कोर्ट ने ज्ञानवापी के व्यासजी तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया है. कोर्ट आदेश के बाद प्रशासन ने व्यास जी के तहखाने में पूजा शुरू करवा दी. 31 साल के इंतजार के बाद नंदी के सामने स्थित तहखाना परिसर श्रद्धालुओं के हर-हर महादेव के नारे से गूंज रहा है। जिस तरह 1993 से पहले तक किया जाता था. अब व्यास परिवार तहखाने में पूजा करेगा. लेकिन बड़ा सवाल तो यही है 1993 के बंद क्यों बंद हो गई ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा? आखिर मुलायम सिंह यादव ने किसे खुश करने के लिए पूजा बंद करने का दिया था आदेश? यहां जिक्र करना जरुरी है कि व्यासजी के तहखाने में साल 1993 से पहले सोमनाथ व्यास परिवार पूजा-अर्चना किया करता था. यह तहखाना ज्ञानवापी परिसर में दक्षिण की ओर स्थित है। यह तहखाना ज्ञानवापी में ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद है, जहां हिंदू धर्म से जुड़े चिन्ह जैसे स्वास्तिक, कमल और ओम की आकृतियां पाई गई हैं।फिरहाल, लंबे संघर्षो व दलीलों के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने के पश्चात ज्ञानवापी मामले में भी वाराणसी जिला जज का फैसला आ चुका है। पूरे 31 साल बाद व्यास जी के तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा आरती का अधिकार मिल चुका है। कोर्ट के आदेश के अनुपालन में प्रशासन की कड़ी निगहबानी में व्यासजी के तहखाने में पूजा शुरु हो गयी है। जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस पर ऐतराज जताते हुए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया है। यह अलग बात है कि पूरे मामले में साक्ष्यों, तथ्यों व दलीलों के साथ हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन मुगल आक्रांताओं की करनी से लेकर वर्तमान मुस्लिम पक्ष के झूठी दलीलों के सामने चट्टान की तरह खड़े हो गए है। उन्हीं के प्रयासों से हिन्दू पक्ष को व्यासजी के तहखाने में पूजा का अधिकार मिला है। हाईकोर्ट में मुस्लिम पक्ष की याचिका का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि है मुस्लिम पक्ष ने 17 जनवरी के आदेश को चुनौती नहीं दी है। जबकि 31 जनवरी वाला आदेश सही है और मुस्लिम पक्ष की अपील सुनने योग्य नहीं है. हिन्दू पक्ष ने कहा कि तहखाने में कोई दरवाजा नहीं था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कृपया वहां कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करें. कोई अनहोनी नहीं होनी चाहिए. डीएम खुद सुरक्षा देखें. बता दें, 1990 में जब मुलायम सिंह सरकार थी तो तो उन्होंने अयोध्या में कार सेवकों पर गोलियां चलवाई थीं। अक्टूबर 1990 में मुलायम सिंह सरकार के कार्यकाल में विश्व हिंदू परिषद ने विशाल करसेवा का आयोजन किया था। तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने कार सेवकों से मस्जिद को बचाने के लिए लगभग 28000 पुलिस की तैनाती की थी। कार सेवकों द्वारा इस बैरिकेटिंग को तोड़ दिया गया था और कारसेवक बावरी मस्जिद के पास पहुंच गए। उसके बाद मुलायम सिंह सरकार ने उन पर गोली चलाने के आदेश दे दिए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 20 कारसेवकों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। इसके बाद हुए चुनावों में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी और 6 दिसंबर 1992 को बावरी मस्जिद विध्वंस कर दी गई। केंद्र की नरसिम्हा सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करके यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया। बाद में हुए उपचुनावों में मुलायम सिंह यादव एक बार फिर मुख्य मंत्री बने और उन्होंने इस बार ज्ञानवापी मंदिर में व्यास जी के तहखाने में पूजा अर्चना पर रोक लगा दी। इसके पक्ष में कानून व्यवस्था का तर्क दिया गया। इस तरह ज्ञानवापी और अयोध्या विवाद दोनों में ही मुलायम सिंह यादव का कनेक्शन देखने को मिलता है।
क्या है पूरा मामला
25 सितंबर, 2023 को व्यास परिवार की तरफ से तहखाने में पूजा-अर्चना करने की अनुमति के लिए याचिका दाखिल की गई थी, जिसके बाद ज्ञानवापी के एएसआई सर्वे में व्यासजी के तहखाने की भी जांच हुई. जांच में तहखाने के अंदर मंदिर के सबूत मिले और कोर्ट ने 31 जनवरी को व्यासजी के तहखाने में पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी. सन 1993 से पहले व्यासजी के तहखाने में पूजा-पाठ करने वाले व्यास परिवार के पोते आशुतोष व्यास ने बताया कि ज्ञानवापी के अंदर 10 तहखाने मौजूद हैं. व्यासजी का तहखाना ज्ञानवापी में दक्षिण की ओर स्थित है. यहां मौजूद 10 तहखानों में से दो तहखानों को खोला गया है. कोर्ट में वाद दाखिल कर बताया गया कि व्यासजी का तहखाना ज्ञानवापी परिसर में नंदी भगवान के ठीक सामने है. यह तहखाना प्राचीन मंदिर के मुख्य पुजारी व्यास परिवार की मुख्य गद्दी है. यह वह स्थान है, जहां 400 साल से व्यास परिवार शैव परंपरा से पूजा-पाठ करता था. ब्रिटिश काल में भी मुकदमा जीतकर व्यास परिवार का तहखाने पर कब्जा बरकरार रहा. आशुतोष व्यास ने बताया कि 1993 से व्यासजी के तहखाने को बंद कर दिया गया और बैरिकेडिंग कर दी गई. उन्होंने कहा कि उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. अयोध्या राम जन्मभूमि मामले को लेकर मुलायम सिंह यादव ने बैरिकेडिंग लगा दी कि यहां सांप्रदायिक माहौल ना बिगड़े और लड़ाई-झगड़े ना हों. पहले बांस-बल्ली लगाकार टेंपरेरी तौर पर बैरिकेडिंग की गई और बाद में पक्की तरह से बंद कर दिया गया. तभी से वहां पूजा करना बंद है.आशुतोष ने बयां की 1993 से पहले की दास्तान
आशुतोष व्यास ने कहा, ’पहले हमारे परिवार के लोग पूजा-पाठ और अर्चना किया करते थे. हम गए हैं अंदर. हर साल ही जाते हैं. वहां रामचरितमानस होता है ज्ञानवापी में. उसके पास ही बांस बलियां रखी होती हैं. अंदर बहुत अंधेरा रहता है.’ उन्होंने यह भी बताया कि अंदर कई शिवलिंग हैं. शिवलिंग हैं, नंदी हैं, टूटे-फूटे नंदी होंगे और बताते हैं कि खंभों में कमल, स्वास्तिक और ओम की आकृतियां बनी हैं. आशुतोष व्यास का कहना है कि 1993 से पहले अंदर जलाभिषेक होता था और रुद्राभिषेक किया जाता था. आरती, पूजा, भजन सब होता था. तीन समय की पूजा होती थी. सुबह की पूजा के बाद मध्याह्न में भगवान को भोग लगता था और संध्या में पूजा एवं आरती होती थी. 25 सितंबर 2023 को शैलेंद्र ठाकुर पाठक ने वाद दाखिल कर व्यासजी के तहखाने में पूजा-पाठ फिर से शुरू करने की अनुमित मांगी थी. शैलेंद्र ठाकुर पाठक व्यास परिवार से ही हैं. हिंदू पक्ष ने अनुरोध किया कि कोर्ट रिसीवर नियुक्त करे जो तहखाने में पुजारी द्वारा पूजा किया जाना नियंत्रित करे और उसका प्रबंध करे. यह भी दलील दी गई कि तहखाने में जो मूर्तियां मौजूद हैं उनकी नियमित रूप से पूजा किया जाना आवश्यक है. सर्वे में भी वहां हिंदू धर्म से जुड़े चिन्ह और मंदिर होने के सबूत मिले. इसके बाद कोर्ट ने 17 जनवरी, 2024 को एक आदेश पारित कर रिसीवर नियुक्त कर दिया, लेकिन पूजा-अर्चना के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया. फिर 31 जनवरी को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने हिंदू पक्ष को व्यासजी के तहखाने में पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी. आशुतोष व्यास ने बताया कि कोर्ट के फैसले को वह अत्यधिक खुशी से देखते हैं और 400 सालों का इंतजार खत्म हुआ. उन्होंने कहा, ’यह हमारे पूर्वजों का बलिदान है, जो 400 सालों से लड़ते चले आ रहे थे. तहखाने में तो अधिकार था ही अपना. वहां साल 1993 के पहले पूजा-पाठ होती थी.’क्या है मुस्लिम पक्ष की दलील
दरअसल, इस केस में हिंदू पक्ष का दावा है कि नवंबर 1993 से पहले व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को उस वक़्त की प्रदेश सरकार ने रुकवा दिया था. जिसको शुरू करने का पुनः अधिकार दिया जाए. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी. अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी. महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था. सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है. इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी. सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट कानिर्देश दिया था. मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं नहीं हो सकती है. हालांकि, कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य माना था. मई 2023 में पांच वादी महिलाओं में से चार ने एक प्रार्थना पत्र दायर किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का एएसआई से सर्वे कराया जाए. इसी पर जिला जज एके विश्वेश ने अपना फैसला सुनाते हुए एएसआई सर्वे कराने का आदेश दिया था.
सर्वे में मिले मंदिर के सबूत
कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे कराया गया था. 18 दिसंबर, 2023 को एएसआई ने जिला जज की अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंपी जाए. इस पर 24 जनवरी 2024 को जिला कोर्ट ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था. विष्णु शंकर ने बताया कि जीपीआर सर्वे पर एएसआई ने कहा है कि यह कहा जा सकता है कि यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था, अभी के ढांचा के पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था. एएसआई के मुताबिक वर्तमान जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है. यहां पर एक प्री एक्जिस्टिंग स्ट्रक्चर है उसी के ऊपर बनाए गए. हिंदू पक्ष ने आगे रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पिलर्स और प्लास्टर को थोड़े से मोडिफिकेशन के साथ मस्जिद के लिए फिर से इस्तेमाल किया गया है. हिंदू मंर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया. पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई. यहां पर 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिर के हैं.अपने-अपने दावे
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांलांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं. काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शाससक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी लेकिन मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बबनी थी. जानकार मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था. इसे 1585 में बनाया गया था. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदमंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई. 1735 में रानी अहिल्याबाई ने फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी मौजूद है.
473 साल पुराना है व्यास परिवार का पूजा-पाठ
व्यासजी के तहखाना प्रकरण को लेकर शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने कोर्ट मेजो दलील दी गई है उसके मुताबिक, ज्ञानवापी में शतानंद व्यास ने वर्ष 1551 में आदि विश्वेश्वर की पूजा शुरू की थी. इसके बाद व्यास परिवार की कई पीढ़ियों नेजिम्मेदारी निभाई और साल 1930 में इस परिवार के बैजनाथ व्यास ने पूजा-पाठ का जिम्मा संभाला. फिर उनके बेटी राजकुमारी उत्तराधिकारी बनीं जिनके चार बेटे हुएजिनमें से एक का नाम सोमनाथ व्यास था. शैलेंद्र कुमार इन्हीं सोमनाथ व्यास की बेटी ऊषा रानी के बेटे के रूप में तहखाने में पूजा का अधिकार मांग रहे थे.ज्ञानवापीः व्यास तहख़ाने में आठ मूर्तियों की पूजा कैसे शुरू हुई
विग्रहों की पूजा
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर ही तहखाने के विग्रहों का पूजन होगा। व्यासजी के तहखाने में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक ही रोटेशन के आधार पर पूजा, राग-भोग और आरती कराएंगे। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से इसके लिए सारे इंतजाम कर दिए गए हैं। मंगला आरती से शयन आरती तक होने वाली नियमित पूजन की शुरूआत गुरुवार से हुई। तहखाने का नामकरण हो गया है। काशी विद्वत परिषद ने इसका नाम ज्ञान ताल गृह रखा है। उन्होंने भीतर अखंड रामायण शुरु कर दी है। व्यासजी के तहखाने को आम श्रद्धालुओं के लिए भी खोल दिया गया। अपराह्न की आरती के बाद शाम चार बजे से बैरिकेडिंग के बाहर से श्रद्धालुओं ने तहखाने में रखे विग्रहों के दर्शन किए। पूरा परिसर हर-हर महादेव के जयकारे से गूंजता रहा। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर व्यासजी के तहखाने में पूजन होगा। मंदिर की पूजा पद्धति के अनुसार ही राग-भोग, शृंगार और आयोजन होंगे। फिलहाल मंदिर के पुजारियों को रोटेशन के आधार पर तैनात किया गया है। काशी विश्वनाथ की पूजा और आरती के बाद अर्चक तहखाने में पूजन करेंगे। जरूरत पड़ी तो तहखाने के लिए नियमित पुजारियों को भी नियुक्त किया जाएगा। मंगला आरती के साथ ही इसकी शुरूआत हो गई है। काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्रा के मुताबिक न्यायालय ने तहखाने में मौजूद विग्रह के राग-भोग का आदेश किया है। उनका राग-भोग छोटे बच्चे की तरह होता है। वादी ने यही दलील दी कि जब कोर्ट ने राग-भोग की इजाजत दे दी है तो वह तुरंत होना चाहिए। शाम को तहखाने का झांकी दर्शन भी आरंभ हो गया। न्यास अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भोग, राग और शृंगार होता है उसी तरह से यहां के विग्रहों की भी पूजा अर्चना होगी।
ज्ञानवापी संस्कृत नाम है
विवाद का एक दूसरा बिंदु मस्जिद का गैर-परंपरागत नाम है. वाराणसी स्थित विद्धान इससे सहमत हैं कि ज्ञानवापी दो शब्दों से जुडक़र बना हैः ज्ञान और वापी (पानी का हौदा या कुआं). दोनों शब्द संस्कृत मूल के हैं और अर्थ है ‘ज्ञान का कुआं’, जिसका जिक्र स्कंद पुराण (8वीं सदी के आसपास) और काशी के कई ऐतिहासिक संदर्भों में आता है. अंग्रेज विद्वान तथा इतिहासकार जेम्स प्रिंसेप ने 1830 में पहली दफा प्रकाशित हुई अपनी किताब बनारस इलस्ट्रेटेड में ज्ञानवापी नाम का जिक्र नहीं करते और उसे आलमगीर मस्जिद बताते हैं. संयोग से, ज्ञानवापी मस्जिद से करीब दो किमी दूर हरतीरथ मोहल्ले में एक और मस्जिद भी आलमगीर मस्जिद के नाम से जानी जाती है. इसके अलावा पंचगंगा घाट पर धरहरेवाली मस्जिद को भी इसी नाम से जाना जाता है.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मध्ययुगीन इतिहास के प्रोफेसर अली नदीम रिजवी ने दिप्रिंट को बताया कि जैसे बाबरी मस्जिद का नाम मुगल शासक बाबर के नाम पर पड़ा, उसी तरह आलमगीर मस्जिद का नाम उसे बनाने का आदेश देने वाले औरंगजेब के नाम पर पड़ा, जिन्हें आलमगीर (विश्व विजेता के लिए फारसी शब्द) कहा जाता था. वे दिप्रिंट से कहते हैं, ‘बाबरी मस्जिद को मीर बकी ने बनवाया, मगर उसका नाम बाबर के नाम पर रखा गया क्योंकि उसे उसके राज में बनवाया गया था. इसी तरह, आज के ज्ञानवापी मस्जिद का नाम औरंगजेब के नाम पर पड़ा था, जिसने आलमगीर की उपाधि ले ली थी.’ इतिहासकार कुबेरनाथ सुकुल भी इसकी तस्दीक करते हैं. वे अपने वाराणसी वैभव (2008) में लिखते हैं, ‘कृत्तिवासेश्वर मंदिर काल भैरव मंदिर के उत्तर में स्थित था और वृद्धकाल (देवता) का कृत्तिवासेश्वर मंदिर खड़ा था. औरंगजेब ने उसे तुड़वाया और उसकी जगह 1659 में आलमगीर मस्जिद बनवाई।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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