गीता श्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि सामा-चकवा बिहार में खेले जाने वाला एक लोक खेल है जोकि एक विशेष अवसर पर खेला जाता है और ये खेल सात दिन खेला जाता है। सामा उपेक्षित रही है उसे इस उपन्यास में विशेष स्थान दिया गया है। सामा और चकवा एक पक्षी जोड़ा है जोकि दिन भर साथ रहते हैं और रात में बिछड़ जाते हैं क्योंकि उन्हें श्राप मिला हुआ है। इस उपन्यास में पर्यावरण और स्त्री दोनों के परस्पर संबंध को दिखाया है। लेखिका पारुल ने वक्तव्य में कहा कि गीता श्री की कथा कहन शैली बेहद खूबसूरत है। इस उपन्यास में स्त्री का पर्यावरण के प्रति प्रेम चित्रित किया गया है। स्त्री और प्रकृति के संबंध, प्रेम और विरह को भी दिखाया गया है। अंत में मीरा जोहरी ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।
नई दिल्ली। राजपाल एंड सन्ज़ के स्टॉल पर सुपरिचित कथाकार गीता श्री के नये उपन्यास 'सामा-चकवा' का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। जयंती रंगनाथन ने अपने वक्तव्य में कहा की सामा-चकवा में राधा कृष्ण की बेटी की कथा है। जिसमें प्रकृति प्रेम दिखाया गया है। सामा-चकवा की लोक कथा को बेहद खूबसूरत ढंग से गीता श्री ने इन उपन्यास में लिखा है। यह उपन्यास नही एक विमर्श है। भाषा बेहद सरल एवं पठनीय है। अनुशक्ति सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि सामा-चकवा की कथा बचपन से सुनते आ रहे हैं लेकिन गीता श्री ने इस लोक कथा को पर्यावरण और स्त्री को केंद्र में रखकर बेहद अच्छा उपन्यास लिखा है। प्रभात रंजन ने अपने वक्तव्य में कहा कि सामा-चकवा उपन्यास में गीता श्री द्वापर युग की प्रेम कथा का जाना पहचाना क़िस्सा लिखती हैं। उपन्यास को बेहद शानदार ढंग से लिखा गया है जोकि इसे पठनीय बनाता है। मंच संचालन करते हुए पंकज सुबीर ने कहा यह उपन्यास प्रकृति और स्त्री के संबंध को दिखाता है। एक चिड़िया का प्रकृति को बचाने की कथा इस उपन्यास में है। इस उपन्यास में पर्यावरणीय चेतना देखने को मिलती है। इस उपन्यास में सामा-चकवा लोक कथा को बेहद मार्मिक ढंग स व्यक्त किया गया है। गीता श्री लोक में धंसी हुई लेखिका हैं। उनकी भाषा लोक की भाषा है।
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