- दयानंद के विचार आज भी प्रासंगिक-डॉ. गदिया
- विद्यार्थियों ने महर्षि दयानंद के जीवन व आदर्शों पर डाला प्रकाश
उन्होंने महर्षि दयानंद के जीवन चरित्र और उनके आदर्शों पर विस्तार से प्रकाश डाला। डॉ. गदिया ने कहा कि आज भी हम कुरीतियों, अंध विश्वास व रुढ़ परम्पराओं में जकड़े हुए हैं। आज भी थोथे कर्मकांड के हम शिकार हैं। वर्ण व्यवस्था आज भी कायम है। वर्ष 1875 में आर्य समाज की स्थापना के समय महर्षि दयानंद ने हरिद्वार में पाखंड खंड खंडिनी पताका गाड़कर सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती दी। इसमें उन्होंने तमाम अंध विश्वासों व विरोधों को समाप्त कर स्त्री शिक्षा पर जोर दिया। वर्ण व्यवस्था, अंधविश्वास, रुढ़ परम्परा, लोभ, मोह आदि का त्याग करने की बात कही। डॉ. गदिया ने कहा कि स्वामी दयानंद महिलाओं के विकास के प्रबल पक्षधर थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मेरठ प्रांत के सह-सम्पर्क प्रमुख वेदपाल ने कहा कि स्वामी दयानंद ने कर्म को प्रधानता दी। वेदों की ओर लौटने का अभियान चलाया। 200 साल बाद भी उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश को आजाद कराने की जड़ में भी स्वामी दयानंद को योगदान अतुलनीय है। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने कहा कि विद्यार्थी महापुरुषों की जयंतियों से प्रेरणा लें। 200 साल बाद भी जो कुरीतियां आज भी जीवित हैं उनका समूल नाश होना चाहिए। तभी नये और संगठित राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है। समारोह की शुरुआत मां सरस्वती, भारत माता व स्वामी दयानंद सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप जलाकर व पुष्प अर्पित करके हुई। इस मौके पर शिखा, वर्षा शर्मा, अदिति जैन, मणि, काजल त्यागी आदि विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना, भजन, समूह गान, सम्भाषण, आर्य समाज के नियम, दयानंद के प्रवचन, स्लोगन आदि प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया। सफल संचालन बीसीए की विद्यार्थी अर्पिता और श्रेया ने किया।
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