आलेख : भारत की आत्मा है गणतंत्र - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

आलेख : भारत की आत्मा है गणतंत्र

हमारा लोकतंत्र किताबों में नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की आत्मा में बसता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जब सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाया तो अनेकता में एकता की मिसाल कायम करते हुए बिना किसी भेदभाव के हर किसी ने सहर्ष ही स्वीकार किया। किसी ने विरोध नहीं किया और ना तेड़फोड़ की। आज अयोध्या  में भव्य, नव्य, दिव्य श्रीराम मंदिर बन गया। यह अलग बात है कि अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले तथाकथित नेता कोर्ट को समय-समय भरमाते नजर आएं कि यदि फैसला आया तो खून खराबा हो जायेगा। लेकिन वे भूल गए जब नेतृत्व ईमानदार हो तो नेताओं की ओछी मानसिकता वाले विचार हवा में उड़ जाया करती है। मतलब साफ है संविधान हमारा गणतंत्र है। सामाजिक तथा आर्थिक न्याय का जीवंत दस्तावेज है। आजादी के 75 वर्षों में किए गए प्रयास इसके ज्वलंत उदाहरण है। या यूं कहे देश में जन गण मन अधिनायक जय हे! की भावना, लोकतंत्र की धारा बन चुकी है। गहरे समुद्र की तरह परिपक्व व पोषित हो चुकी है। भारत का वैशाली गणतंत्र लोकतंत्र की जननी है। आधुनिक भारत के नागरिकों के मन में लोकतंत्र के प्रति अपार सम्मान है। यही भारत का गणतंत्र है। देश के नागरिकों में लोकतंत्र के प्रति अपार श्रद्धा है। दिलचस्प यह है कि दुश्मन देश पाकिस्तान के दो टुकड़े कर लोकप्रियता के चरम पर पहुंची इंदिरा गांधी ने आपातकालीन और प्रेस सेंसरशिप लगाकर लोकतंत्र को चोट पहुंचरयी तो जनता ने वोट की ताकत से उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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फिरहाल, जन गण मन अधिनायक जय है! संविधान मूल भावना 75 सालों में अपनी जड़े जमा चुकी है। दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र में इन 75 सालों में देश ने लोकतांत्रिक परंपराओं को और समृद्ध किया है। जबकि दुनिया के दूसरे देशों में जहां सत्ता को लेकर संघर्ष का दौड़ चलता रहता है। हमने इन 75 सालों में 16 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया है। 17 बार आम चुनाव के माध्यम से केंद्र की सत्ता हस्तांतरण के गौरवपूर्ण साक्षी रहे हैं। आम आदमी का जीवन स्तर बेहतर हुआ है। भारतीयों ने पूरे विश्व में अपनी क्षमता का छाप छोड़ा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम सम्मान से देखे जाते हैं। 140 करोड़ आबादी वाले भारत में 70 करोड़ युवा है। या यूं भारत के मुकाबले पूरी दुनिया में इनते युवा किसी देश के पास नहीं है। इस जनशक्ति को सही दिशा में लगाना समय की मांग है। इन युवाओं के उल्लास और उत्साह को रोजगार सृजन से जोड़ना ही आगामी गणतंत्र दिवस की परम उपलब्धि होनी चाहिए। हासिए पर खड़े हर वर्ग और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के बारे में भी सोचना हर नागरिक का दायित्व है। तभी गणतंत्र का सच्चा उद्देश्य प्राप्त हो सकेगा। आज हमारी अर्थव्यवस्था को योग्य श्रम बल और जनसुलभ तकनीक की जरूरत है। इस हेतु सामाजिक संरचना पर भी पर निवेश की जरूरत है। अधिकारों के प्रति चेतना जगाने के साथ कर्तव्य के प्रति एक नागरिक के रूप में एक परिवार के रूप में सामाजिक उत्तरदायित्व का हमें निर्वहन करना होगा।


