- एएसआई की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानवापी में आठ तहखाने हैं। इनमें से एस-1 और एन-1 तहखाना का सर्वे नहीं हुआ है। क्योंकि इन दोनों तहखानों के भीतर प्रवेश करने का जो रास्ता है उसे ईंट-पत्थर से बंद कर दिया गया है
- मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष को वाराणसी जिला जज द्वारा पूजा की अनुमति वाले आदेश को चुनौती दी है
कुछ इस तरह हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने रखीं दलीलें
ज्ञानवापी के दक्षिणी तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने की अनुमति देने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई हुई. इस दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि दक्षिणी तहखाने में पूजा करने का अदालत का 31 जनवरी का आदेश बिना आवेदन के पारित किया गया था. मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट को बताया कि आवेदन 9जी को 17 जनवरी के आदेश द्वारा पहले ही निपटा दिया गया था. क्या जिला जज के पास नए आवेदन के बिना 31 जनवरी को के आदेश को पारित करने की शक्ति थी? इस दौरान जस्टिस आरआरए ने कहा कि एक बार जब 17 जनवरी को आदेश द्वारा आवेदन का निपटारा कर दिया गया है, तो दूसरा आदेश कैसे पारित किया जा सकता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 जनवरी का वाराणसी जिला अदालत के उस आदेश को देखा जिसमें जिला मजिस्ट्रेट को संपत्ति का रिसीवर नियुक्त किया गया. बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष को वाराणसी जिला जज द्वारा पूजा की अनुमति वाले आदेश को चुनौती दी है. यह याचिका अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की तरफ से दाखिल की गई है. इससे पहले पिछली सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की पूजा पर रोक लगाने वाली याचिका पर अंतरिम रोक लगाने वाली याचिका पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से पूछा था कि आपने 17 जनवरी के आदेश डीएम को रिसीवर नियुक्त करने को चुनौती नहीं दी है जबकि 31 जनवरी का आदेश एक परिणामी आदेश है, जब तक उस आदेश को चुनौती नहीं दी जाएगी तब तक यह अपील कैसे सुनवाई योग्य होगी?
मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की याचिका पर क्या कहा?
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी को अपील में संशोधन अर्जी के जरिए 17जनवरी के डीएम को रिसीवर नियुक्त करने के मूल आदेश को चुनौती देने की अनुमति दी थी. महाधिवक्ता ने कानून व्यवस्था बनाए रखने का आश्वासन दिया था. मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि हाई कोर्ट में दायर अपील में यह अनुरोध किया गया है कि हिंदू पक्ष का मुकदमा स्वयं सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहतवर्जित है. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि मुकदमा दायर करने के पीछे मुख्य उद्देश्य ज्ञानवापी मस्जिद पर विवाद पैदा करना था जहां नियमित नमाज अदा की जाती है. मामले को लेकर हिंदू पक्ष की ओर से कैविएट भी दाखिल की गई थी. वाराणसी कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि एक हिंदू पुजारी ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में मूर्तियों के सामने प्रार्थना कर सकता है. आदेश के मुताबिक, पूजा काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा नामित एक “पुजारी“ द्वारा आयोजित की जाएगी. बुधवार की रात यहां पूजा आयोजित की गई थी. कोर्ट ने उनसे 17 और 31 जनवरी दोनों ही दिनों के आदेश पेश करने को कहा. नकवी ने उसे कोर्ट को दिखाया और दोनों आदेशों को पढ़कर सुनाया है. कोर्ट ने पूछा है कि 1993 में तहखाना बंद होने के समय क्या स्थिति थी. वहां पूजा होती थी या नहीं या वह जगह मस्जिद के हिस्से में आती थी. मस्जिद कमेटी की तरफ से कहा गया है कि 1993 से पहले तहखाना में किसी तरह की कोई पूजा नहीं होती थी. यह बात 1968 के एक मुकदमे में पहले भी साफ हो चुकी है.
आदेश पारित करने का अधिकार था : जैन
जैन ने कहा जिला जज के यहां मुकदमा ट्रांसफर करने का अनुरोध हमने ही किया था. मुकदमे के ट्रायल के दौरान अदालत पक्षकारों को राहत देती हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है. जिला जज को धारा 151 के तहत आदेश पारित करने का अधिकार था, इसीलिए उन्होंने किया. इससे पहले जैन ने कोर्ट में कहा कि व्यास तहखाने पर मुस्लिम पक्ष का कब्जा नहीं था. इस पर कोर्ट ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के असलम भूरे केस का हवाला देकर सरकार पर भरोसा रखने की बात कह रहे हैं. इस पर जैन ने कहा कि भूरे का केस सिविल मुकदमें पर रोक नहीं लगाता. इस तरह के तमाम सिविल मुकदमे सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं. जैन ने यह भी कहा था कि यह कहना गलत है कि जिला जज ने अपने रिटायरमेंट के दिन फैसला सुनाने की वजह से आदेश पारित करने में जल्दबाजी की. उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के तमाम ऐसे जजेज की लिस्ट है, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के दिन अहम मामलों पर फैसले सुनाए है.
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