लोकसभा चुनाव 2024 की गूंज अब पूरे देश में सुनाई देने लगी है। इसके लिए तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है. वहीं, जो कल तक एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे, आज अपना वजूद बचाने के लिए गलबहिया कर रहे है. ऐसे में राजनीतिक दलों के अलावा लोगों के बीच भी अटकलों का बाजार गर्म है. सत्ता की चाबी किसे मिलेगी, नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे या किसी और की किस्मत जागेगी। ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन बड़ा सवाल तो यही है हैट्रिक लगाने का दंभ भर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के साथ-साथ में अपनी ही जीत का रिकार्ड तोड़ पायेंगे? खासतौर से तब जब मोदी के घूर विरोधी कांग्रेस, आप व सपा आदि इंडी गठबंधन के उम्मींदवार सामने होंगे। बता दें, 2019 में वाराणसी सीट पर मोदी 6,74,664 वोट पाकर सपा को पौने पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराकर जीत का रिकार्ड बनाया था। जबकि 2014 में मोदी 5,81,022 वोट हासिल कर आप के अरविंद केजरीवाल को पौने चार लाख वोट से हराया। मतलब साफ है इस बार जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मोदी सात लाख से अधिक वोट पाने होंगे। इसी तरह देश के 543 सीटों के मुकाबले मोदी को अपने खुद के टारगेट 400 पार के लक्ष्य को भेदने की चुनौती होगी। यह रिकार्ड 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस बना चुकी है। उस वक्त कांग्रेस ने अपने दम पर 404 सीटें जीती थीं। जबकि 2019 में बीजेपी अकेले दम पर 283 व भाजपा गठबंधन ने कुल 336 सीटें जीती और 2014 में भाजपा अकेले 282 व भाजपा गठबंधन से 336 सीटें जीती थीवाराणसी (सुरेश गांधी) अस्सी से वरुणा के बीच में बसा वह शहर है जो शंकर का शहर माना जाता है. शिव के त्रिशूल पर बसी मां जान्हवी के अर्धचंद्राकार भौगोलिक आंचल में बसा यह शहर धर्म एवं आस्था के साथ-साथ भगवान वाराणसी, यूपी के प्रसिद्ध शहरों में से एक है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख बाबा श्री विश्वनाथ की नगरी है. मोक्ष की नगरी है. 5-5 भारत रत्नों की जननी है. इसे ’बनारस’ और ’काशी’ भी कहते हैं। इनके अलावा इसे मंदिरों का शहर’, ’भारत की धार्मिक राजधानी’, ’भगवान शिव की नगरी’, ’दीपों का शहर’, ’ज्ञान नगरी’ नाम से भी संबोधित किया जाता है। इसे हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र नगरों में से एक माना जाता है। इसके अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा और विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि प्रमुख है। वाराणसी का अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट, गंगा घाट, ललिता घाट, नमो घाट के अलावा सारनाथ और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भी यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इन खूबियों के बीच अगर बनारस की रेशमी साड़ियों का जिक्र ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समय-समय पर बनारसी साड़ियों के साथ बाबा विश्वनाथ की महिमा का बखारते रहते है। बात विकास की हो तो मोदी ने अपने दो टर्म के कार्यकाल यानी दस साल में इतना काम करा दिया है कि आने वाले पर्यटक निहारते ही रह जाते है, उनके मुख से बस यही निकलता है अरे क्या यह वही काशी है?
जिसने काशी का दिल जीता, काशी उसी की हो गई। बाबा विश्वनाथ की नगरी ऐसी ही निराली है। ‘मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है’, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान पर काशी फिदा हो गई थी। काशी के घाटों पर उनके फावड़ा लेकर उतरने का दृश्य तो याद ही होगा। काशी को क्योटो बनाने के दावे के साथ यहां से सांसद बने पीएम नरेंद्र मोदी के कई काम अब सुर्खियों में हैं। वाराणसी और उसके आसपास सड़कों का जाल फैला हुआ है। फ्लाईओवर भी राह आसान कर रहे हैं। तो वहीं, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर देश ही नहीं दुनिया में चर्चा का विषय है। देखा जाएं तो 22 फरवरी को 43वीं बार वाराणसी पहुंचे पीएम मोदी ने यूपी की 80 सीटें जीतने वाला भाषण दी, वो लोगों के दिलों दिमाग पर छा गया है। वैसे भी जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में पूर्वांचल की वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो ये सबकी नजरों में आ गई. मोदी ने गंगा की सफाई से लेकर घाटों की दुर्दशा तक को दूर करके काशी को क्योटो बनाने का भरपूर प्रयास किया. मोदी के प्रयासों से काशी बदली भी, इसे हम नहीं हर कोई कहता फिर रहा हैं। अबकी बार मोदी का मकाबला किससे होगा, यह तो अभी तय नहीं है. लेकिन ये जरूर है कि जिस तरह से 2014 व 2019 में बीजेपी के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के पक्ष में जनता ने वोट दिया, और जीत के बाद वाराणसी में विकास की धारा बही, उससे जनता का मिजाज मोदी के पक्ष में ही जाता दिख रहा है. ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ का नारा इस बार भी बीजेपी के लिए संजीवनी की तरह दिख रहा है. वाराणसी में मोदी की लहर के आगे सभी विपक्षी दल एक होकर बीजेपी को रोकने का प्रयास करेंगे. लेकिन ये रथ रुकेगा या थमेगा, इसका फैसला तो जनता जनार्दन ही करेगी.
लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम
वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6,74,664 लाख वोट पाकर जीत हासिल की है। उन्होंने 4,79,505 लाख से ज्यादा के मार्जिन से जीत दर्ज की है। यहां से समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव 195159 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही हैं। जबकि कांग्रेस के अजय राय 152548 लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे हैं। 2024 में कांग्रेस व सपा साथ लड़ेंगी। यह अलग बात है कि सपा व कांग्रेस के वोट मिलाकर 3,47,707 के मुकाबले मोदी 3,26,957 वोट से आगे है। मतलब साफ है सपा कांग्रेस गठबंधन भी मोदी की लोकप्रियता के आगे बौने ही साबित होने वाले है। खासतौर से तब जब बनारस ही नहीं पूरे देश में मोदी सुनामी बह रही हो। वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा की मानें तो इस बार मोदी दस लाख से भी अधिक वोट पाकर अपना ही रिकार्ड तोड़ेंगे। एक सर्वे की माने तो वाराणसी के 19.39 लाख मतदाताओं में 87 फीसदी मतदाता का झकाव मोदी की ओर ही है। जबकि अन्य दलों में 13 फीसदी ही रुचि रखते है।
नरेंद्र मोदी : भाजपा : 6,74,664 वोट
शालिनी यादव : सपा : 1,95,159 वोट
हार का अंतर : 4,79,505
वोट प्रतिशत : 57
पुरुष मतदाता : 10,27,113
महिला मतदाता : 8,29,560
कुल मतदाता : 1856791
लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
वर्ष 2014 में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले। जबकि आप के अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों से हराया। निकटतम प्रतिद्वंद्वी की पार्टी आप थी। 2014 में कुल 58.35 प्रतिशत वोट पड़े।
कुछ जरुरी जानकारियां
वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से पांच विधानसभा सीटें जुड़ी हैं। रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा सीट पटेल बहुल मानी जाती है। सेवापुरी से भाजपा विधायक नीलरतन पटेल और रोहनिया से अपना दल एस के विधायक सुनील पटेल हैं। वाराणसी में कुल 19.39 लाख मतदाता है। उनमें से 8,29,560 पुरुष वोटर हैं। महिला मतदाताओं की संख्या 10,27,113 हैं। थर्ड जेंडर के मतदाता 118 हैं। 2019 में कुल वोटरों की संख्या 10,60,476 थी। जिनमें से कुल पुरुष मतदाता 6,06,306 और महिला मतदाता 4,52,435 थीं। 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 57.11 फीसदी था।
सबसे हाईप्रोफाइल सीट
देश की सबसे हाईप्रोफाइल लोकसभा सीट वाराणसी से सांसद देश के पीएम नरेंद्र दामोदार दास मोदी हैं। साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान करके सबको चौंका दिया था। नरेंद्र मोदी ने यहां रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर की थी। देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी में तकरीबन 18 लाख 32 हजार मतदाता हैं, जिनमें लगभग 82 प्रतिशत हिंदू, 16 प्रतिशत मुसलमान हैं, हिंदुओं में 12 फ़ीसदी अनुसूचित जाति और एक बड़ा तबका पिछड़ी जाति से संबंध रखने वाले मतदाताओं का भी है। साल 2014 से पहले यहां विकास के कामों की गति धीमी थी लेकिन केंद्र में सरकार बनने के बाद से अब तक बनारस के लिए तकरीबन 315 बड़ी परियोजनाएं स्वीकृत हुईं हैं, जिनमें से अब तक लगभग 279 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। विकास के पथ पर चल रहा ये शहर स्वच्छ और सुंदर दिखने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है।
वाराणसी लोकसभा सीट का इतिहास
वाराणसी लोकसभा सीट पर अबतक 16 बार चुनाव हुए हैं. इस सीट पर 6 बार कांग्रेस और 7 बार बीजेपी को जीत हासिल हुई है. जबकि जनता दल, सीपीएम, बीएलडी के खाते में एक-एक बार गई है. जहां तक इस सीट के इतिहास की बात है तो वो भी काफी दिलचस्प है। देश की आजादी के बाद 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ. वाराणसी के सांसद के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को जनता ने अपना सांसद चुना. 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में रघुनाथ सिंह ने वाराणसी के सांसद के रूप में यहां का प्रतिनिधित्व किया. लगातार तीन कार्यकाल पूरा करने के बाद 1967 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो रघुनाथ सिंह को हराकर कम्युनिस्ट पार्टी के सत्य नारायण सिंह ने वाराणसी से सांसद बने. 1977 में भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर को वाराणसी का सांसद होने का गौरव प्राप्त हुआ. 1980 मे सांसद के रूप में कमलापति त्रिपाठी को जनता ने चुना. 1991 के बाद हुए सात चुनावों में 7 में बीजेपी ने जीत हासिल की है. यहां से एक बार शिरीष चंद्र दीक्षित, तीन बार शंकर प्रसाद जायसवाल, एक बार डॉ. मुरली मनोहर जोशी और पिछले चुनावों में 2014 व 2019 में नरेंद्र मोदी ने जीत दर्ज की है, जबकि 1991 से पहले यहां कांग्रेस का राज रहता था। 1991 में यहां से बीजेपी के श्रीशचंद्र दीक्षित जीते थे. बाद में शंकर प्रसाद जायसवाल बीजेपी के टिकट पर तीन बार (1996, 1998, 1999 ) चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. सिर्फ 2004 में इस सीट पर कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने जीत हासिल की थी. लेकिन फिर 2009 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली।
जातीय समीकरण
वाराणसी लोकसभा में शहर उत्तरी, दक्षिणी, कैंट, रोहनिया व सेवापरी विधानसभा शामिल हैं. इन विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की भागीदारी बड़ी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह युवा मतदाता विनिंग फैक्टर साबित हो सकते हैं. कहा जाता है कि यूथ का मूड जिस ओर होगा हवा की बयार भी उसी और वह चलती है. जातिगत लिहाज से इस सीट पर सवर्ण वोट बैंक असरदायक माना जाता है. नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी हो जाने के बाद 2014 में जिस तरह से तस्वीर बदली, वह किसी से छुपी नहीं है. बीजेपी को वैश्य, बनियों और व्यापारियों की पार्टी मानी जाता है. वैश्य मतदाताओं की संख्या यहां पर लगभग साढ़े चार लाख के बीच है, जो सबसे ज्यादा है. लगभग ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता हैं. तीन लाख के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं. सवा लाख के आसपास भूमिहार मतदाता हैं. राजपूत मतदाताओं की संख्या भी एक लाख के आस पास है. यहां पर यादव मतदाताओं की संख्या ढेड़ लाख के आसपास है. पटेल बिरादरी जो कुर्मी बहुल क्षेत्र माना जाता है, उनकी संख्या भी दो लाख है. वाराणसी में चौरसिया मतदाताओं की संख्या अभी 80,000 से ऊपर है और लगभग 80,000 से 90,000 के बीच में दलित मतदाता भी हैं. इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां हैं. जो किसी एक प्रत्याशी पर वोट कर दें तो जीत तय की जा सकती है. इनकी भी संख्या 70,000 से ऊपर है. आकड़े बताते हैं कि छोटी-छोटी जातियों के वोट बैंक बड़े मायने रखते हैं. 2014 एवं 2019 में बीजेपी के साथ अपना दल जैसे क्षेत्रीय छोटी पार्टियों का गठजोड़ उसकी कामयाबी की बड़ी वजह थी. लेकिन इस बार चुनौती बड़ी है. यह चुनौती मोदी को खुद अपने रिकार्ड तोड़ने की चुनौती है. कांग्रेस अपना दल के दूसरे गुट के सहारे कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है. ब्राह्मण और अति पिछड़ी जातियों पर भी उसकी नजर है. ऐसे में इस बार रिकार्ड तोड़ पाना उतनी आसान नहीं रहने वाली.
कब कौन रहा सांसद
1952 रघुनाथ सिंह : कांग्रेस
1957 रघुनाथ सिंह : कांग्रेस
1962 रघुनाथ सिंह : कांग्रेस
1967 सत्यनारायण सिंह : भाकपा
1971 राजाराम शास्त्री : कांग्रेस
1977 चंद्रशेखर : जनता पार्टी
1980 कमलापति त्रिपाठी : कांग्रेस (इंदिरा)
1984 श्यामलाल यादव : कांग्रेस
1989 अनिल कुमार शास्त्री : जनता दल
1991 शिरीषचंद्र दीक्षित : भाजपा
1996 शंकर प्रसाद जायसवाल : भाजपा
1998 शंकर प्रसाद जायसवाल : भाजपा
1999 शंकर प्रसाद जायसवाल : भाजपा
2004 डॉ. राजेश कुमार मिश्रा : कांग्रेस
2009 डॉ. मुरली मनोहर जोशी : भाजपा
2014 नरेंद्र मोदी। : भाजपा
2019 नरेंद्र मोदी ः भाजपा
एक बार फिर अजय राय
भाजपा के राजेश यादव की माने तो एक बार फिर अजय राय के मोदी की लोकप्रियता के सामने हार के लिए तैयार हैं। बता दें, अजय राय 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार थे. उन्हें 2014 में सिर्फ 75,614 वोट मिले और वह 5,05,408 लाख वोटों के अंतर से चुनाव हार गए. 2019 में उन्हें 152,548 लाख वोट मिले और उनका मत प्रतिशत बढ़ा, लेकिन हार का अंतर भी बढ़ा. इस बार वह 5,22,116 लाख वोटों के अंतर से चुनाव हारे. इस बार आगामी लोकसभा चुनावों के लिए सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन पर मुहर लग चुकी है. दोनों दलों ने सीट बंटवारा भी कर लिया है, जिसके तहत कांग्रेस एक बार फिर अजय राय को मोदी के मकाबले उतार सकती है. अजय राय वर्तमान में यूपी कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं. इसके अलावा अजय राय पांच बार के विधायक रहे हैं. वह 1996, 2002 और 2007 में वाकी कोलासला विधानसभा सीट से भाजपा विधायक रहे हैं. अजय राय ने 2007 में भाजपा छोड़ने के बाद 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कोलासला में उपचुनाव जीता और चौथी बार विधायक बने. फिर 2012 में उन्होंने वाराणसी की पिंडरा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर पांचवीं बार विधायक बने. उसके बाद से उन्होंने विधानसभा और लोकसभा के जितने भी चुनाव लड़े, सबमें हार का सामना किया. अजय राय का जन्म वाराणसी में पार्वती देवी राय और सुरेंद्र राय के घर एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो गाजीपुर जिले के मूल निवासी थे. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत आरएसएस की छात्र ईकाई एबीवीपी से की थी. वह सपा में भी रहे और 2012 से कांग्रेस के साथ हैं. वह खुद भूमिहार समुदाय से आते हैं. वाराणसी की पिंडरा (कोलासला सीट के विलय के बाद)विधानसभा सीट पर भूमिहार समुदाय निर्णायक भूमिका में है. अजय राय के खिलाफ आपराधिक मुकदमे भी दर्ज हैं. वर्ष 1994 में कथित तौर पर मुख्तार अंसारी और उनके लोगों ने लहुराबीर इलाके में उनके बड़े भाई अवधेश राय की गोली मारकर हत्या कर दी थी. तबसे राय और अंसारी परिवार के बीच अदावत रही है।
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