पटना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में दिनांक 21 फरवरी 2024 से चल रहे तीन दिवसीय “जनजातीय कृषक सम्मेलन” के अंतिम दिन वैज्ञानिकों और किसानों के बीच “जनजातीय कृषि पद्धतियों का संरक्षण और सुधार” विषय पर चर्चा हुई। इस कार्यक्रम में बिहार के बेतिया, झारखंड के रामगढ़ और राँची, छत्तीसगढ़ के जशपुर, पश्चिम बंगाल के मालदा और पुरुलिया, ओडिशा के सुंदरगढ़, और असम के कामरूप जिले के लगभग 60 जनजातीय किसानों ने भाग लिया और खेती से जुड़ी अपनी समस्याओं, अनुभवों और देशी तकनीकी ज्ञान को साझा किया। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में आदिवासी किसानों द्वारा प्रस्तुत जनजातीय नृत्य कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा | इस कार्यक्रम में झारखंड के आदिवासी किसानों द्वारा संथाली (छोटा नागपुरी) नृत्य, बक्सर के महारानी दुर्गावती गोंड आदिवासी कृषक स्वयं सहायता समूह द्वारा हुड़का नृत्य एवं पुरुलिया के आदिवासी किसानों द्वारा पाता नृत्य जनजातीय संस्कृति की प्रस्तुति की गई। समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. के. डी. कोकाटे, पूर्व उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने किसानों से एकजुट होकर काम करने का आग्रह किया और कहा कि “ अगले 2-3 साल में अपने-अपने गाँव के सालाना आमदनी को किसान उत्पादक संगठन की सहायता से 1 करोड़ तक करने का प्रयास करें”। संस्थान के निदेशक, डॉ अनुप दास ने बताया कि इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य किसानों की समस्याओं को जानना, उनके ज्ञान में वृद्धि करना, विचारों का आदान-प्रदान करना, किसानों के मध्य आपसी अंतर्संबंध स्थापित करना है । डॉ दास ने किसानों के देशी तकनीकी ज्ञान का आने वाले 2 सालों में प्रमाणीकरण करने की बात भी कही।
शनिवार, 24 फ़रवरी 2024
पटना : प्रयास (PRAYAS) कृषि अनुसंधान परिसर पटना की पहल
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