- मुद्दा से गायब है राम की लहर और आरक्षण की आंच
इस गोवार का दिमाग चैन से नहीं बैठता है। कभी गोईठा में घी सुखाएगा तो कभी बबूल के नीचे आम खोजता फिरता है। आज भीड़ में खबर खोजने में जुट गया है। उस गांधी मैदान में जहां, पांच वर्षों में एक ही तारीख को दो बड़ी रैली हुई और दोनों का संबंध भारत की राजनीति से जुड़ा हुआ है। 3 मार्च की तारीख सिर्फ संयोग है। 3 मार्च, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना के गांधी मैदान में संकल्प रैली को संबोधित किया था। उस मंच पर नरेंद्र मोदी के साथ सीएम नीतीश कुमार भी मौजूद थे। 3 मार्च, 2024 को राजद प्रमुख लालू यादव ने राजद की ओर से आयोजित जनविश्वास महारैली को संबोधित किया। इस रैली को राहुल गांधी से लेकर दीपंकर भट्टाचार्य तक ने संबोधित किया। दरअसल गांधी मैदान की रैली में भीड़ चाहे-अनचाहे मुद्दा बन जाती है। पूरा राजनीतिक गलियारा भीड़ से रैली की सफलता का आकलन करता है। पिछले 3 मार्च को हम जब गांधी मैदान में जनविश्वास महारैली का चक्कर लगा रहे थे, उसी समय भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का फोन आया था और उन्होंने यह जानना चाहा था कि 2013 के अक्टूबर महीने में आयोजित गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा से कम भीड़ है या ज्यादा।
हम 2013 की सभा की तस्वीर नहीं तलाश पाये, लेकिन 3 मार्च, 2019 को आयोजित नरेंद्र मोदी की सभा की तस्वीर मिल गयी। यह तस्वीर वरिष्ठ फोटोग्राफर सोनू किशन के सौजन्य से उपलब्ध हो सकी। जब किसी रैली की सफलता और नेता की लोकप्रियता का आकलन का आधार भीड़ हो जाती हो तो एक बार भीड़ देख लेना भी जरूरी है। हम दोनों रैलियों की दो-दो तस्वीर खबर के साथ अटैच कर रहे हैं, ताकि पाठक भी सफलता और लोकप्रियता का आकलन कर सकें। चुनाव माथे है। गठबंधनों के बीच क्षेत्र और उम्मीदवारों के नामों पर मंथन शुरू हो गया। चुनाव के ठीक पहले रैली के माध्यम से ताकत दिखायी जाती है। 2019 और 2024 की रैली भी इसी कवायद का हिस्सा है। लेकिन भीड़ बता रही है कि 3 मार्च, 2019 को प्रधानमंत्री की रैली की तुलना में 3 मार्च, 2024 को आयोजित लालू यादव की रैली भारी है। भीड़ का हिसाब गुना में भी लगा सकते हैं।
जनविश्वास महारैली में उमड़ा जनसैलाब अकेले तेजस्वी यादव की मेहनत का परिणाम था। यह इस बात का भी प्रमाण है कि भीड़ के मामले में नरेंद्र मोदी पर तेजस्वी यादव भारी पड़ रहे हैं। बिहार में लोकसभा चुनाव का मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम तेजस्वी यादव के बीच ही होगा। दोनों भाई यानी लालू यादव और नीतीश कुमार हाशिये के विषय बन गये हैं। ये दोनों सलाहकार मंडल के हिस्सा भी नहीं होंगे। ये तस्वीर यह बात समझाने के लिए भी पर्याप्त है कि 2024 का मुकाबला 2019 के तरह एकतरफा नहीं होगा। तेजस्वी यादव के साथ खड़ी सामाजिक और राजनीतिक ताकत नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी ताकत से कमजोर नहीं है। इस बार के मुकाबला में न राम की लहर है, न आरक्षण की आंच है। यह बार सीधी लड़ाई चेहरे की है। चेहरे की लड़ाई में तेजस्वी यादव और नरेंद्र मोदी के आगे सभी चेहरे ओझल हो जाएंगे।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार, पटना ---
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