- इतिहास में दर्ज हो गए ज्ञानवापी पर आदेश देने वाले जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश
- ज्ञानवापी में कैसे मिली पूजा करने की इजाजत, फैसला सुनाने वाले जज ए के विश्वेश ने बताएं वजह
गौरतलब है कि जिला जज रहते हुए अजय कृष्ण विश्वेश ने ही ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश दिया था। बनारस में उन्होंने 21 अगस्त, 2022 को कार्यभार ग्रहण किया था। कुल 34 सालों की न्यायिक सेवा के बाद वह 31 जनवरी, 2024 को रिटायर हो गए। यहां जिक्र करना जरुरी है कि डॉ अजय कृष्ण विश्वेश हरिद्वार के रहने वाले हैं. यूपी के कई अहम न्यायिक पदों पर तैनात रहे. ज्ञानवापी केस की सुनवाई करने के साथ ही उनका नाम एक बार फिर से चर्चा में आ गया. 7 जनवरी, 1964 को जन्में जस्टिस विश्वेश बचपन से मेधावी रहे हैं. कानून पर उनकी गहरी पकड़ है. उन्होंने 1984 में एलएलबी और 1986 में एलएलएम किया. 20 जून, 1990 को उनकी न्यायिक सेवा की शुरुआत हुई. पहली पोस्टिंग उत्तराखंड के कोटद्वार में मुंसिफ मजिस्ट्रेट के पर हुई. वह चार जिलों बदायूं, सीतापुर, बुलंदशहर और वाराणसी के जिला जज रह चुके हैं. 1991 में उनका ट्रांसफर सहारनपुर हो गया। इसके बाद वह देहरादून के न्यायिक मजिस्ट्रेट बने। खास यह है कि व्यास के तहखाने में फैसला सुनाए जाने के बाद अदालत के बाहर जहां हिंदू पक्ष के लोग अपने वकीलों के साथ जीत की खुशी मना रहे थे वहीं अंदर जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश का विदाई समारोह भी चल रहा था। अपने 34 सालों के अनुभव के आधार पर केस की सुनावाई न्यायिक तरीके से करते रहे हैं। न्यायिक सेवा में कदम रखने से पहले वह राजस्थान में लेक्चरर भी रह चुके हैं। राजस्थान एजुकेशन सर्विसेज की लेक्चररशिप छोड़कर उन्होंने ज्यूडिशियल सर्विसेज में कदम रखा था। उनके पास ज्यूडिशियल सर्विसेज के सोलह ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने का भी लंबा अनुभव है। इसके अलावा डेप्युटेशन पर हाईकोर्ट के स्पेशल विजिलेंस अफसर के रूप में भी डॉ विश्वेश कार्य कर चुके हैं। न्यायिक सेवा में रहते हुए अपने कार्य में खुद को बेहतर बनाए रखने के लिए उन्होंने कई ट्रेनिंग कोर्स भी किया है और पिछले मार्च में ही ये भोपाल स्थित नेशनल जुडिशियल एकैडमी से लीडरशिप कोर्स करके आए हैं। एडीजे पद पर उनकी पहली नियुक्ति 2006 में इलाहाबाद में हुई।
हार्डवर्क है सफलता का राज
जिला जज ज्ञानवापी जैसे महत्वपूर्ण प्रकरण से संबंधित प्रार्थना पत्रों में देर रात तक आदेश देने के लिए जाने जाते रहे। जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की कार्यशैली ऐसी रही कि सभी समस्याओं का समाधान वह हमेशा मुस्करा कर ही करते रहे। युवा अधिवक्ताओं को काम सीखने के लिए वह लगातार प्रोत्साहित करते रहे और कभी किसी के दबाव में नहीं दिखे। वह कामकाज के दौरान सख्त इतने रहे कि किसी के मोबाइल की घंटी कोर्ट रूम में बज जाती थी तो उसे जमा करा लेते थे। उन्होंने ही ज्ञानवापी की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक भी लगाई थी। जिला जज को बीते वर्ष अगस्त माह में उस समय दुख भी सहन करना पड़ा था, जब उनकी मां केला देवी का बीमारी के कारण काशी में निधन हो गया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें