इस मौके पर श्री दीक्षित ने बताया कि मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। माता आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैल हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। मां शैलपुत्री के चरणों में गौघृत अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य और दीर्घ आयुका आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है। इसके साथ ही गौघृत का अखंड दीपक भी जलाते है। माता शैल पुत्रीके आशीवार्द से विचारो में गम्भीरता आती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है, दीर्घ आयु का आशीर्वाद मिलता है। साधक आत्मविश्वास की जाग्रति भी होती है।
सीहोर। शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी गुप्त नवरात्रि का पावन पर्व आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। माघ नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी से बनी सफेद चीजों का भोग लगाया और दोपहर के बाद हलवे की प्रसादी का कन्याओं को वितरण किया गया। शनिवार को नवरात्रि के पहले दिन सुबह मंदिर के व्यवस्थापक रोहित मेवाड़ा, गोविन्द मेवाड़ा, जितेन्द्र तिवारी, सुमित भानु उपाध्याय, कमलेश राय आदि ने पूर्ण विधि-विधान से पूजा अर्चना की थी। व्यवस्थापक श्री मेवाड़ा ने बताया कि गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर यहां पर आस्था के साथ पर्व मनाया जाता है। इस मौके पर साधकों के द्वारा मंदिर में निरंतर पाठ का आयोजन किया जाता है।
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