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सरकारों से अपेक्षाएं अपनी जगह है। लेकिन हमें कर्तव्यों का पालन करना होगा। कुल मिलाकर भारत में 26 जनवरी अर्थात गणतंत्र दिवस एक ऐसा संवैधानिक दिन है जिसमें कर्तव्यों की कार्यों में लगे हुए पौधों के पुष्पों से मौलिक अधिकारों की महक महसूस की जा सकती है। जनतंत्र की धूरी है गणतंत्र। या यूं कहे गणतंत्र रेखांकित करता है जन की महिमा को, गणतंत्र चिन्हित करता है गण की गरिमा को। दोनों के बीच अंतर बहुत बारीक है। जनतंत्र जनता का जोश है, पर गणतंत्र गण का प्रतीक है। जनतंत्र जनता का दिल है पर गणतंत्र जनता का दिल भी है और दिमाग भी है। जैसे प्रत्येक पूंजी धन है पर प्रत्येक धन पूंजी नहीं है वैसे ही अपवाद को छोड़ दे तो प्रत्येक गणतंत्र जनतंत्र है पर प्रत्येक जनतंत्र गणतंत्र नहीं है। बता दें, हर साल  गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को जोश और उत्साह से मनाया जाता है. साल 1950 में भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया. इस साल 26 जनवरी को देशभर में 75वां गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा. भारत 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर एक गणतंत्र राष्ट्र बना था. उसके ठीक 6 मिनट बाद 10 बजकर 24 मिनट पर भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने शपथ ली थी. ज्यों ही इंद्रधनुषी रंग प्रतिवर्ष 26 जनवरी को इंडिया गेट पर विजय चौक से अमर जवान ज्योति तक राजपथ पर आगे बढ़ता है, हजारों भारतीय गणतंत्र के जन्म का समारोह देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं. यह परेड न केवल राष्ट्र की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करती है वरन् दैदीप्यमान विविधता को सगर्व प्रदर्शित करती है जो हमारी विरासत का प्रतीक है. जैसे ही प्रभावकारी रूप में सुपरसोनिक जेट्स उड़ान भरने में आकाश को चीरते हुए गुजरते हैं तो एक सिंहरन-सी उठती है हमारा चितंन उस काल में चला जाता है जब भारत ने वर्षों संघर्ष करने के बाद आजादी हासिल की. गणतंत्र दिवस देश का ऐसा पर्व है, जिसमें भारतवासी एकता, प्रभुता और स्वतंत्रता की भावना का जश्न मनाते हैं. इस दिन भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया जाता है. देश के आजाद होने से पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के समय भारत के राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान रूप में अपनाया गया था और 15 अगस्त 1947 के बाद भारत के ध्वज के लिए ‘तिरंगा’ शब्द को चुना गया, चूंकि तिरंगा केसरिया, सफेद और हरे तीन रंगों का है. तिरंगे में मौजूद हर रंग का अपना विशेष भाव और महत्व है.


तिरंगे का है खासा महत्व

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केसरिया रंग शक्ति का प्रतीक है. ग्रहों के राजा सूर्य का संबंध केसरिया रंग से होता है. ज्योतिष के अनुसार सूर्य को तेज, प्रकाश, आत्मा और आत्मविश्वास का कारक माना जाता है. उगते हुए सूर्य की लालिमा में केसरिया रंग होता है जोकि व्यक्ति के मेहनती, आत्मनिर्भर और आत्मबल को बढ़ाने का सूचक माना जाता है. केसरिया रंग व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी निखारता है. सफेद : सफेद रंग को शांति का प्रतीक माना जाता है. यह रंग लोगों में आपसी समानता, एकता, सद्भावना और प्रेम का भाव पैदा करता है. ज्योतिष के अनुसार सफेद रंग चंद्रमा का कारक होता है. चंद्रमा को मन, माता और सौम्यता प्रदान करने वाला ग्रह माना जाता है. साथ ही यह रंग शुक्र ग्रह से भी संबंधित है जोकि सौंदर्य, भौतिक सुख और कला का कारक है. हरा : तिरंगे के हरे रंग को संपन्नता और हरियाली का प्रतीक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार हरा रंग का संबंध बुध ग्रह से होता है, जोकि तकनीक, तार्किक क्षमता, व्यवसाय आदि के कारक माने जाते हैं. तिरंगा में केसरिया, सफेद और हरा रंग के साथ ही नीले रंग का अशोक चक्र भी होता है, जिसमें 24 तिलियां होती हैं. यह गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करता है. ज्योतिष में नीले रंग को न्याय के देवता शनि ग्रह का कारक माना गया है.


बढ़ते कदम हमारे

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भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले कई वर्षों से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है। ’ईज ऑफ डूइंग बिजनस’ के मामले में भी पिछले दो-तीन वर्षों में देश ने लंबी छलांगें लगाई हैं। जीएसटी के जरिए देश में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एकरूपता आई है। शुरू में इससे कुछ परेशानियां हुईं लेकिन अभी इस बात को लेकर आम सहमति है कि इससे कारोबार में पारदर्शिता बढ़ी है। लेन-देन की प्रक्रिया में डिजिटलाइजेशन बढ़ना भी एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि, इसका ट्रिगर पॉइंट बनी नोटबंदी के साथ लोगों की बुरी स्मृतियां भी जुड़ी हैं। विकास प्रक्रिया में पीछे छूटने वाले वर्गों पर व्यवस्था का फोकस बढ़ा है। किसान की बेहतरी लिए आज सरकार ही नहीं, विपक्ष भी चिंतित है और खेती को फायदेमंद बनाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं। महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ी है। पिछले कुछ समय में भारतीय गणतंत्र की चमक दुनिया में और मजबूती से फैली है। वैश्विक मंचों पर आज भारत को विशेष प्रतिष्ठा मिलती है, उसकी बातों को गौर से सुना जाता है। उसकी पहचान एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था और ताकतवर देश की बनी है। अमेरिका-यूरोप में भारतीयों को कार्यकुशल और मेहनती समुदाय के रूप में देखा जाता है। यह सब खुद में बड़ी उपलब्धि है और इस बात का प्रमाण है कि हम भारतीय अगर अपनी ऊर्जाओं को जोड़े रख सकें तो कोई भी लक्ष्य हमारी पहुंच से बाहर नहीं है।


