देहरादून के बाद उत्तराखंड का दूसरा सबसे बड़ा शहर हल्द्वानी जल रहा है. दंगों में न सिर्फ 5 लोगों की मौत हो गयी, बल्कि सरकारी गैर सरकारी संपत्ति के साथ निजी वाहनों व दुकानों में आग लगा दी गयी। 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। 250 से ज्यादा आमजनमानस घायल हुई हैं। पुलिस की 4 गाड़ियों सहित करीब 75 वाहनों में आगजनी व 90 से ज्यादा वाहनों में तोड़फोड़। बवाल के बाद जिला प्रशासन ने हल्द्वानी में कर्फ्यू लगा दिया है. सभी स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर पहाड़ों में बसा यह शांत शहर जल क्यों रहा है? दंगाईयों के छतों पर पत्थर व पेट्रोल पंप कहां से आएं? देखा जाएं तो अतिक्रमण के खिलाफ बुलडोजर एक्शन तो बहाना है। इसकी असल जड़ ज्ञानवापी को लेकर मुस्लिम नेता व मौलानाओं का लगातार भड़काऊ बयानबाजी है। और उत्तराखंड में लागू यूसीसी उसमें तड़के का काम कर गया। बता दें, जिस तरह घंटेभर में देवभूमि का सबसे प्रमुख शहर हल्द्वानी धूं-धू कर जलने लगा, वो सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे फूलप्रूफ साजिश की गंध आ रही है। हर तरफ पेट्रोल व सुतली बम की बरसात, छतों से ताबड़तोड़ पत्थरबाजी व अवैध असलहों से फायरिंग के अलावा पुलिस प्रशासन पर हमला कर थानों को फूंकना, एकझटके में सारे शहर को आग के हवाले करना संभव नहीं है। मतलब साफ है कहीं ये दंगा ज्ञानवापी और यूसीसी की भड़ास तो नहीं या किसी बड़े दंगे का ट्रेलर है? क्या मस्जिद बहाना, मकसद था हिंसा फैलाना? क्या हल्द्वानी में पहले ही रची गई थी दंगा की साजिश!दरअसल, हलद्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में प्रशासन की एक टीम अदालत के आदेश के बाद अतिक्रमण विरोधी अभियान चला रही है. अवैध मस्जिद-मदरसे पर बुलडोजर एक्शन की कार्रवाई हो रही है. इसी के मद्देनजर, 8 फरवरी की शाम करीब 4 बजे जिला प्रशासन और पुलिस की संयुक्त टीम ने जैसे ही एक मदरसे को गिराया, वैसे ही यहां दंगा भड़क गया. देखते ही देखते 5 लोगों की जाने चली गयी। हिंसा की आग इतनी भयावह तरीके से फैली कि पूरे इलाके में दंगा हो गया। हर तरफ चीख-पुकार गूंजने लगी है। सैकड़ों वाहनों, दुकानों, मकानों व राह चलते लोगों पर पेट्रोल व सुतली बम से हमले होने लगे। थाने में खड़े गाड़ियों में आग लगाई गई। पुलिस जवानों पर पत्थर बरसाएं गए। आसपास के छतों से पथराव किया गया। थाने में पुलिसवालों को जिंदा जलाने की कोशिश की गयी। जब तक पुलिस कुछ समझ पाती पूरे शहर में कोहराम मच गया। मौके पर पहुंचे अधिकारियों के निर्देश पर पुलिस ने जवाबी कार्रवाई शुरु की। शहर छावनी में तब्दील हो गई और कर्फ्यू लगा दिया गया. उधर, यूपी के बरेली में मौलाना तौकीर रजा खान ने सामूहिक गिरफ्तारी और जेल भरो आंदोलन का ऐलान किया है. जुमे की नमाज के बाद तौकीर रजा ने सामूहिक रूप से गिरफ्तारी देने की बात कही है. जिसके चलते हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। तो दूसरी तरफ जमात-ए-उलेमा चीफ सद्दीकुला ने ज्ञानवापी में पूजा-पाठ बंद करने की मांग की है. उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर योगी कोलकाता आए तो उन्हें निकलने नहीं देंगे। ये हरकते बताती है कि हल्द्वानी में जो कुछ हो रहा है, वह किसी बड़ी साजिश की ओर इसारा कर रहा है।
क्या योगी मॉडल एक्शन से होगी कार्रवाई
थाने के अंदर मौजूद सिटी मजिस्ट्रेट को उपद्रवियों से किसी तरह बचाया जा सका. एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा ने कहा है कि जितनी संपत्ति का नुकसान हुआ है, उसकी कीमत उपद्रवियों से वसूली जाएगी. दरअसल सितंबर 2022 में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) विधेयक- 2022 पारित कर दिया था. इस संशोधन विधेयक में दंगा-उपद्रव में किसी व्यक्ति की मौत या संपत्ति के नुकसान पर मुआवजे की रकम की वसूली दोषी व्यक्ति से करने का प्रावधान है. अब उत्तराखंड की धामी सरकार भी इसी तर्ज पर काम करने जा रही है. बड़ी संख्या में उपद्रवियों द्वारा सरकारी और निजी वाहनों को आग के हवाले करने, 70 से ज्यादा वाहनों को आग लगाने, पुलिस के वाहनों में तोड़फोड़, पत्रकारों के वाहन और आम लोगों के वाहनों को आगे के हवाले के मामले की अगर आकलन होगा तो इनकी कीमत करोड़ों में निकलेगी. हालांकि 4 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है. 15 से 20 उपद्रव भड़काने वाले मास्टर माइंड को चिन्हित किया गया है. ऐसे लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करने के साथ ही एसएसपी ने कहा कि उपद्रवियों ने जितनी संपत्ति का नुकसान किया है, उसकी कीमत उनसे वसूली जाएगी. ऐसे में साफ है कि उपद्रव करने और उसे भड़काने वाले तथा वाहनों को नुकसान पहुंचाने वालों से अब करोड़ों की वसूली होगी, जो उनके साथ ही मन में उपद्रव करने का मंसूबा पाले होंगे उनके लिए ये मिसाल होगी.पीएफआई से जुड़े तार
बीजेपी सांसद बृजलाल का दावा है कि हल्द्वानी की जो घटना हुई है, उसमें सुनियोजित तरीके से हिंसा को भड़काया गया है. इसकी एक विस्तृत जांच होनी चाहिए और ऐसी धाराएं लगानी चाहिए कि आरोपियों को जमानत भी ना मिल पाए. पीएफआई जैसे कट्टरवादी संगठन का हाथ इसके पीछे हो सकता है, क्योंकि पूरी तरीके से प्लानिंग के साथ यह घटना को अंजाम दिया गया है। इसके पीछे प्रतिबंधित संगठन पीएफआई और बांग्लादेशी घुसपैठियों का हाथ हो सकता है.
मास्टरमाइंड पर कसेगा शिकंजा
हल्द्वानी हिंसा के बाद अब अब्दुल मलिक पर शिकंजा कसने की तैयारी चल रही है. सूत्रों के मुताबिक घटना का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक को बताया जा रहा है. वह जमीनों की खरीद फरोख्त में भी शामिल रहता है. प्रशासन उस पर एनएसए के तहत कार्रवाई करने की तैयारी में है.
लपेटें में यूपी
उत्तराखंड में हल्द्वानी के बनभूलपुरा में मस्जिद और मदरसे को हटाने के विवाद में हुई हिंसा की आंच यूपी तक पहुंच गई है। हालांकि अभी तक यूपी में इसको लेकर कहीं कोई प्रदर्शन या विरोध की सूचना नहीं है। इसके बावजूद प्रदेश के डीजीपी वरिष्ठ आईपीएस प्रशांत कुमार ने प्रदेश के सभी जिलों के कप्तानों को कार्रवाई की छूट देते हुए संवेदनशील इलाकों में चौकसी बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। डीजीपी ने जारी आदेश में कहा है कि प्रदेश के सभी जिलों में संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए। इसके साथ ही उत्तराखंड की सीमा से सटे इलाकों में चौकसी रखी जाए। डीजीपी के इस आदेश जारी होने के बाद प्रदेश के सभी जिलों में पुलिस फोर्स को अलर्ट मोड पर रखा गया है। इसके अलावा चंदौली, गाजीपुर और जौनपुर के एडीजी ओम प्रकाश सिंह ने पुलिस फोर्स को हाई अलर्ट पर रखा है। वाराणसी में भी पुलिस ने चौकसी बढ़ा दी है। इसके अलावा, बरेली, रामपुर, अमरोहा, मुरादाबाद और संभल में भी पुलिस अलर्ट मोड में काम कर रही है। पूर्वी यूपी से ज्यादा पश्चिमी यूपी में पुलिस को अलर्ट रहने के लिए कहा गया है। वाराणसी, लखनऊ, आगरा, नोएडा, प्रयागराज में जुमे की नमाज पर सभी डीसीपी और एसीपी अपने-अपने क्षेत्रों में पैदल मार्च कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य जिलों में भी पुलिस कप्तान ने अधिकारियों को अलर्ट किया है।कैसे फैली हिंसा
