दरभंगा: वैदिक मंत्रोच्चार के बीच संभाला संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति की कमान। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

दरभंगा: वैदिक मंत्रोच्चार के बीच संभाला संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति की कमान।

  • कार्यालयीय दैनिक कार्यों में अब आपस में हम सभी संस्कृत में ही बातचीत करेंगे। इससे धीरे धीरे सभी में सहजता आ जायेगी और एक नई शुरुआत होगी, बोले कुलपति।
  • अमूमन अशुद्ध बोलने के भय से ही हमलोग संस्कृत कम बोलना चाहते हैं। इससे शास्त्र व संस्कृति दोनों का क्षय होता है। इसलिए बेहतर होगा धीरे-धीरे ही सही, संस्कृत में बोल-चाल को बढ़ावा दें। तभी शास्त्र बचेगा और पांडित्य भी।
  • नौ माह में तो नई सृष्टि हो जाती है। ऐसे में प्रयास करने से सभी को संस्कृत भाषा का ज्ञान क्यों नहीं हो सकता है?
  • काशी व मिथिला की वैदुष्य परम्परा में हैं काफी साम्यताएं, हम सौभाग्यशाली हैं कि काशी से आकर मिथिला की पवित्र धरती पर कार्य करने का मौका मिला है।

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दरभंगा:- कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने गुरुवार पूर्वाह्न अपना पदभार संभाल लिया। मौके पर सभी पदाधिकारियों, प्राध्यापकों समेत अन्य कर्मियों को संबोधित करते हुए उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि सभी के प्रयास से संस्कृत को लोकभाषा बनानी है। आम बोलचाल में इसे प्रचलित भी करनी है। इसी क्रम में उन्होंने यह भी जोड़ा कि कार्यालयीय दैनिक कार्यों में अब आपस में हम सभी संस्कृत में ही बातचीत करेंगे। इससे धीरे धीरे सभी में सहजता आ जायेगी और एक नई शुरुआत होगी। आगे कुलपति प्रो. पांडे ने कहा कि अमूमन अशुद्ध बोलने के भय से ही हमलोग संस्कृत कम बोलना चाहते हैं। इससे शास्त्र व संस्कृति दोनों का क्षय होता है। इसलिए बेहतर होगा धीरे-धीरे ही सही, संस्कृत में बोल-चाल को बढ़ावा दें। तभी शास्त्र बचेगा और पांडित्य भी। प्रयास से सभी संभव है। इसलिए संस्कृत को व्यवहार में लाएं और संस्कृत भाषी अपने आप में गौरव भाव रखें। उन्होंने कहा कि नौ माह में तो नई सृष्टि हो जाती है। ऐसे में प्रयास करने से सभी को संस्कृत भाषा का ज्ञान क्यों नहीं हो सकता है? उन्होंने संस्कृत की प्रतिष्ठा व विश्वविद्यालय की गरिमा को बढ़ाने की सभी से अपील भी की। इसके लिए सम्मिलित व संगठित होकर तन्मयता से कार्य करने का बीज मंत्र भी उन्होंने सुझाया। उन्होंने अयोध्या, काशी, तिरुपति व उज्जैन की चर्चा करते हुए यह भी कहा कि ऐसे कई उदाहरण है जहां धार्मिक व सांस्कृतिक विकास से सशक्त आर्थिक व शैक्षणिक उन्नति हुई है। इसी क्रम में कुलपति प्रो. पांडेय ने कहा कि काशी व मिथिला की वैदुष्य परम्परा में काफी साम्यताएं हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि काशी से आकर मिथिला की पवित्र धरती पर कार्य करने का मौका मिला है। अपनी मौलिक शिक्षा तिरुपति में पूर्ण करने की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि वहां का संस्कार व वहां की संस्कृति आज भी हम पर हावी है और उसका असर यहां के कार्यों पर भी अवश्य रहेगा। सभी के साथ न्याय होने का भी उन्होंने भरोसा दिया।नई शिक्षा नीति एवं भारतीय ज्ञान व्यवस्था की विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अब समय की मांग है कि सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को बहुविषयक होना है। इसलिए हम सभी को इस ओर भी विश्वविद्यालय में शैक्षणिक वातावरण बनाने की जरूरत है। कुलपति प्रो. पांडेय ने अपनी सेवा के शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा कि जब कभी अत्यधिक कार्यभार का अवसर आता था तो वे अक्सर अपने सीनियर को यही कहते थे कि आप कम देते-देते थक जाएंगे लेकिन वे काम करते-करते नहीं थकेंगे। कुलपति ने कहा कि यह भावना हमने आज भी जिंदा रखी है। उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि संस्कृत व संस्कृति के प्रति कुलपति पूरे तौर पर समर्पित दिखे। विश्वविद्यालय को नई पहचान दिलाने के लिए उन्होंने सभी से सम्मिलित रूप से सम्यक सहयोग की अपेक्षा की।


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बता दें कि विश्वविद्यालय कैम्पस आने से पूर्व उन्होंने मां श्यामा से आशीर्वाद प्राप्त कर परिसर स्थित महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद लगातार वैदिक मंत्रोच्चार के बीच कुलपति कार्यालयीय कक्ष में पदभार ग्रहण की औपचारिकता निभाई गयी। निवर्तमान कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने खुद उन्हें कुलपति की कुर्सी पर बैठाया और भविष्य में सभी तरह के सहयोग का आश्वासन भी दिया। वहीं, योगदान कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रति कुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने विषय प्रवेश कराया तथा नए कुलपति की अगुआई में विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने की कामना की। उन्होंने निवर्तमान कुलपति प्रो. झा के प्रति भी हार्दिक सद्भावना व्यक्त करते हुए उन्हें सहिष्णु व अति गम्भीर व्यक्तित्व का धनी बताया। साथ ही प्रति कुलपति ने विश्वविद्यालय को नया आयाम दिलाने के संकल्प को दोहराया। स्वागत करते हुए सिंडिकेट सदस्य डॉ. अजित चौधरी ने विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति को बताते हुए छात्रों की कम संख्या पर चिंता जताई। साथ उन्होंने हरसंभव सहयोग का भरोसा दिया। स्नातकोत्तर प्रभारी व व्याकरण के वरीय प्रध्यापक प्रो. सुरेश्वर झा, कुलसचिव प्रो. दीनानाथ साह, छात्र कल्याण अध्यक्ष डॉ. शिवलोचन झा, कुलानुशासक प्रो. पुरेन्द्र वारिक, प्रो. दिलीप कुमार झा, प्रो. कुणाल कुमार झा समेत सभी विभागाध्यक्षों ने भी कुलपति का स्वागत किया। शोध प्रभारी प्रो. दयानाथ झा, वेद विभाग के प्रो. विनय मिश्र व डॉ. सत्यवान कुमार ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। वहीं, सीसीडीसी डॉ. दिनेश झा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सीनेटर अंजीत चौधरी ने भी कुलपति का बुके देकर स्वागत किया। इसी क्रम में बजट पदाधिकारी डॉ. पवन कुमार झा, सूचना वैज्ञानिक डॉ. नरोत्तम मिश्र, राष्ट्रीय सेवा योजना पदाधिकारी डॉ. सुधीर कुमार झा, भूसंपदा पदाधिकारी डॉ. उमेश झा, परीक्षा नियंत्रक डॉ. शैलेन्द्र मोहन झा समेत सभी पदाधिकारियों से कुलपति प्रो. पांडे रूबरू हुए और सभी से संबंधित कार्य संपादन की जानकारी ली। पदभार के मौके पर सभी कर्मी मौजूद थे। इसके बाद उन्होंने शिक्षा शास्त्र विभाग, केंद्रीय पुस्तकालय समेत कई विभागों का निरीक्षण किया और संबंधित फीडबैक भी लिया। कुलपति के साथ  कुलसचिव डॉ. साह समेत सभी पदाधिकारी थे।


लक्ष्मी विलास व लक्ष्मी निवास का अद्भुत संयोग

आज संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास में एक अद्भुत संयोग देखने को मिला। नव नियुक्त कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय संस्कृत विश्वविद्यालय मुख्यालय के जिस मुख्य भवन में अपने कार्यों का संपादन करेंगे या यूं कहें कि उनका कार्यालयीय कक्ष जहाँ होगा वह भवन लक्ष्मी विलास पैलेस के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजाधिराज यहीं पले-बढ़े थे। संस्कृत की रक्षा व विकास के लिए उन्होंने अपना यह अलौकिक आवास तक दान में दे दिया था। आज विद्वानों की सर्वसम्मति रही कि इस अद्भुत संयोग से बेशक संस्कृत व संस्कृति का नए सिरे से सम्वर्धन होगा और विश्वविद्यालय का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।

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