डॉ. ए. के. पात्रा ने संस्थान के शोध कार्यों की प्रशंसा करते हुए वैज्ञानिकों को बाह्य पोषित परियोजनाओं को लाने पर बल दिया | उन्होंने संबंधित विभागों के साथ मिलकर सहयोगी अनुसंधान को बढ़ाने पर बल दिया और बताया कि विशिष्ट क्षेत्र के समुदाय अथवा किसान केंद्रित तकनीक पर ज्यादा से ज्यादा शोध-कार्य होना चाहिए तथा फ्लोराईड एवं आर्सेनिक के गहन अध्ययन करने की सलाह दी| उन्होंने यह उम्मीद जताई कि यह संस्थान आने वाले समय में अपने अधिदेश पर कार्य करते हुए देश में उत्कृष पहचान बनाएगा। डॉ. एस. रायज़ादा ने संस्थान परिसर एवं प्रक्षेत्र प्रबंधन की प्रशंसा की एवं बताया कि बिहार में मात्स्यिकी क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। इस राज्य के आर्द्रभूमि क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने हेतु शोध कार्य करने पर बल दिया। उन्होंने जल कृषि पर ज्यादा से शोध करने एवं सहयोगात्मक प्रणाली से पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में इसे बढ़ाने पर बल दिया। डॉ. चंद्रहास ने पशुधन में हो रहे लक्षण वर्णन संबंधी शोध कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पशुधन उत्पाद एवं उनके मूल्य वर्धन के क्षेत्र में बहुत संभावना है एवं इस दिशा में किसानों को अवगत कराने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पशुओं के चारे की पोषण संबंधी पहलुओं तथा पशुधन एवं संसाधन पुनर्चक्रण पर गहन शोध करने की जरूरत है। बिहार एवं झारखंड द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना तथा विभिन्न प्रायोजित योजनाओं की राशि से संस्थान एवं इसके केंद्र द्वारा विकसित तकनीकों को लाभुकों तक पहुंचाने हेतु संस्थान द्वारा किए प्रयास के लिए क्यूआरटी टीम ने विशेष प्रशंसा की। पंचवर्षीय समीक्षा टीम (क्यूआरटी) की बैठक में संस्थान एवं इसके केंद्र के सभी प्रभागाध्यक्ष एवं वैज्ञानिक उपस्थित थे। डॉ. कमल शर्मा, सदस्य सचिव, क्यूआरटी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ समीक्षा बैठक का समापन हुआ।
पटना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की पंचवर्षीय उच्चस्तरीय समीक्षा टीम (क्यूआरटी) ने 06 फरवरी से 08 फरवरी तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना एवं इसके केन्द्र द्वारा वर्ष 2018 से 2022 तक किए गए शोध कार्यों की समीक्षा की। डॉ. (प्रो.) एस. के. चक्रवर्ती, पूर्व कुलपति, उत्तर बंग कृषि विश्वविद्यालय, कूच बिहार, पश्चिम बंगाल की अध्यक्षता में यह समीक्षा की गई, जिसमें डॉ. ए. के. पात्रा, पूर्व निदेशक, भारतीय मृदा अनुसंधान संस्थान, भोपाल; डॉ. एस. रायज़ादा, पूर्व सहायक महानिदेशक, अंतर्देशीय मात्स्यिकी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली; डॉ. चंद्रहास, अधिष्ठाता, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, किशनगंज, बिहार एवं डॉ. अंजनी कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली सदस्यगण के रूप में उपस्थित थे। संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने संस्थान एवं इसके केन्द्रों की गतिविधियों के बारे में विस्तार से अवगत कराया तथा वैज्ञानिकों द्वारा किए विभिन्न शोध कार्यों के बारे जानकारी दी, जिसके बाद विशेषज्ञों ने अपने-अपने विचार रखे। अध्यक्ष डॉ. (प्रो.) एस. के. चक्रवर्ती ने संस्थान एवं इसके केन्द्रों के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि संस्थान डॉ. अनुप दास के मार्गदर्शन में उत्कृष्ट शोध कार्य कर रहा है | उन्होंने बताया कि संस्थान में विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों का होना संस्थान की सबसे बड़ी ताकत है | अपने संबोधन में उन्होंने सही तरीके से संसाधन पुनर्चक्रण, सिंचाई में सोलर पम्प का प्रयोग, बायोफ्लॉक तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत के उपयोग को बढ़ाने आदि पर विस्तृत रूप से चर्चा की तथा फसल अवशेष प्रबंधन एवं तकनीक को क्षेत्र विशेष के अनुसार तकनीकों पर कार्य करने की सलाह दी | उन्होंने समेकित कृषि प्रणाली एवं जलवायु अनुकूल कृषि ज्यादा से ज्यादा कार्य करने पर जोर दिया ताकि पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम हो | उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों/ विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर सहयोगात्मक प्रणाली में काम करने से संस्थान की उपलब्धियाँ और उजागर होंगी |
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