सीहोर : तीन हजार से अधिक परिवारों के दर्द में हो चुके शामिल, बुरे दिनों में निभाते हैं साथ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

सीहोर : तीन हजार से अधिक परिवारों के दर्द में हो चुके शामिल, बुरे दिनों में निभाते हैं साथ

  • पिता को खोया, फिर खाई कसम, अब तक कर चुके हैं 3240  शवों का अंतिम संस्कार

Sehore-news
सीहोर। ये हैं शहर के विश्रामघाट के समीपस्थ देव नगर कालोनी निवासी राजू सोनी। जो शासकीय सर्विस करते है। उम्र 52 साल पर एकदम स्वस्थ। जब ये 20 साल के थे तो उनकी आर्थिक स्थित बहुत खराब थी, अचानक पिता का निधन हो गया, कोई कंधा देने वाला नहीं था, उस दौरान अपने मित्र मुकेश खत्री और मनोज दीक्षित मामा के साथ ठेले में शव लेकर शहर के विश्रामघाट पर पहुंचे और यथा स्थिति अपने पिता का अंतिम संस्कार किया, लेकिन उस दौरान उन्होंने संकल्प लिया की इस दर्द में सभी का साथ देंगे। वह पिछले 35 सालों से दुख में बिना बुलाए शामिल होते है और अब तक 3240 शवों को कंधा देकर विधि-विधान से दाह संस्कार करा चुके है। इसके अलावा दस से अधिक लावारिस लाशों का स्वयं की राशि से अंतिम संस्कार किया। उन्होंने बताया कि करीब साढ़े सात हजार रुपए अंतिम संस्कार में खर्च आता है। जब कभी किसी को राशि का अभाव होता है तो वह अपनी ओर से जिम्मेदारी लेते है। पहले वह विषय परिस्थितियों में नमक चौराहे और संजय टाकिज  के पास स्वर्णकार समाज की धर्मशाला में किराए के मकानों में रह चुके है, लेकिन अब स्वयं का भवन है और भगवान के आशीर्वाद से सक्षम हो गए है।


सार्वजनिक रूप से किया गया सम्मान, आंखे हो गई नम

दर्द में सारे कार्य छोड़कर गमगीन परिवार को साथ देने वाले राजू सोनी का शहर के नमक चौराहे पर जिला संस्कार मंच के जिला संयोजक सुमीत भानू उपाध्याय, अग्रवाल समाज की ओर से राजा सेठ, छावनी उत्सव समिति की ओर से आनंद गांधी, कमल अग्रवाल, नव ज्योति संगठन की ओर से अखिलेश माहेश्वरी, मोहन अग्रवाल, इंजीनियर दिनेश प्रजापति आदि ने सम्मान और स्वागत किया।


समाज और परिचित पैसे वालों के होते है

आज से 35 साल पहले जब अपने पिता को खोया और हाथ ठेले पर कुछ लोगों के साथ गए थे, उस दौरान समाज और परिचित लोगों ने कन्नी काट ली थी, विषम परिस्थितियों में लोग सलाह देने आते थे, लेकिन किसी ने सहयोग और साथ नहीं दिया। छावनी में परिचित व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी तो पहली बार किसी की शव यात्रा में शामिल हुए। जीवन की क्षणभंगुरता को समझते हुए और शोक संतप्त परिवार को ढाढ़स बंधाते हुए इन्होंने अंतिम यात्रा में जाने का नियम ही बना लिया। किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति हो, उसकी बैकुंठी तैयार करते है, चिता सजाते हैं, अर्थी को कंधा देने के साथ समस्त अंतिम संस्कार प्रक्रिया में शामिल होते हैं। 35 पहले से शुरू हुआ लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का सफर कोरोना काल में भी बंद नहीं हुआ। कहीं से भी लावारिस लाश की सूचना मिली, राजू ने विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार कराया। उनका दिल गरीबों के लिए ही धड़कता है। जब भी किसी के यहां पर गमी होती है तो वह राजू को याद करते है तो वह सारे कार्य छोड़कर अंतिम संस्कार तैयारियां में स्वयं जुट जाते है। 

कोई टिप्पणी नहीं: