- "बिदाय दे मा” पुस्तक का विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण
नई दिल्ली। भगत सिंह के साथ साथ एक पूरी पीढ़ी आज़ादी के आंदोलनों में लगी थी लेकिन इतिहास में उसका उल्लेख नहीं हो सका। क्रांतिकारियों को फांसी हो जाने के बाद उनकी मांओं व परिवारों की स्थिति का वर्णन हमें नहीं मिलता जबकि सभी क्रांतिकारी सामान्य परिवारों से आते हैं जिन्होंने देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उनकी मांओं व परिवारों ने उनसे बड़ी क़ुरबानी देश की आज़ादी के रास्ते में दी। सुपरिचित लेखक अशोक कुमार पांडेय ने विश्व पुस्तक मेले में राजपाल एंड संज के स्टाल पर विख्यात लेखक सुधीर विद्यार्थी की सद्य प्रकाशित कृति 'बिदाय दे मा' के लोकार्पण में उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक इतिहास के उन खाली पृष्ठों को पूरा करती है। युवा आलोचक पल्लव ने अपने वक्तव्य में कहा कि विद्यार्थी का समूचा जीवन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को समर्पित रहा है और उनके योगदान से ही अनेक गुमनाम क्रांतिकारियों का वास्तविक इतिहास हम जान सके। भगत सिंह तथा अन्य क्रांतिकारियों की मांओं और उनके परिवार की स्थिति पर यह पहली किताब है। सुधीर विद्यार्थी जी ने भारत के क्रांतिकारियों की याद को बचाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है जोकि इस पुस्तक में भी दिखाई देता है। लेखकीय वक्तव्य सुधीर विद्यार्थी ने कहा कि उन्हें क्रांतिकारी इतिहास लेखक के रूप में जाना जाता है और वे सत्रह वर्ष की आयु से ही क्रांतिकारियों से भेंट तथा साक्षात्कार करते आ रहें हैं। यही वजह है कि उन्हें क्रांतिकारियों के जीवन से जुड़ी घटनाओं को जानने और उन्हें लिखने की रुचि हुई। प्रकाशक मीरा जौहरी ने बताया कि भगत सिंह तथा अन्य क्रांतिकारियों के व्यक्तित्व निर्माण में उनकी मांओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है और इस पुस्तक में ऐसी बारह क्रांतिकारी मांओं पर अध्याय हैं। उन्होंने कहा कि इस किताब को प्रकाशित करना उनके लिए गौरव की बात है। अंत में राजपाल एंड संज की ओर से सुभाष चंद्र ने सभी का आभार व्यक्त किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें