कविता : वे दिन थे मेरे लिए बेहद खास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 18 फ़रवरी 2024

कविता : वे दिन थे मेरे लिए बेहद खास

वे भी दिन थे मेरे लिए बेहद खास।

जब खेलने का था मुझको अहसास।।

अब तो जिंदगी से है यही आस।

दोबारा खेलने का मौका आए मेरे पास।।

न थी चिंता, न थी कोई फिक्र।

बस याद आ रहे हैं खेलकूद के दिन।

जब खेलते हैं बच्चे सारे दिन।

याद आते हैं मुझ को भी वो दिन।।

जब दोस्तों से खूब लड़ा करते थे।

और अक्ल से थोड़े कच्चे थे।।

फिर भी खेलने के इच्छुक रहते थे।

आज भी खेलने को दिल मचलता है।

बचपन में लौट जाने को तड़पता है।।

आज अगर फिर से मिल जाए एक मौका।

हम भी लगा सकते हैं चौके पे चौका।





Karina-thayat-charkha-features

करीना थायत

कक्षा-9

गरुड़, उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: