वे भी दिन थे मेरे लिए बेहद खास।
जब खेलने का था मुझको अहसास।।
अब तो जिंदगी से है यही आस।
दोबारा खेलने का मौका आए मेरे पास।।
न थी चिंता, न थी कोई फिक्र।
बस याद आ रहे हैं खेलकूद के दिन।
जब खेलते हैं बच्चे सारे दिन।
याद आते हैं मुझ को भी वो दिन।।
जब दोस्तों से खूब लड़ा करते थे।
और अक्ल से थोड़े कच्चे थे।।
फिर भी खेलने के इच्छुक रहते थे।
आज भी खेलने को दिल मचलता है।
बचपन में लौट जाने को तड़पता है।।
आज अगर फिर से मिल जाए एक मौका।
हम भी लगा सकते हैं चौके पे चौका।
करीना थायत
कक्षा-9
गरुड़, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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