विश्व पुस्तक मेले में स्वयं प्रकाश की पुस्तक लोकार्पित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

विश्व पुस्तक मेले में स्वयं प्रकाश की पुस्तक लोकार्पित

Swayam-prakash-book-inaugration
नई दिल्ली। भारतीय सामाजिक यथार्थ को स्वयं प्रकाश ने अपनी कहानियों में जिस सूक्ष्मता से चित्रित किया है वह किसी साधारण लेखक के लिए संभव नहीं है। स्वयं प्रकाश समाज के यथार्थ को श्वेत श्याम में देखने के बजाय उसके तमाम रंगों के साथ देखते हैं। लेखक और पत्रकार श्याम सुशील ने विश्व पुस्तक मेले में 'नयी किताब प्रकाशन' के स्टाल पर 'स्वयं प्रकाश की चुनी हुई कहानियाँ'  पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि उनका लेखन बहुरंगी है और उसमें व्यापकता के साथ गहराई भी है। सुशील ने स्वयं प्रकाश के साथ गोवा में हुई अपनी भेंट को भी याद किया और कहा कि वे जितने बड़े कहानीकार थे उतने ही बड़े मनुष्य भी थे। युवा कथाकार उमाशंकर चौधरी ने कहा कि विचारधारा के लिए समर्पित रहने वाले दुर्लभ लेखकों में स्वयं प्रकाश का नाम अग्रणी है और अपनी वैचारिक निष्ठाओं को पूरा करते हुए भी वे कला की कसौटी पर कहीं समझौता नहीं करते। चौधरी ने स्वयं प्रकाश की चर्चित कहानी पार्टीशन का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान परिदृश्य में यह कहानी मूल्यवान कृति के रूप में नज़र आती है। कवि ज्योति चावला ने स्वयं प्रकाश के सम्पादन को याद करते हुए कहा कि प्रगतिशील वसुधा के अनेक महत्त्वपूर्ण अंक उनके समय में आए। चावला ने बच्चों की पत्रिका 'चकमक' के संपादन के लिए स्वयं प्रकाश को याद किया। युवा आलोचक पल्लव ने कहा कि स्वयं प्रकाश उन दुर्लभ कहानीकारों में थे जिनके पास श्रेष्ठ कहानियों की संख्या अच्छी खासी है। साम्प्रदायिकता के असल कारणों की व्याख्या उनकी कहानियों का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है तो वे भारत के विशाल मध्य वर्ग को भी अपना विषय बनाते हैं। इस मध्य वर्ग से उन्हें शिकायतें तो हैं लेकिन वे इसे खारिज नहीं करते बल्कि इसके भीतर मौजूद विरल सद्गुणों की तलाश उनकी कहानियों को यादगार बनाती है। उन्होंने प्रेमचंद की तरह पर्याप्त बड़ी संख्या में कहानियाँ लिखीं और दूसरा लेखन भी किया। उपन्यास, नाटक, निबंध, रेखाचित्र, बाल साहित्य और अनुवाद में उनकी कुल पुस्तकें पचास तक पहुँचती है। लोकार्पण में पाखी के सम्पादक पंकज शर्मा भी उपस्थित थे। प्रकाशक अतुल महेश्वरी ने बताया कि यह पुस्तक अंगरेजी के अध्येता प्रो आशुतोष मोहन के सम्पादन में आई है। उन्होंने अपने प्रकाशन से आई इस शृंखला की अन्य पुस्तकों की भी जानकारी दी। 

कोई टिप्पणी नहीं: