फूलों जैसी कली है बेटी।
तितली जैसी उड़ान है उसकी।
कर सकती है वो भी सबकुछ।
अपने पिता की शान है वो।
मेहंदी के रंग के बदले।
हाथों में होगी कलम उसके।।
ना बांधो यूं ज़ंजीरों में उसको।
तोड़ दो सारे बंधन उसके।।
साक्षरता का दीप जलाकर।
अंधियारा वह दूर भगाएगी।।
न समझो यूँ बोझ उसे।
मेहनत कर कुछ दिखलाएगी वो।।
मत छीनो गर्भ में उसका आकार।
उसे भी देखने दो यह संसार।।
रोको ना तुम उसे किसी राह पे।
हो ना पायेगी फिर वो पार।।
दिखलाती ना दुख वो अपने।
मगर ना समझो उसे कमजोर।
सपने कर सकती है वो भी सच।
राहें ले सकती है वह भी मोड़।।
पंछी जैसे उड़ना है उसको भी।
ना करो पिंजरे में उसको बंद।।
गाथा वह अपनी बतलाएगी।
जग में भरेगी वह सारे रंग।।
प्रियंका कोशियारी
कपकोट, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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