दरअसल, हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र के मलिक के बगीचे में ’अवैध’ रूप से निर्मित एक मदरसा और नमाज स्थल मौजूद था. नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया कि इस स्थल के पास तीन एकड़ जमीन मौजूद थी, जिसे नगर निगम ने पहले ही कब्जे में कर लिया था. इसके बाद अवैध मदरसे और नमाज स्थल को सील कर दिया. उन्होंने बताया कि गुरुवार (8 फरवरी) को अवैध मदरसे और नमाज स्थल को जेसीबी की मदद से ध्वस्त कर दिया गया. वहीं, जैसे ही अवैध मदरसे को ढहाया गया, वैसे ही हिंसा की शुरुआत हो गई. एसएसपी प्रह्लाद मीणी ने बताया कि मदरसा और मस्जिद अवैध रूप से अतिक्रमित सरकारी भूमि पर बनाए गए थे. इन दोनों ही जगहों को ढहाने से पहले अदालत के आदेश का पालन करते हुए भारी संख्या में पुलिस और पीएसी को तैनात किया गया. हालांकि, पुलिस और पीएससी की मौजूदगी के बाद भी हालात बेकाबू हो गए और पथराव की शुरुआत हो गई. जैसे ही दोनों इमारतों को ध्वस्त करने की शुरुआत हुई, वैसे ही बड़ी संख्या में महिलाओं सहित गुस्साए निवासी कार्रवाई का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए. उन्हें बैरिकेडिंग तोड़ते हुए और पुलिस कर्मियों से बहस करते हुए देखा गया. अधिकारियों ने बताया कि मदरसा-मस्जिद के ढहाये जाते ही भीड़ ने पथराव करना शुरू कर दिया. इसमें नगर निगम के कर्मचारी, पत्रकार और पुलिसकर्मी घायल हो गए. अधिकारियों ने बताया कि पुलिस ने हालात को बिगड़ते हुए देख तुरंत हल्का बलप्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की. भीड़ को घटनास्थल से दूर करने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे गए. भले ही भीड़ पीछे हटी, लेकिन उसने इस दौरान गाड़ियों में आग लगा दी. पुलिस की गाड़ियों में भी आगजनी की गई. देर शाम तक तनाव और बढ़ गया और बनभूलपुरा पुलिस थाने में भी आग लगा दी गई. इसके बाद कस्बे में कर्फ्यू लगा दिया गया.
कभी नहीं हए दंगे
बता दें, देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति में खून का ये रंग पहले कभी नहीं घुला था। हमेशा से यह राज्य शांत रहा है। इसकी शांत वादियों ने सदैव बाहरी लोगों को यहां की ओर आकर्षित किया है। यही वजह है कि आज इस घटना ने पूरे उत्तराखंड के मन मस्तिष्क को झकझोर दिया है। राज्य के कई इलाकों में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है, लेकिन वह यहां की संस्कृति में रच बस गए हैं। लोगों के घरों के निर्माण करने से लेकर मंदिरों तक की सजावट तक के हर काम में उनका सहयोग होता है। एक सुखद पहलु यह भी है कि भले ही लोग उन्हें रहीम, इकबाल, सुलेमान के नाम से पुकारते हो, लेकिन जब उनके मुख से स्थानीय बोली (गढ़वाली बोली) सुनते हैं तो यह बताता है कि वह किस तरह से यहां कि संस्कृति में घुल मिल गए हैं। हरिद्वार, रुड़की, ऊधम सिंह नगर जैसे शहरों में पड़ोसी राज्यों से आकर लोग बसे हैं। मिक्स आबादी के चलते यहां सामाजिक ताना-बाना भले बदला हुआ है, लेकिन सभी ने एक दूसरे को अपनाया है। मैदान और पहाड़ दोनों में ही जगह मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं, लेकिन इनके आपसी तालमेल को देखकर यह कहा नहीं जा सकता है कि यह इनका अपना घर नहीं। उत्तरकाशी सहित कुछ पहाड़ी जिले तो ऐसे हैं जहां कई मुस्लिम परिवारों की पीढ़ियां रही है। लेकिन अचानक इस राज्य की शांति ही भंग हो गई। किसने शांत फिजा का सुकून और खुशी छीन ली। सत्ता और विपक्ष भी इस घटना से हैरान है। क्योंकि देवभूमि में इस घटना की किसी ने कभी कल्पना नहीं की थी। उत्तराखंड बनने से पहले भी यहां कभी सांप्रदायिक हिंसा का नहीं हुई। उत्तराखंड का मिजाज हमेशा से लोगों को जोड़ने वाला रहा है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है पिछले साल उत्तरकाशी के पुरोला में एक घटना के बाद लव जिहाद के मामले ने तूल पकड़ा था। इस दौरान देवभूमि की शांत फिजाओं में नफरत और सांप्रदायिकता का जहर घोलने का प्रयास किया गया। मुस्लिम समुदाय के लोगों की कई पीढ़ियां यहां बसी थी। यही वजह रही कि लोगों ने एकजुटता दिखाई और शांतिपूर्ण माहौल स्थापित किया गया।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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