जाति-धर्म की खाइं को पाटना होगा

वैसे भी भारतीय संविधान बहुलता में एकता के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें मनुष्य, मनुष्य के बीच भेदभाव की गुंजाइश नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य बात है कि जाति, धर्म, लिंग और आर्थिक हैसियत के भेदभाव से हम उबर नहीं सके। वोटों की राजनीति ने हमारे समाज में कई विभाजन रेखाएं खींच रखी है। हम उन्हें मिटा नहीं पा रहे हैं। आपस में मरते-कटते रहते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था की आड़ में कबीलाई जीवन जीने वाले समूह बनकर रह गए है हम। आज भी चुनाव के दौरान जाति समीकरण को साधने की कोशिशें होती है। संविधान ने हमें मौलिक अधिकार दिए हैं तो हमारे कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं। लेकिन हमारी जागरूकता का आलम यह है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकारों को लेकर जागरुक नहीं है। वह ना अपने कर्तव्यों से अवगत है और नहीं अपने मौलिक अधिकारों के प्रति सजग हैं। और है भी तो वे अपने कर्तव्यों की भान नहीं रखते। जबकि एक आदर्श नागरिक अधिकारों का ज्ञान उन्हें होना चाहिए। अपने कर्तव्यों का हर हाल में पालन करना चाहिए। लेकिन सच्चाई यही है कि हम आजादी के 75 वर्षों के बीत जाने पर भी आदर्श नागरिक नहीं बन सके हैं। संविधान के विधान को समझने में असमर्थ हैं। हमारी संसदीय संस्थाओं में बाहुबलियों और अपराधियों का बोलबाला है। सच्चाई यह है कि हमारा राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस सम्मान समारोह मनाने का ही सिर्फ अवसर नहीं है, लाल किले से लेकर कार्य स्थलों और घरों के छत्तों पर तिरंगा लहराने और उसे सलामी देने का ही अवसर नहीं है। बल्कि यह अवसर समीक्षा का भी दिन है। यह सोचने का दिवस है कि हमारी आजादी के 75 वर्ष और गणतंत्र दिवस के 74 वर्ष तक विकास की बेसिक दौड़ में हम कहां कितनी दूरी तय कर सके हैं। हम कितना आत्मनिर्भर हो सके हैं। हमने समाज के अंतिम जन-जन तक सुविधाएं देने में कितनी सफलताएं प्राप्त की है। समतामूलक और आत्मनिर्भर देश के निर्माण में हम कितना सफल हो सके हैं। हमने व्यक्तिगत स्तर पर अपने देश और समाज के विकास में कितना योगदान दिया है। अंग्रेजों ने भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक मूल्यों को जो क्षति पहुंचायी है, उनकी किस हद तक हम भरपाई कर सकते हैं या करने को तत्पर हैं। अपने संसाधनों का हम किस रूप में उपयोग कर रहे हैं। ऐसे ढेरों सवाल है जिनका जवाब हिमें स्वयं खोजने की जरूरत है।


मतदान प्रतिशत को बढ़ाना होगा

देश में 18 वर्ष से अधिक उम्र के प्रत्येक नागरिक को जाति, धर्म, वंश, लिंग, साक्षरता आदि के आधार पर भेदभाव किये बिना मतदान का अधिकार है। सार्वभौम वयस्क मताधिकार सामाजिक असमानताओं को दूर करता है और सभी नागरिकों के लिए समानता की व्यवस्था करता है। देश की संप्रभुता, सुरक्षा, एकता और अखंडता के लिए किसी भी असाधारण स्थिति से निबटने हेतु राष्ट्रपति को कुछ खास अधिकार हैं। आपातकाल लागू करने के बाद केंद्र सरकार की शक्तियां बढ़ जाती हैं। संविधान जमीनी स्तर पर लोकतंत्र, मौलिक अधिकारों और सत्ता के विकेंद्रीकरण के रूप में खड़ा है। 1951 में योजना आयोग का गठन किया गया था जिसका काम था भारत के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं तैयार करना और इन्हें लागू कराना। इसका उद्धेश्य देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना था। लेकिन वह थमता चला गया। वर्षों तक देश घोटालों और भ्रष्टाचार में डूबा रहा। देश की अर्थव्यवस्था तो तेज़ी से बढ़ रही थी लेकिन घोटाले और भ्रष्टाचार इसे धीरे-धीरे अंदर से खोखला कर रहे थे। 2014 में 70 वर्षों के इतिहास में पहली बार कांग्रेस के बाद पहली बार किसी पार्टी ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग की शुरुआत हुई। नीति आयोग का काम भी देश के लिए योजनाएं बनाना है। 2016 में भारत में नोटबंदी हुई और इसी साल भारत की सेना ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। 2019 में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करके आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट कर दिया। ये पहली बार था जब शांति काल में भारत ने पाकिस्तान में इतना अंदर जाकर उसकी ज़मीन पर हमला किया था। 2019 में एक बार फिर लोकसभा के चुनाव हुए और बीजेपी ने एक बार फिर से बहुमत के साथ सरकार बनाई। सालों पुराना विवाद धारा 370 खत्म होने के साथ ही आतंकवाद पर ब्रेक लग गया। तीन तलाक जैसे काले कानून का खात्मा हो गया। राम जन्मभूमि विवाद खत्म होने के साथ भव्य मंदिर निर्माण होने जा रहा है।






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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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