कहां गए वो दिन जब
दादी जी दुकान से चीज़ें लाती थी,
और हम भाई बहन बेसब्री से उनका इंतजार करते थे,
कभी कभी मम्मी की मार से बचने के लिए हम,
दादी जी के कमरे में घुस जाते थे,
और वहां से मां को खूब चिढ़ाते थे,
चलो गांव की ओर अपनी यादो को ताजा करते हैं,
नम हो जाती हैं कभी आंख दादी जी का प्यार,
दादी मां का दुलार याद कर के,
चलो गांव की ओर यादों को ताजा करते हैं,
चलो गांव की ओर अपनी सभयता को बचाते हैं,
चलो गांव की ओर हमसे जितना हो पाए,
वो गांव के लिए करते है।।
दिव्या धपोला
कक्षा-12वीं
दोफाड़, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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