करीब 1950 लोगों की जनसंख्या वाले इस गाँव में अधिकतर उच्च जाति के लोग निवास करते हैं। गाँव के ज्यादातर लोग कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं। जिनके पास अपनी जमीन नहीं है वह दैनिक मजदूरी या फिर रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन कर चुके हैं। लेकिन इस समय गाँव की कृषि कार्य पर बंदरों का आतंक छाया हुआ है। वह खड़ी फसल और तैयार सब्जियों के खेतों को तबाह कर रहे हैं। इस संबंध में गांव की एक अन्य महिला 38 वर्षीय कलावती देवी कहती हैं कि “बंदरों के बढ़ते आतंक से पूरा गाँव परेशान और मुश्किलों में है। उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। हम बहुत परिश्रम से अपनी छोटी जमीन पर सब्जियां उगाते हैं। लेकिन बंदरों का झुंड उसे पूरी तरह से तबाह कर देता है। अपनी खेती की पैदावार को ठीक करने के लिए हम दिन रात मेहनत करते हैं। लेकिन जैसे ही फसल तैयार होती है बंदर उसे जड़ से ही नष्ट कर देते हैं। जिसकी वजह से हमें भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। यदि प्रशासन ने इस समस्या पर जल्द काबू नहीं पाया तो गाँव वालों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।“ वहीं 23 वर्षीय भक्ति कहती हैं कि “बंदरों की बढ़ती आबादी से परेशान ग्रामीणों ने बंदर भगाओ अभियान भी चलाया था। इसके लिए गरुड़ ब्लॉक के अन्य गांवों के लोगों ने भी बड़ी संख्या में आंदोलन किया था। लेकिन अभी तक इसका कोई भी फायदा नहीं हुआ है। बंदरों की संख्या संख्या इतनी बढ़ गई है कि एक ओर जहां वह तबाही मचा रहे हैं वहीं दूसरी ओर जगह-जगह गंदगी करते हैं जिससे पूरा वातावरण दूषित हो रहा है। खेतों में जो सब्जियां होती हैं बंदर उसे पूरी तरह से खराब कर देते है। हम कोई भी चीज बाहर नहीं रख सकते हैं। पता नहीं हमें कब तक इन बंदरों के आतंक को झेलना पड़ेगा।“
बंदर केवल फसलों को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं बल्कि वह ग्रामीणों पर भी हमला कर उन्हें घायल कर देते हैं। इसका सबसे अधिक नुकसान स्कूल जानें वाली छात्राओं को हो रहा है। कक्षा 11 में पढ़ने वाली गुंजन का कहना है कि “स्कूल जाते समय बंदर हमारे बैग छिन लेते हैं और हमारी किताबें और कॉपियाँ फाड़ देते हैं। हमें बंदरों से बहुत डर लगता है। कई बार तो वह हमें जख्मी भी कर देते हैं। स्कूल आते जाते समय हमें हमेशा बंदरों का भय बना रहता है। वहीं गाँव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गोदावरी देवी कहती हैं कि “पिछले कुछ वर्षों से बंदरों की बढ़ती संख्या से तमाम ग्रामवासी बहुत ही परेशान हैं। हमारे पास जो रिकार्डस होते हैं वह बंदर छिन कर उसे नष्ट कर देते हैं। जिससे हमारा कामकाज बहुत प्रभावित हो रहा है। रिकॉर्ड्स नष्ट होने से हमें उच्च अधिकारियों को जवाब भी देना पड़ता है और जरूरी होने पर फिर से उन रिकॉर्ड्स को तैयार करनी पड़ती है। गाँव का कोई ऐसा वर्ग नहीं है जो बंदरों के इन आतंक से परेशान नहीं हुआ होगा।“ इस संबंध में पिंगलो गांव के ग्राम प्रधान पवन सिंह खाती बताते हैं कि “हमने अपने स्तर से बहुत प्रयास किया लेकिन बंदरों का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इससे लोगों की खेती नष्ट हो रही है। हर समय बच्चों को काटने का डर बना रहता है। जिसकी वजह से हम बहुत परेशान हैं। इसके लिए हमने ब्लॉक लेवल तक अधिकारियों से बात की लेकिन कोई सकारात्मक उपाय निकलता नजर नहीं आ रहा है। अब हम लोगो ने सारी चीज सरकार के ऊपर छोड़ दी है। अब पता नहीं हमें इससे कैसे और कब निजात मिलेगी? या फिर हमें ऐसे ही बंदरों का आतंक झेलते रहना पड़ेगा।“
इस संबंध में गाँव की सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी बताती हैं कि बंदरों का यह आतंक केवल पिंगलों गाँव तक ही सीमित नहीं है बल्कि गरुड़ ब्लॉक के अन्य गांवों मेगड़ी स्टेट, रौलीयाना, जौड़ा स्टेट, गागरी गोल और नौघर में भी फैला हुआ है। जिससे इस ब्लॉक की एक बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है। उन्होंने बताया कि इन गांवों में किसान जहां गेंहू और धान की फसल उगाते हैं वहीं दूसरी ओर लहसुन, हल्दी, काली मसूर, सरसों, लौकी, कद्दू, शिमला मिर्च और बैंगन समेत बड़ी मात्रा में हरी सब्जियां भी उगाते हैं। जिसे बंदरों की बड़ी फौज तबाह कर देती है। इससे लोगों को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान हो रहा है। वहीं बंदरों के हमले से बच्चे, बूढ़े, किशोरियां और महिलाएं घायल हो रही हैं। नीलम ने बताया कि पिछले हफ्ते इन सभी गांवों के हजारों निवासियों ने ब्लॉक मुख्यालय पर धरना भी दिया था। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि इन बंदरों को पकड़ कर या तो चिड़ियाघर पहुंचाया जाए या फिर दूर जंगलों में छोड़ा जाए ताकि यह इंसानी आबादी को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचा सकें। उन्होंने बताया कि बंदरों के बढ़ते आतंक की एक वजह उनकी तेजी से बढ़ती आबादी भी है। ऐसे में गाँव वालों की मांग है कि बंदरियों का बंध्याकरण किया जाए ताकि भविष्य में उनकी बढ़ती आबादी पर काबू पाया जा सके। उन्होंने कहा कि जब तक प्रशासन इस मामले को गंभीरता से नहीं लेता है, समस्या का स्थाई हल निकालना मुमकिन नहीं है। प्रशासन को समय रहते इसकी गंभीरता को समझना होगा ताकि गाँव वालों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके।
सपना
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें