माघी अमावस्या : शनि के दुष्प्रभावों से मिलेगा छुटकारा, पूरे होंगे हर अरमान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

माघी अमावस्या : शनि के दुष्प्रभावों से मिलेगा छुटकारा, पूरे होंगे हर अरमान

ज्योतिषियों के मुताबिक जब माघ मास में चंद्रमा और सूर्य मकर राशि में एक साथ आते हैं तब मौनी अमावस्या होती है. चंद्रमा और सूर्य के संयुक्त ऊर्जा के प्रभाव से ही इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है. इस बार मकर राशि चक्र की दसवीं राशि है और कुंडली के दसवें घर में सूर्य मजबूत है. वैसे भी इस बार मौनी अमावस्या बेहद खास है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, विनायक अमृत योग, हंस, वारियान योग और मालव्य योग का संयोग है, जो न सिर्फ शनि के दुष्प्रभावों से बचायेंगे, बल्कि सारे कष्टों से छुटकारा भी मिल जायेगा। इस संयोग पर भगवान विष्णु की पूजा विशेष शुभ मानी जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावसस्या मनाई जाती है. इस दिन अमावस्या तिथि की शुरुआत 9 फरवरी सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर होगी और समापन 10 फरवरी को सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, मौनी अमावस्या 9 फरवरी को ही मनाई जाएगी. मौनी अमावस्या यानी मौन रहकर ईश्वर की साधना करने का अवसर है। इस तिथि को मौन एवं संयम की साधना, स्वर्ग एवं मोक्ष देने वाली मानी गई है। शास्त्रों में मौनी अमावस्या पर मौन रखने का विधान है। यदि किसी व्यक्ति के लिए मौन रखना संभव नहीं हो तो वह अपने विचारों को शुद्ध रखें मन में किसी तरह की कुटिलता नहीं आने दें। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी वाणी का शुद्ध और सरल होना अति आवश्यक है। इस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा पाठ में मन लगाना चाहिए। संभव हो सके तो इस दिन गंगा में स्नान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से सभी पाप दूर होते हैं और विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कहते है गंगा का एक बूंद जिस जल में मिल जाता है वह भी गंगाजल हो जाता है. इसलिए आप घर पर भी स्नान कर गंगा स्नान के समान पुण्य पा सकते हैं. मौनी अमावस्या पर मनु ऋषि का जन्म हुआ था और मनु शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई. मान्यता है कि संगम पर स्नान करने स्वयं देवी-देवता आते है। इसी दिन कुंभ मेला का दूसरा शाही स्नान है। इस दौरान मौन रह कर यमुना, गंगा, मंदाकिनी आदि पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद गरीब और जरूरतमंद लोगों को ठंड से बचने के लिए कम्बल, गुड़ और तिल का दान कर सकते हैं. पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लेते समय ’ॐ नमो भगवते वा वासुदेवाय नमः’ और ’ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप जरूर करें. मन ही मन अपने इष्टदेव गणेश, शिव, हरि का नाम लेते रहना चाहिए। अगर चुप रहना संभव नहीं है, तो कम से कम मुख से कटु शब्द न निकालें। मान्यता है कि इस दिन शांति के लिए तर्पण किया जाता है

Maghi-amawashya
सनातन धर्म में माघ महीने में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण दिन माना गया है. मान्यताओं के अनुसार मौनी अमास्या के दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। कहा जाता है कि यह दिन मुनियों के लिए अनंत पुण्यदायक है। इस दिन मौन रहने से पुण्य लोक, मुनि लोक की प्राप्ति होती है। अमावस्या के दिन काल विशेष रूप से प्रभावी रहता है। इस दिन चांद पूरी तरह अस्त रहता है। इस दिन को माघ अमावस्या और दर्श अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर महीने एक अमावस्या व एक पूर्णिमा तिथि आती है। अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित मानी गई है। मौनी अमावस्या के महत्व को इस तरह भी परिभाषित कर सकते हैं कि ध्वनि सतह पर होती है और मौन भीतर होता है, अंतर में। इसलिए सभी प्रकार की ध्वनियों से परे जाकर अंतर यानी शून्य में उतरने की क्रिया मौन कहलाती है। तात्पर्य यह कि यदि सृष्टि का अंश यानी मनुष्य सृष्टि के स्रोत यानी शून्य में रूपांतरित होने की कोशिश करे तब मौन घटित होता है। यही कारण है कि जब कोई साधक मौन की साधना करता है तो वह अपने आसपास ही नहीं, बल्कि सृष्टि में मौजूद तमाम ध्वनियों से परे पहुंचने की कोशिश करता है, क्योंकि ध्वनियों से परे पहुंचे बिना मौन हुआ ही नहीं जा सकता। अध्यात्म जगत में मौन का सदा से ही अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है, क्योंकि अध्यात्म के शिखर को छूने में इस मौन का प्रमुख योगदान होता है। इसलिए हमारी संस्कृति में मौन को किसी भी व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक शिखर तक पहुंचने का एक सटीक एवं शाश्वत माध्यम माना गया है। यही कारण है कि हमारे तमाम ऋषि-मुनियों और साधु-संतों ने मौन को अपनी आध्यात्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण अंग बनाया, इसे प्रतिष्ठित किया। मौनी अमावस्या के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु एवं भगवान शिव की पूजा का विधान है। इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य देने से भक्त के जीवन में तेज, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है, जबकि गंगा स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल मिलता है। वहीं पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। वैसे भी हमारी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिह्वा एवं होंठों से किये जाने वाले मंत्रोच्चारण की अपेक्षा मनका मनका फेरने यानी मौन रहकर मंत्र-जाप करने का पुण्य कई गुना अधिक होता है।


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इस दिन स्नान, दान और भगवान भास्कर की पूजा से लोगों को शनि पीड़ा से मुक्ति भी मिलेगी. इसके अलावा लोगों के सारे बिगड़े काम भी बनने लगेंगे. कहते है इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। माघ अमावस्या के दिन भगवान मनु का जन्म हुआ था। मौनी अमावस्या जैसे की नाम से ही स्पष्ट होता है, इस दिन मौन रहकर व्रत रखना चाहिए। इस दिन सूर्य नारायण को अर्घ्य देने से गरीबी और दरिद्रता दूर होती है। साथ ही सारी बीमारी और पाप दूर हो जाते हैं। मौन व्रत का मतलब सिर्फ मौन रहना नहीं है। मौन व्रत का पालन तीन तरीकों से किया जाता है। एक वाणी पर नियंत्रण रखना, मीठी वाणी बोलना, किसी से स्वार्थवश कड़वी बात ना बोलना। दूसरा कारण है कि बिना दिखावा किए लोगों की सेवा करना। सेवा करते वक़्त सेवा की तारीफ या दिखावा ना करें। तीसरा कारण है मौन व्रत का सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति में लीन रहना। इससे संतान और पति की आयु बढ़ती है और जीवन में खुशहाली आती है। इस दिन शिव जी और विष्णु जी की पूजा एक साथ करनी चाहिए। जिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य पति का सुख और पति की दीर्घायु चाहिए और संतान की तरक्की या संतान का विवाह चाहते हैं, उन्हें यह व्रत रखना चाहिए और पवित्र जल से स्नान कर दान करना चाहिए। शुभ योग होने के चलते तीर्थराज प्रयाग में इस पर्व पर आकाशीय अमृत वर्षा करेंगे। अनेक वर्षों बाद ऐसा शुभ अवसर आया है जब शनिचरी अमावस्या पर सारे ग्रह नक्षत्र कल्याणकारी भूमिका में हैं जो मानव की हर कामना को पूर्ण करेंगे। माघ मास की अमावस्या को ब्रह्मा जी और गायत्री की विशेष अर्चना के साथ-साथ देव पितृ तर्पण का विधान है। सतयुग में तपस्या को, त्रेतायुग में ज्ञान को, द्वापर में पूजन को और कलियुग में दान को उत्तम माना गया है परन्तु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ है। माघ मास में गोचरवश जब भगवान सूर्य, चन्द्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं, तो ज्योतिषशास्त्र उस काल को मौनी अमावस्या की संज्ञा देता है। सूर्य की उत्तरायण गति और उसकी प्रथम अमा के रूप में मौनी अमावस्या का स्नान एक विशेष प्रकार की जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके देव ऋषि और पितृ तर्पण करके यथाशक्ति तथा शेष दान कर मौन धारण करने से अनंत ऊर्जा की प्राप्ति होती है।  


