- दमन व जेल से दलित-गरीबों की दावेदारी रोकी जा नहीं सकती, भाजपा और सामंती ताकतों की साजिश के शिकार हुए मनोज मंजिल, इस न्यायिक जनसंहार के खिलाफ जनता में जाएगी माले
देश को मनोज मंजिल जैसे नेताओं की जरूरत है. एक दलित-मजदूर परिवार से आने वाले मनोज मंजिल ने छात्र जीवन में ही दलित-गरीबों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. छात्र जीवन में उन्होंने कैंपस के भीतर एक प्रखर छात्र नेता की पहचान बनाई. उसके बाद उन्होंने भोजपुर के ग्रामांचलों में काम करना शुरू किया. उनके नेतृत्व में चलाए गए सड़क पर स्कूल आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की. सीएए कानून में संशोधन के खिलाफ भी उन्होंने इलाके में कई आंदोलन किए. कोविड काल में भी उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही. वे अपनी टीम के साथ लगातार अस्पतालों में कैंप करते रहे और अपनी जान की बिना परवाह किए लोगों के इलाज की व्यवस्था करवाते रहे. सड़क दुर्घटना हो या फिर जनता की कोई अन्य समस्या, मनोज मंजिल जनता तक पहुंचने वाले सबसे पहले नेता हुआ करते थे. अभी वे खेत मजदूर मोर्चे पर काम कर रहे थे और खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष थे. अपनी पहलकदमियों और दलित-गरीबों के प्रति अटूट समर्पण की वजह से मनोज मंजिल अपने इलाके में काफी लोकप्रिय थे. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें अगिआंव विधानसभा सीट पर 62 प्रतिशत से अधिक मत मिले. उनके निकटतम प्रतिद्वन्दी भाजपा-जदयू गठबंधन के उम्मीदवार 50 हजार से अधिक वोटों से पीछे रहे गए थे. इसी लोकप्रियता के कारण भाजपा व सामंती ताकतों को इस उभरते नौजवान दलित विधायक से डर समाया हुआ था और वे लगातार उनके खिलाफ साजिशें करती रहती थीं. संसद या विधानसभा में इन ताकतों को जनता के पक्ष में बोलने वाली आवाजें नहीं चाहिए. लेकिन उनकी इन साजिशों से दलित-गरीबों की दावेदारी नहीं रूकने वाली है. विदित हो कि 2015 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मनोज मंजिल व उनके साथियों को हत्या के उपर्युक्त मुकदमे में साजिश करके फंसाया गया था. उच्च न्यायालय के साथ-साथ इस न्यायिक जनसंहार के खिलाफ जनता के व्यापक हिस्से में भी जाने का पार्टी ने अभियान लिया है. पूरे बिहार में इसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है. भोजपुर में 19 से 25 फरवरी तक विशेष अभियान लिया गया है. इस अन्याय के खिलाफ हमारे कार्यकर्ता एक-एक गांव में जायेंगे.
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