नई दिल्ली। राजस्थान से असम तक का आदिवासी दृश्य मनीषा कुलश्रेष्ठ की इन कहानियों में आता है जो वन्या में आई हैं। इन कहानियों को कथाकार का नया सोपान कहना चाहिए। सुपरिचित लेखक और जानकी पुल के मॉडरेटर प्रभात रंजन ने विश्व पुस्तक मेले में राजपाल एंड सन्ज़ के स्टाल पर मंगलवार दोपहर मनीषा कुलश्रेष्ठ की पुस्तक 'वन्या' के लोकार्पण समारोह में कहा कि अपनी शिक्षा राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्र से ग्रहण करने के बाद मनीषा जी जहां पहली बार गईं वह जगह थी असम जोकि आदिवासी बहुल क्षेत्र है। इन सबका कॉन्ट्रास्ट इनकी कहानियों में उभर कर आता है। इनकी कहानियां मोहपाश में बांधती हैं। आलोचक और मिरांडा हाउस में सह आचार्य डा बलवंत कौर ने कहा कि मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों में सिर्फ अलग-अलग क्षेत्रों का कॉन्ट्रास्ट नहीं है बल्कि कहानियों के अपने भीतर भी कॉन्ट्रास्ट है। बलवंत कौर ने 'वन्या' कहानी संग्रह की नर्सरी कहानी का ज़िक्र करते हुए कहा कि इस कहानी का शिल्प बहुत अनूठा और ख़ास है। उन्होंने संग्रह की अंतिम कहानी 'रक्स की घाटी और शब-ए-फितना' का ज़िक्र भी किया और बताया कि इस संग्रह की सभी कहानियां स्त्री केंद्रित हैं तथा आदिवासी जीवन से जुड़ी हुई हैं लेकिन इनमें उस तरह का विमर्श नहीं है जैसा हम आदिवासी विमर्श के अर्थ में लेते हैं। इस संग्रह की कहानियां जिजीविषा की कहानियाँ है। विवेक मिश्र ने कहा कि मनीषा जी की तमाम कहानियों का केंद्रीय विषय प्रेम है। इस प्रेम में प्रकृति है तथा यह प्रेम परिवेशजनित प्रेम है। जोकि परिवेश में घटित होता है। इन कहानियों में जीवन की उद्दात्ता है। इनकी कहानियाँ जहां से खत्म होती हैं वहां ऐसा महसूस होता है कि उनका कोई पात्र किसी नई खोज पर निकल जाता है। आयोजन के अंत में प्रकाशक मीरा जौहरी ने आभार व्यक्त किया।
मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024
विश्व पुस्तक मेला में "वन्या" पुस्तक का लोकार्पण व परिचर्चा
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