संगम डूबकी से मिलता है सौ अश्वमेघ एवं हजार राजसूर्य यज्ञ का फल

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि मौनी अमावस्या के व्रत से व्यक्ति के पुत्री-दामाद की आयु बढ़ती है और पुत्री को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सौ अश्वमेघ एवं हजार राजसूर्य यज्ञ का फल मौनी अमावस्या में त्रिवेणी संगम स्नान से मिलता है। मान्यता है कि यह योग पर आधारित महाव्रत है। इस मास को भी कार्तिक माह के समान पुण्य मास कहा गया है। इसी महात्म्य के चलते गंगा तट पर भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर कल्पवास करते हैं। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि ये मौन अमवस्या है और इस व्रत को करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है। इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें।


इन उपायों से घर में सुख-समृद्धि आएगी

इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में झंडा लगाएं। ऐसा करने से भगवान के साथ-साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी मिलेगी। इस दिन शनि भगवान पर तेल चढ़ाएं। इसके साथ ही काला तिल, काली उड़द, काला कपड़ा का दान भी दें। शिवलिंग पर काला तिल, दूध और जल चढ़ाने से घर में शांति रहती है। हनुमान चालीसा पढ़ें और हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाएं। पीपल पर जल चढ़ाएं। इसके बाद पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा करें। इससे शनि, राहु के दोष दूर होते हैं। गाय को आटे में तिल मिलाकर रोटी दें, घर-गृहस्थी में सुख-शांति आएगी। लक्ष्मी जी और शिव जी को चावल की खीर अर्पित करने से धन की प्राप्ति होगी। मोनी अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करें। सूर्य को जल दें। जिन लोगों की जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, वह गाय को दही और चावल खिलाएं। पर्यावरण की दष्टि से भी सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने का विधान माना गया है। मुनि से उत्पत्ति के चलते मान्यता है कि इस दिन मौन धारण करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है।


कल्पवास

मान्यता है कि यह योग पर आधारित महाव्रत है। इस मास को भी कार्तिक माह के समान पुण्य मास कहा गया है। इसी महात्म्य के चलते गंगा तट पर भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर कल्पवास करते हैं। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि ये मौन अमवस्या है और इस व्रत को करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है। इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है।


संगम स्नान का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसका कथन सागर मंथन से जुड़ी हुई है। कहते है जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी। इस छीना छपटी में अमृत कलश से कुछ बूंदें छलक गइंर् और प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जा कर गिरी। यही कारण है कि इन स्थानों की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। प्रयाग में जब भी कुंभ होता है तो पूरी दुनिया से ही नहीं बल्कि समस्त लोकों से लोग संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने आते हैं। इनमें देवता ही नहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेव भी शामिल हैं। ये सभी रूप बदल कर इस स्थान पर आते हैं। त्रिदेवों के बारे में प्रसिद्ध है कि वे पक्षी रूप में प्रयाग आते हैं।


संगम स्नान से प्रसंन होते है भगवान विष्णु

कहा जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर एक व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। कुंभ मेले में स्नान मानव के लिए एक खास आध्यात्मिक अनुभव होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि माघ माह में गंगा स्नान करने से विष्णु भगवान बड़े प्रसन्न होते हैं। श्री हरि को पाने का सुगम मार्ग है माघ मास में सूर्योदय से पूर्व किया गया स्नान। इसमें भी मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है।


इसी दिन से हुई द्वापर युग की शुरुवात

माना जाता है कि मौनी अमावस्या से ही द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। एक मान्यता के अनुसार इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है जिसके कारण इस दिन को मौनी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के बालकांड में उल्लेख है. 






Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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