता है. यह भेदभाव पानी की समस्या पर भी नज़र आता है. इसकी वजह से निम्न जाति के कुछ परिवारों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. गांव में कुंड या कुओं की संख्या नाममात्र की है. जिसमें से अधिकतर पर उच्च जातियों का कब्ज़ा है और वह उस पर निम्न जाति की महिलाओं को पानी नहीं भरने देते हैं. ऐसे में इस समुदाय के लोगों को गरीबी के बावजूद टैंकर से पानी मंगवा कर काम चलाना पड़ता है." वह बताते हैं कि जाति आधारित भेदभाव की यह समस्या राजस्थान के तक़रीबन सभी गांवों में देखने को मिल जाती है. लेकिन ढाणी भोपालराम गांव के निम्न जाति के लोगों के लिए यह दोहरी समस्या बन कर आती है. जिसका नकारात्मक प्रभाव उनके जीवन पड़ता है. उन्होंने बताया कि पानी की समस्या से केवल पशुपालक ही परेशान नहीं हैं बल्कि किसानों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्हें खेत में सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है. जिसका प्रभाव उनकी खेती पर पड़ता है. समय पर पानी नहीं मिलने से उनकी फसल बेकार हो जाती है. यही कारण है कि अब इस गांव की नई पीढ़ी खेती का काम छोड़ कर रोज़गार के अन्य विकल्पों पर काम कर रही है. खेती किसानी करने वाले अधिकतर परिवार के युवा गांव से पलायन कर दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद और पुणे जा रहे हैं क्योंकि यदि वह गांव में रहकर खेती करेंगे तो पानी की कमी के कारण उन्हें केवल इसमें घाटा ही उठाना पड़ता. ग्रामीणों का आरोप है कि पानी की इस समस्या पर कई बार गांव के सरपंच से भी बात की गई लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ढाणी भोपालराम गांव के लोगों को इसी प्रकार पानी की समस्या से जूझते रहना पड़ेगा? आखिर कौन है जो इसके लिए ज़िम्मेदार है? क्या स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का यह फ़र्ज़ नहीं बनता है कि वह इस समस्या को गंभीरता से लें और इसे हल करने का प्रयास करें ताकि इस गांव का इंसान और जानवर पानी जैसी नेमत के लिए न तरसे.
कोमल/अंजू कुमारी
लूणकरणसर, राजस्थान
(चरखा फीचर)
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